संपत्तियों को आधार से जोड़ने पर काले धन पर लगेगी लगाम, दो हजार का नोट बंद होना चाहिए
काले धन पर लगाम लगाने के लिए सरकार सभी संपत्तियों के मालिकाना हक को आधार से जोड़ना अनिवार्य बनाए। लोकल सर्किल नामक संगठन की तरफ से कराए गए सर्वेक्षण में लोगों ने कहा कि सरकारी अधिकारी मुखौटा कंपनियां बनाकर घूस लेते हैं।
नई दिल्ली, आइएएनएस। काले धन पर लगाम लगाने के लिए सरकार सभी संपत्तियों के मालिकाना हक को आधार से जोड़ना अनिवार्य बनाए। हाल में कराए गए एक सर्वेक्षण में ज्यादातर लोगों ने यह राय व्यक्त की है। इनका यह भी कहा था कि इसके लिए केंद्र और राज्यों सरकारों के सभी मंत्रियों, सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्रों के कर्मचारियों और उनके परिजनों की संपत्तियों की घोषणा को भी अनिवार्य बनाया जाए।
सर्वेक्षण: सरकारी अधिकारी मुखौटा कंपनियां बनाकर घूस लेते हैं
लोकल सर्किल नामक संगठन की तरफ से कराए गए सर्वेक्षण में लोगों ने कहा कि सरकारी अधिकारी मुखौटा कंपनियां बनाकर घूस लेते हैं। इन कंपनियों में अपने परिजनों को उच्च पदों पर बिठा देते हैं और उच्च प्रीमियम पर घूस की रकम को शेयर पूंजी के रूप में हासिल करते हैं। इससे मिली रकम का इस्तेमाल मुखौटा कंपनी के प्रमोटर खुद और फर्जी कर्मचारियों के वेतन के रूप में खर्च कराना दर्शाते हैं।
33 फीसद ने कहा- सभी संपत्तियों के मालिकाना हक को आधार से जोड़ना चाहिए
इस सवाल पर कि देश में काले धन के चलन को कम करने के लिए सरकार को तत्काल क्या कदम उठाने चाहिए, 15,492 लोगों ने अपनी राय व्यक्त की। इसमें से 33 फीसद ने कहा कि सभी संपत्तियों के मालिकाना हक को आधार से जोड़ने की बात कही, 38 फीसद ने सभी मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों और उनके प्रत्यक्ष पारिवारिक सदस्यों द्वारा अपनी संपत्ति की घोषणा को अनिवार्य बनाने को कहा, 10 फीसद लोग दो हजार रुपये के नोट को तुरंत बंद करने के पक्ष में थे, सात फीसद चाहते थे कि 10 हजार रुपये से कम के नकद लेन-देन पर दो फीसद का अधिभार लगाया जाए, पांच फीसद का कहना था कि स्विस बैंक में खाता रखने वालों की विस्तार से जांच की जाए, जबकि दो फीसद लोगों ने कोई राय नहीं व्यक्त की।
14 फीसद लोगों ने कहा- सामान खरीदारी की रसीद नहीं मिलती
इस सर्वेक्षण में देश के तीन सौ से अधिक जिलों से 45 हजार से अधिक लोगों ने अपनी राय जताई। इनमें से 51 फीसद लोग प्रथम श्रेणी (महानगरों) के शहरों के, 34 फीसद दूसरी श्रेणी के शहरों के और 15 फीसद लोग तीसरी, चौथी श्रेणी के शहरों और ग्रामीण जिलों के थे। इस साल के सर्वे में शामिल 14 फीसद लोगों का कहना था कि महीने में वो जो औसत खरीदारी करते हैं उसमें 50 से 100 फीसद में उन्हें कोई रसीद नहीं मिलती।
नोटबंदी के चार साल बाद देश में डिजिटल लेन-देन का चलन बढ़ा
पिछले साल के सर्वे में ऐसे लोगों की संख्या 27 फीसद थी। इसका मतलब है कि इस साल बिना रसीद के खरीदारी करने वालों की संख्या लगभग आधी कम हुई है। इसमें यह भी पता चला है कि नोटबंदी के चार साल बाद देश में डिजिटल लेन-देन का चलन बढ़ा है।