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स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने का निजी विधेयक राज्यसभा में पेश

वाईएसआर कांग्रेस के सांसद वी. विजयसाई रेड्डी ने स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने के वास्ते संविधान में संशोधन कर नया अनुच्छेद 21बी जोड़ने का प्रस्ताव किया है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 18 Dec 2017 12:15 PM (IST)Updated: Mon, 18 Dec 2017 12:20 PM (IST)
स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने का निजी विधेयक राज्यसभा में पेश
स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बनाने का निजी विधेयक राज्यसभा में पेश

नई दिल्ली (एजेंसी)। शिक्षा के अधिकार की तर्ज पर लोगों को नि:शुल्क स्वास्थ्य सुरक्षा सेवाएं भी मुहैया कराने के लिए राज्यसभा में शुक्रवार को एक निजी विधेयक पेश किया गया। वाईएसआर कांग्रेस के सांसद वी. विजयसाई रेड्डी ने स्वास्थ्य के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने के वास्ते संविधान में संशोधन कर नया अनुच्छेद 21बी जोड़ने का प्रस्ताव किया है।

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बिल के प्रावधानों के मुताबिक राज्य सभी नागरिकों के लिए रोगों की रोकथाम, इलाज, नियंत्रण तथा जरूरी दवाओं तक पहुंच के लिए एक स्वास्थ्य सुरक्षा सिस्टम उपलब्ध कराएगा। इसमें कहा गया है कि सभी नागरिकों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं, आपातकालीन चिकित्सीय इलाज तथा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा मिलनी चाहिए। इसके लिए सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के मद में आठ फीसदी से कम बजट का प्रावधान नहीं करेगी।

जीडीपी का 1.4 प्रतिशत होता है खर्च रेड्डी का तर्क है कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का मात्र 1.4 फीसदी खर्च करती है। जन स्वास्थ्य का ढांचा अपर्याप्त तथा असमान है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2015 के ड्राफ्ट में इस बात का उल्लेख है कि बीमारियों पर खर्चे के कारण हर साल 6.3 करोड़ लोग गरीबी के शिकार होते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरतों के लिए बड़ी संख्या में लोगों के पास कोई आर्थिक सुरक्षा नहीं है। स्वास्थ्य सुविधा देने का दायित्व सरकार पर उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 21 का दायरा ब़़ढाकर लोगों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का दायित्व कल्याणकारी सरकार का होना चाहिए।

स्वास्थ्य के अधिकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिली हुई है। यह मानवाधिकार की वैश्विक घोषषणा तथा आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संधि में भी शामिल है और भारत इन पर हस्ताक्षर कर चुका है। वैसे तो संसद का कोई भी सदस्य निजी बिल पेश कर सकता है लेकिन उसे संसदीय मंजूरी मिलने की संभावना बहुत ही कम होती है। 


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