जो काम सरकार नहीं कर पाई वह 73 वर्षीय डॉक्टर ने कर दिखाया, ऐसे बुझा रहे वन्यप्राणियों की प्यास
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 73 साल के डॉक्टर प्रकाश लाडीकर ने भीषण गर्मी में जानवरों की प्यास बुझाने के लिए खुद ही पानी की टंकी बनवा रहे हैं।
राधाकिशन शर्मा, बिलासपुर। भीषण गर्मी के बीच भूजल स्तर में तेजी के साथ गिरावट दर्ज की जा रही है। इस तरह के संकट से अचानकमार सेंचुरी एरिया के वन्यप्राणी भी अछूते नहीं है। अचानकमार के जंगलों में बेजुबान वन्यप्राणियों की प्यास बुझाने के लिए सरकारी महकमा जो काम नहीं कर पाई वह काम बिलासपुर के अब 73 वर्षीय बुजुर्ग चिकित्सक डॉ.प्रकाश लाडीकर ने कर दिखाया है। जंगल के आसपास जहां-जहां वन्यप्राणियों का रहवास है वहां-वहां डॉ.लाडीकर सीमेंट की बड़ी-बड़ी टंकियां बनवा रहे हैं। टंकी में पानी भरने की व्यवस्था भी कर रहे हैं। वन्यप्राणी यहां आकर अपना प्यास भी बुझा रहे हैं।
डॉ. लाडीकर पेश से चिकित्सक हैं। उम्रदराज होने के बावजूद वे आज भी नियमित रूप से चिकित्सालय जाते हैं और मरीजों की जांच भी करते हैं। वे पर्यावरण प्रेमी भी हैं। शहर से तकरीबन 105 किलोमीटर की दूरी पर अचानकमार सेंचुरी एरिया है। यहां वन्यप्राणियों की संख्या बहुतायत में है। पर्यावरण के साथ ही वन्यप्राणियों के प्रति डॉ.लाडीकर के मन में शुस्र्आत से ही लगाव रहा है। आज भी वे समय निकालकर जंगल जाते हैं। आज से एक वर्ष पहले जब वे गर्मी के दिनों में अपने परिवार के साथ अचानकमार जंगल गए तब पता चला कि यहां के प्राकृतिक जलस्रोत पूरी तरह सूख गया है। वन्यप्राणियों के लिए पीने की पानी की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है। प्राकृतिक जलस्रोत के अलावा जंगल के बीच से निकली अरपा का आंचल भी पूरी तरह सूखी हुई है। बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे वन्यप्राणियों की दुर्दशा उनसे देखी नहीं गई। उन्हांेने अपने खर्चे से जंगल के बाहरी इलाकों में सीमेंट की बड़ी-बड़ी टकियां बनवाना शुरू किया। टंकी बनवाने के बाद जंगल में रहने वाले वनवासियों की मदद से टंकियों में पानी भराना शुरू किया। टंकियों में जैसे ही पानी भरा वन्यप्राणी भी प्यास बुझाने आने लगे। जंगल एरिया के आसपास निर्माण सामग्री की दुकान भी नहीं है। लिहाजा उन्होंने 30 किलोमीटर कोटा से निर्माण सामग्री जंगल के बाहरी इलाकों में डंप कराना शुरू किया। मिस्त्री व वनवासियों की मदद से पानी की बड़ी-बड़ी टंकियां बनवाना शुरू किया। वनवासियों को काम के बदले राशि का भुगतान भी वे करते हैं। उनका कहना है कि इसी बहाने वन्यप्राणियों की प्यास बुझ जाएगी और बेकार घर में बैठे वनवासियों को काम भी मिल जाएगा।
वन्यप्राणियों को भटकते देखा तो कुछ करने की ठानी
डॉ.प्रकाश लाडीकर का कहना है कि जब वे परिवार व परिजनों के साथ जंगल घुमने गए थे तब वन्यप्राणियों को पानी की तलाश में जंगल में भटकते देखा। उनकी हालत देखी नहीं गई। तभी मन मंे ठान लिया था कि इनके लिए कुछ करना होगा। सेंचुरी एरिया के भीतर निर्माण कार्य की अनुमति नहीं है। लिहाजा जंगल के बाहरी हिस्से में उन्होंने वन्यप्राणियों की प्यास बुझाने के लिए छोटा सा प्रयास किया है। उनका संकल्प है कि इस काम को वे आखिरी सांस तक करते रहेंगे।
पेंशन की राशि का करते हैं सदुपयोग
डॉ. लाडीकर का कहना है कि पेंशन की राशि से वे इस तरह का काम करते रहते हैं। बेजुबान वन्यप्राणियों की मदद हो जाए इससे भला और क्या चाहिए। मन को सुकून मिलता है। पेशे से हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ.लाडीकर उनके अस्पताल में आने वाले गरीब व बेसहारा लोगों का मुफ्त में इलाज करते हैं और दवा भी मुफ्त में देते हैं।
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