साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की 137वीं जयंती आज
साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की आज 137वीं जयंती है। मशहूर लेखक गुलजार ने कहा कि वो आज भी प्रासंगिक हैं
नई दिल्ली, (वेब डेस्क)। साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की आज 137वीं जयंती है। प्रेमचंद ऐसे कालजयी उपन्या्सकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी के दम पर पूरे विश्वी में पहचान बनाई। मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व बड़ा ही साधारण था। उनके निधन के 81 वर्ष बाद भी उनकी कालजयी रचना ‘कफन’, ‘गबन’, ‘गोदान’, ‘ईदगाह‘ और ‘नमक का दरोगा‘ हर किसी को बचपन की याद दिलाती है।
मुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस से लगभग छह मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था। उनके पूर्वज कायस्थ परिवार से आते थे, जिनके पास उस समय में छग बीघा जमीन थी। प्रेमचन्द के दादाजी गुरु सहाय सराय पटवारी और पिता अजायब राय डाकखाने में क्लर्क थे। उनकी माता का नाम आनंदी देवी था। उन्हींय से प्रेरित होकर उन्होंने एक रचना ‘बड़े घर की बेटी‘ में ‘आनंदी‘ नामक पात्र बनाया था।
धूमधाम से मनाई गई मुंशी प्रेमचंद की जयंती
प्रेमचन्द अपने माता-पिता की चौथी सन्तान थे। उनसे पहले अजायब राय के घर में तीन बेटियां हुई थीं, जिसमें से दो बचपन में ही मर गई थी, जबकि सुग्गी नामक एक बच्ची जीवित रह गयी थी। प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपत राय था, जो उनके माता-पिता ने रखा था. लेकिन, उनके चाचा उन्हें नवाब कहा करते थे।
प्रेमचंद ने ‘रामलीला’ की रचना बर्फखाना रोड पर स्थित बर्डघाट की रामलीला के पात्रों की दयनीय स्थिति को ध्याान में रखकर लिखी गई, तो वहीं ‘बूढ़ी काकी’ मोहल्ले में बर्तन मांजने वाली एक बूढी महिला की कहनी है। गोदान भी अंग्रेजी हुकूमत में देश के किसानों के दर्द की तस्वीकर खींचती है, जिसका किरदार भी गोरखपुर के इर्दगिर्द ही घूमता है।
अभी भी प्रासंगिक हैं प्रेमचंद : गुलजार
प्रेमचंद की कृतियों 'गोदान' और 'निर्मला' को स्क्रीनप्ले प्रारूप में आज पेश करने वाले 81 वर्षीय गुलजार ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों में दर्शाई गई समस्याएं आज भी मौजूद हैं। गुलजार कहते हैं, 'प्रेमचंद आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे स्वतंत्रता से पहले के वक्त में थे।'