Bilkis Bano Case के लिए आज का दिन बेहद अहम, दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर होगी सुनवाई
Bilkis Bano Case आज सुप्रीम कोर्ट बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका को लेकर सुनवाई करेगा। जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ आज इस मामले की अहम सुनवाई करेगी। बिलकिस बानो केस के लिए आज का दिन बेहद अहम है।
नई दिल्ली, एएनआई। सुप्रीम कोर्ट 2002 के गोधरा दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार यानि 27 मार्च, 2023 को सुनवाई करेगा। गुजरात सरकार ने पिछले साल 10 अगस्त को 11 दोषियों को छूट दी थी, जिसके बाद 15 अगस्त, 2022 को सभी रिहा हो गए थे।
सुनवाई के लिए नई पीठ का गठन
22 मार्च को, भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि वह इस मामले में दलीलों की सुनवाई के लिए एक बेंच का गठन करेंगे। बानो की ओर से पेश अधिवक्ता शोभा गुप्ता द्वारा मामले को जल्द सूचीबद्ध करने की याचिका का उल्लेख करने के बाद उन्होंने कहा, ''मैं एक पीठ का गठन करूंगा।" जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ 27 मार्च, 2023 को मामले की सुनवाई करेगी।
रिहाई के आदेश के खिलाफ दायर हुई थी याचिका
इससे पहले भी अधिवक्ता गुप्ता ने तत्काल सुनवाई के लिए मामले का उल्लेख किया और कहा कि सीजेआई द्वारा एक नई पीठ गठित करने की आवश्यकता है क्योंकि न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
दोषियों की समय से पहले रिहाई के खिलाफ याचिका दायर करने के अलावा, बानो ने पहले के आदेश की समीक्षा के लिए एक समीक्षा याचिका भी दायर की थी, जिसमें उसने गुजरात सरकार से दोषियों में से एक की छूट के लिए याचिका पर विचार करने को कहा था।
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन ने दायर की थी याचिका
कुछ जनहित याचिकाएं दायर कर 11 दोषियों को दी गई छूट को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। ये याचिकाएं नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन ने दायर की हैं, जिसकी महासचिव एनी राजा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की सदस्य सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा हैं।
गुजरात सरकार ने जारी किया था हलफनामा
गुजरात सरकार ने अपने हलफनामे में दोषियों को मिली छूट का बचाव करते हुए कहा था कि उन्होंने जेल में 14 साल की सजा पूरी कर ली है और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया है। राज्य सरकार ने कहा कि उसने 1992 की नीति के अनुसार सभी 11 दोषियों के मामलों पर विचार किया है और 10 अगस्त, 2022 को छूट दी गई थी। केंद्र सरकार ने भी दोषियों की समय से पहले रिहाई को मंजूरी दे दी थी।
"आजादी का अमृत महोत्सव" के जश्न के तहत नहीं हुई रिहाई
साथ ही, हलफनामे में लिखा था कि यह ध्यान रखना जरूरी है कि "आजादी का अमृत महोत्सव" के जश्न के हिस्से के रूप में कैदियों को छूट देने के सर्कुलर के तहत छूट नहीं दी गई थी।
हलफनामे में कहा गया है, "राज्य सरकार ने सभी रायों पर विचार किया और 11 कैदियों को रिहा करने का फैसला किया, क्योंकि उन्होंने जेलों में 14 साल और उससे अधिक की उम्र पूरी कर ली है और इस दौरान उनका व्यवहार अच्छा पाया गया है।"
लोकस स्टैंड पर उठाए सवाल
सरकार ने उन याचिकाकर्ताओं के लोकस स्टैंड पर भी सवाल उठाया था। दलीलों में कहा गया है कि इस जघन्य मामले में छूट पूरी तरह से जनहित के खिलाफ होगी और सामूहिक सार्वजनिक अंतरात्मा को झकझोर देगी, साथ ही पूरी तरह से पीड़िता के हितों के खिलाफ होगी।
11 दोषियों को हुई थी आजीवन कारावास की सजा
गुजरात सरकार ने 11 दोषियों को 15 अगस्त को रिहा कर दिया, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में सभी 11 आजीवन कारावास के दोषियों को 2008 में उनकी सजा के समय गुजरात में प्रचलित छूट नीति के अनुसार रिहा कर दिया गया था।
सामूहिक दुष्कर्म के दौरान पांच माह की गर्भवती थी बिलकिस बानो
मार्च 2002 में गोधरा दंगे के बाद, बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उसकी तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के 14 सदस्यों के साथ मरने के लिए छोड़ दिया गया था। वडोदरा में जब दंगाइयों ने उनके परिवार पर हमला किया तब वह पांच महीने की गर्भवती थीं।