बिहार ने SC से प्रोन्नति में आरक्षण मामले पर जल्द सुनवाई करने का किया आग्रह, कहा- 18000 कर्मचारी हुए प्रभावित
बिहार ने प्रोन्नति में आरक्षण मामले पर जल्द सुनवाई का आग्रह किया है। मामले के लटके होने के चलते 17 से 18 हजार कर्मचारियों की प्रोन्नति प्रभावित हुई है। पिछले दस वर्षों से प्रोन्नति में आरक्षण नहीं होने के चलते बिहार सरकार के 17 से 18 हजार पद खाली हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। बिहार में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) को प्रोन्नति में आरक्षण मामले का समाधान जल्द निकल सकता है। पिछले दस वर्षों से प्रोन्नति में आरक्षण नहीं होने के चलते बिहार सरकार के 17 से 18 हजार पद खाली हैं। सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील पीएस पटवालिया ने सोमवार को मुख्य न्यायाधीश की अदालत के सामने बिहार में प्रोन्नति में आरक्षण मामले का उल्लेख किया और जल्द सुवनाई की मांग की।
पीएस पटवालिया ने कहा कि बिहार ने एक अर्जी दाखिल की है, जिसमें वह विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) वापस लेना चाहती है, जबकि सुप्रीम कोर्ट की रोक के चलते बिहार में 70 प्रतिशत सीटें खाली हैं। इसलिए बिहार सरकार इसे वापस लेना चाहती है।
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इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीश केएम जोसेफ की पीठ ने इस पर सुनवाई के लिए छह जनवरी की तारीख तो दी है, लेकिन वकील पटवालिया ने कहा कि तीन जजों की पीठ को इस मामले की सुनवाई करनी है। इस पीठ को भी चीफ जस्टिस ही गठित करेंगे। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ठीक है। वह इस मामले को देखेंगे और पीठ गठित करने का प्रयास करेंगे।
उधर, आल इंडिया कन्फेडरेशन आफ एससी एंड एसटी आर्गेनाइजेशन की बिहार इकाई ने बिहार सरकार के अपील वापस लेने का सख्त विरोध किया है। संगठन की ओर से वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने कहा कि इससे कर्मचारियों का हित प्रभावित होगा। इस आधार पर जिन लोगों को प्रोन्नति पहले मिल चुकी है, वे अवनत किए जा सकते हैं। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने संगठन से हलफनामा दाखिल कर बताने के लिए कहा था कि बिहार सरकार के अपील वापस लेने से कैसे और कितने कर्मचारी प्रभावित हो सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार में एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने का 21 अगस्त 2012 का प्रस्ताव और उसके बाद राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया आदेश पटना हाईकोर्ट की एकल पीठ ने चार मई 2015 को रद कर दिया था। इसके बाद बिहार सरकार ने हाई कोर्ट की खंडपीठ में अपील की थी, जिसे 30 जुलाई 2015 को खारिज कर दिया गया था।
बिहार सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन बाद में नई अर्जी दाखिल कर अपनी विशेष अनुमित याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी और कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार नए सिरे से कैडरवार आंकड़े एकत्र कर आगे बढ़ेगी।
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