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जनरल बिपिन रावत के नेतृत्‍व में हुई बालाकोट एयरस्ट्राइक, जानें कैसे कई अहम फैसलों को अंजाम तक पहुंचाया

देश का पहला चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनने से पहले जनरल रावत थल सेना प्रमुख थे। उन्होंने इस पद पर रहते हुए कई अहम फैसले लिए और उन्हें अंजाम तक पहुंचाया। जनरल रावत के बतौर थलसेनाध्यक्ष सबसे अहम मिशन की बात की जाए तो वह बालाकोट एयरस्ट्राइक है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 08 Dec 2021 10:16 PM (IST)Updated: Wed, 08 Dec 2021 10:41 PM (IST)
जनरल बिपिन रावत के नेतृत्‍व में हुई बालाकोट एयरस्ट्राइक, जानें कैसे कई अहम फैसलों को अंजाम तक पहुंचाया
चीफ आफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जनरल बिपिन रावत। एक ऐसा नाम जो सख्त और साहसिक फैसले लेने के लिए विख्यात था। देश का पहला चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनने से पहले जनरल रावत थल सेना प्रमुख थे। उन्होंने इस पद पर रहते हुए कई अहम फैसले लिए और उन्हें अंजाम तक पहुंचाया। जनरल रावत के बतौर थलसेनाध्यक्ष सबसे अहम मिशन की बात की जाए तो वह बालाकोट एयरस्ट्राइक है। फरवरी 2019 में जब पाकिस्तान में घुसकर आतंकी कैंपों को नष्ट किया गया था तो थल सेना की कमान जनरल रावत के हाथ में ही थी।

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केवल यही नहीं, जनरल बिपिन रावत कई महत्वपूर्ण रणनीतिक आपरेशन का हिस्सा रहे। बालाकोट में आतंकी संगठन जैश ए मुहम्मद के ठिकानों पर हमला कर उन्हें नष्ट करने के दौरान बतौर थलसेनाध्यक्ष उन्होंने रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। बता दें क‍ि कश्मीर के पुलवामा में एक हमले में केंद्रीय सुरक्षा बल के 40 जवानों की शहादत के बाद भारतीय सैन्य बलों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर बालाकोट में आतंकी कैंपों को नेस्तनाबूत किया था। कहा जाता है कि इस आपरेशन के समय जनरल रावत दिल्ली में साउथ ब्लाक के अपने आफिस से कमान संभाल रहे थे।

पूर्वोत्तर में उग्रवाद को नियंत्रित किया

इसके अलावा 2015 में देश की पूर्वोत्तर सीमा से लगे पड़ोसी देश म्यांमार में भी आंतकरोधी आपरेशन में उन्होंने अपने अनुभव से दिशा दिखाई थी। उन्हें पूर्वोत्तर में उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए भी जाना जाता है।

दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में युद्ध कौशल में माने जाते थे माहिर

2016 में पाकिस्तान में घुसकर उड़ी आतंकी हमले का बदला जब भारतीय सैनिकों ने लिया था तब बिपिन रावत थल सेना के उप प्रमुख थे। उड़ी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले में 19 भारतीय सैनिकों की शहादत हुई थी। करीब 40 साल के सैन्य करियर में जनरल रावत कई बार काम्बैट पोजीशन पर रहे और कई मौकों पर सेना के अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में युद्ध में कुशल माना जाता था।

वह उत्तरी और पूर्वी कमान में तैनात रहे। दक्षिणी कमान में भी वह जनरल आफिसर कमांडिंग इन चीफ रहे। अरुणाचल प्रदेश में वह बतौर पर कर्नल वह 11 गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन के कमांडर रहे। ब्रिगेडियर के तौर पर उन्होंने कश्मीर के सोपोर में राष्ट्रीय रायफल्स की कमान संभाली। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भी काम किया और अफ्रीकी देश कांगो में तैनात रहे। उन्हें दो बार फोर्स कमांडेंट कमेंडेशन भी मिला।

जनरल रावत को मिले यह सम्मान 

-परम विशिष्ट सेवा मेडल

-उत्तम युद्ध सेवा मेडल

-अति विशिष्ट सेवा मेडल

-विशिष्ट सेवा मेडल

-युद्ध सेवा मेडल

-सेना मेडल


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