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दलदली जमीन से खेतों को बचाएगा 'बायो ड्रेनेज सिस्टम', बाढ़ग्रस्‍त क्षेत्रों के लिए है वरदान

बायो ड्रेनेज सिस्टम को पूरी तरह प्राकृतिक रूप से तैयार किया गया है। शोध में नौ प्रजाति के पेड़ जल भराव की समस्या को प्राकृतिक तरीके से खत्म करने में सक्षम पाए गए हैं।

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 06:06 AM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 06:06 AM (IST)
दलदली जमीन से खेतों को बचाएगा 'बायो ड्रेनेज सिस्टम', बाढ़ग्रस्‍त क्षेत्रों के लिए है वरदान
दलदली जमीन से खेतों को बचाएगा 'बायो ड्रेनेज सिस्टम', बाढ़ग्रस्‍त क्षेत्रों के लिए है वरदान

बिलासपुर, जेएनएन। दलदल या ज्यादा जल भराव वाले खेतों की फसलों को अब बेहद सरल तकनीक से बचाया जा सकेगा। इसमें नौ प्रजाति के पेड़ मदद करेंगे। इस तकनीक को बायो ड्रेनेज सिस्टम (जैविक जल निकास पद्धति) के नाम से पहचान मिलने जा रही है। नई पद्धति को ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि एवं रिसर्च स्टेशन बिलासपुर के वरिष्ठ वानिकी विज्ञानी डॉ. अजीत विलियम्स ने तैयार किया है। यह तकनीक उन इलाकों के लिए वरदान बनेगी, जहां हर साल बाढ़ के बाद फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है।

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इन पेड़ों में पानी खींचने की गजब क्षमता

इस तकनीक को पूरी तरह प्राकृतिक रूप से तैयार किया गया है। शोध में नौ प्रजाति के पेड़ जल भराव की समस्या को प्राकृतिक तरीके से खत्म करने में सक्षम पाए गए हैं। इनमें नीलगिरी, सेंटेड नीलगिरी, सफेदा, अर्जुन, देसी बबूल, कदंब, करंज, कांटा बांस और विलायती बबूल मुख्य हैं। इन प्रजाति के पेड़ों में आसपास जमा हुए पानी को खींचने की क्षमता है। अच्छी बात यह है कि पेड़ों की ये प्रजातियां तैयार होने में ज्यादा समय भी नहीं लेती हैं। तीन वर्ष में इन प्रजातियों के पेड़ तैयार हो जाते हैं।

प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रहते हैं ये पेड़

शोध से यह भी स्पष्ट हुआ है कि पेड़ों की इन प्रजातियों में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रहने की क्षमता है। दलदली जमीन लवणीय होती है। इसमें सामान्य प्रजाति के पौधे जिंदा नहीं रह पाते हैं। विज्ञानी डॉ. विलियम्स का कहना है कि यह तकनीक सतह के जल को कम करने में सक्षम है। इसके साथ ही पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल भी है।

पानी अवशोषित करने की क्षमता

देसी बबूल में 21.5 प्रतिशत, सफेदा में 3.9 प्रतिशत, नीलगिरी में 25.6 प्रतिशत और अर्जुन के पेड़ में 22.3 प्रतिशत पानी अवशोषित करने की क्षमता होती है। ऐसे में ये पेड़ बड़ी तेजी से पानी खींचकर जमीन को फसलों के लिए उपयोगी बना सकते हैं।

एक हेक्टेयर में रोपने होंगे 1667 पौधे

कृषि विज्ञानी विलियम्स ने बताया कि बायो ड्रेनेज तकनीक के तहत एक हेक्टेयर में 1667 पौधों को कतार में रोपना होगा। एक से दूसरे पौधे के बीच की दूरी तीन मीटर होनी चाहिए। इसके अलावा ब्लॉक पौधारोपण भी किया जा सकता है।

ये हैं अतिरिक्त फायदे

जैविक जल निकासी के लिए जिन नौ प्रजाति के पौधे जब पेड़ का रूप ले लेते हैं तब लकड़ी, हरा चारा, गिरने वाली पत्तियों से बनने वाली खाद को अतिरिक्त लाभ के रूप में लिया जा सकता है।


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