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अतीत हो या वर्तमान बिहार खुद में एक ब्रांड, धार्मिक समागम और सहिष्णुता की धरोहर भी है ये राज्‍य

जिधर भी जाएं जहां कदम रखें वहीं इतिहास के पन्नों में दर्ज मिलेगा बिहार के सपूतों का नाम। अतीत की वह दास्तां वर्तमान को भी प्रेरित करती है। यह बिहार है भारत की हृदयस्थली। कहीं से भी बात शुरू करें यहां की हर कहानी खुद में एक ब्रांड है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 11:44 AM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 11:44 AM (IST)
अतीत हो या वर्तमान बिहार खुद में एक ब्रांड, धार्मिक समागम और सहिष्णुता की धरोहर भी है ये राज्‍य
बिहार की भूमि ज्ञान-विज्ञान का भी केंद्र रही है।

रास बिहारी प्रसाद सिंह। आदिगुरु शंकाराचार्य को भी बिहार की धरती पर मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ के लिए आना पड़ा था। बिहार सिर्फ भारत का एकसंघीय राज्य भर नहीं है। यह एक संस्कृति है, जो अनादिकाल से कई समूहों के समागम और सामंजन का परिणाम है। यह भगवान महावीर और बुद्ध के धार्मिक चिंतन और मानव कल्याण के सुविचारों की कर्मभूमि है। इसकी पहचान श्रीगुरु गोविंद सिंह जी की मातृभूमि और महात्मा गांधी की कर्मभूमि के रूप में भी है। महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह हो, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की आग उगलती राष्ट्रवादी कविताएं हों या जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति का आह्वान। सच्चाई यही है कि बिहार से निकली आवाज भारत की पहचान रही है।

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धार्मिक समागम की धरोहर

बिहार धार्मिक समागम और सहिष्णुता की धरोहर है। इसी भूमि पर बौद्ध एवं जैन धर्म का उदय हुआ। भगवान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व में वैशाली गणतंत्र के कुंडलपुर गांव में हुआ और उन्होंने शरीर का त्याग भी इसी राज्य के मगध क्षेत्र स्थित पावापुरी में किया। भगवान बुद्ध को बोधगया के महाबोधि वृक्ष की छाया में ही अनंत ज्ञान की प्राप्ति हुई। वस्तुत: विहार शब्द का उदय बौद्ध धर्मावलंबियों के पूजा, ध्यान और समाधि स्थल के रूप में हुआ। चंपारण के केसरिया बौद्ध स्तूप से लेकर सारनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) के बीच अनेक स्थल हैं, जहां बौद्ध धर्म की पहचान मौजूद है। राजगीर एक महत्वपूर्ण केंद्र है। सिख धर्म के अंतिम गुरु श्रीगुरु गोविंद सिंह जी की जन्मस्थली पटना साहिब को भूमंडलीय पहचान देती है। वे गुरु पंरपरा के अंतिम गुरु थे। महावीर ने जहां हिंसा को हिंसा पर विजय का अस्त्र माना, वहीं श्रीगुरु गोविंद सिंह जी ने अन्याय के खिलाफ तलवार निकालने को भी गुरु की सेवा में एक समर्पण का रूप दिया। पटना साहिब का गुरुद्वारा हर वर्ष प्रकाश पर्व मनाता है। इस दिन बिहार का प्रकाश विश्व के कोने-कोने तक पहुंचता है।

माता सीता की जन्मभूमि

माता सीता की जन्मभूमि, विश्वामित्र और वाल्मीकि ऋषि का आश्रम भी बिहार की पहचान से जुड़ा है। बिहार में राजगीर, गया-बोधगया, वैशाली और मंदार हिल (बांका) ऐसे स्थल हैं, जो हिंदू, बौद्ध और धर्मावलंबियों के लिए समान महत्व रखते हैं। विश्व के 100 से भी अधिक देशों में रहने वाले बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए बिहार भ्रमण बगैर जीवन अधूरा है। धार्मिक सद्भाव का संदेश बिहार की धरती द्वारा ईसा काल के पूर्व से ही दिया गया और आज भी यह बिहार की पहचान है। 

ज्ञान-विज्ञान का केंद्र

बिहार की भूमि ज्ञान-विज्ञान का भी केंद्र रही है। नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की इमारतें इसका प्रमाण हैं। विदेशी आक्रमणकारियों ने इन्हें तहस-नहस कर दिया था। कहते हैं कि आक्रमण के बाद नालंदा विश्वविद्यालय में नष्ट की गई पुस्तकें कई महीने तक जलती रही थीं। जब विश्व में विश्वविद्यालय का कोई ज्ञान नहीं था, तब यहां विश्वविद्यालय थे। दूसरी स्थापना ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी में महाराज कुमार गुप्त द्वारा की गई थी। सातवीं सदी तक यह विश्व में ज्ञान-विज्ञान का सबसे बड़ा केंद्र था। चीनी यात्रियों के वृतांत से स्पष्ट है कि यहां तकरीबन 10 हजार छात्र और दो हजार शिक्षक थे। बख्तियार खिलजी द्वारा इसे 1200 ई. के आसपास बर्बाद कर दिया गया था। इसी प्रकार भागलपुर के अंतिचक गांव के आसपास अवस्थित भग्नावशेष गौरवशाली विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना आठवीं शताब्दी में पाल राजा धर्मपाल ने की थी। यह बौद्ध धर्म से संबंधित ज्ञान का बड़ा केंद्र था। बख्तियार खिलजी ने 1193 ई. में इस विश्वविद्यालय को भी नष्ट कर दिया था। इन दोनों विश्वविद्यालयों के अवशेष हमारे गौरवशाली अतीत का संदेश विश्वभर में देते हैं।

चाणक्य और आर्यभट्ट का बिहार

गौरवशाली मौर्य साम्राज्य की स्थापना में चाणक्य की भूमिका को भला कौन भूल सकता है! आज के बिहार की राजनीतिक सीमा को इसी शासक वंश के प्रियदर्शी अशोक ने उत्कल से अफगानिस्तान तक फैलाया था। चाणक्य का ज्ञान ही मौर्य वंश के गौरव का आधार था। प्राचीन काल में भी बिहार की भूमि ज्ञान-विज्ञान के लिए उर्वर थी। आर्यभट्ट (476-550 ई.) के विज्ञान का केंद्र भी बिहार ही था। महाकाव्यों को अगर देखें तो महर्षि विश्वामित्र और महर्षि वाल्मीकि ने भी इसी भूमि पर तपस्या की थी। आर्यभट्ट ने गणित और खगोलीय अध्ययन में दुनिया को आधारभूत ज्ञान दिया। उन्हें ही शून्य की संकल्पना का जनक माना जाता है। वैशाली का प्राचीनतम गणतंत्र बिहार की ही देन है।

स्वाद का खजाना

यहां के कृषि क्षेत्र की बात करें तो भागलपुर जिले के जगदीशपुर का कतरनी चावल और जर्दालू आम, खगड़िया जिला का मक्का, शेखपुरा का प्याज, नालंदा जिले का आलू, समस्तीपुर की लाल मिर्च, वैशाली का मालभोग केला और मुजफ्फरपुर की शाही लीची बिहार की पहचान है। इनके अतिरिक्त जलफल अर्थात मखाना और सिंघाड़ा की खेती के लिए भी बिहार प्रसिद्ध है। मखाना, लीची, आम तथा मक्का यहां से देश-विदेश में निर्यात किए जाते हैं। यहां से दो दर्जन से भी अधिक देशों में मखाना भेजा जाता है। मक्के का निर्यात सुदूर दक्षिण में अर्जेंटीना तक होता है। 2013 में हमारे एक जापानी मित्र पटना आए थे। मैंने जब उन्हें नमकीन मखाना खिलाया तो वे दंग रह गए और सौगात के रूप में साथ ले गए। मखाना बिहार के लिए एक तरह से ब्रांड है। बिहार का लिट्टी-चोखा, बाढ़ जिले के मेवे की लाई, गया का तिलकुट, सिलाव का खाजा, मनेर का लड्डू आदि की देश के कई हिस्सों में पहचान है। एक नहीं, कई-कई चीजें हैं, जो सिर्फ और सिर्फ बिहार में हैं। जरूरत है इन्हें जन-जन तक पहुंचाने और इनकी पहचान को बढ़ाने की।

अनंत संभावनाओं का गढ़

जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति का नारा नवीन राजनीतिक दर्शन था, जिसने पूरे देश को प्रभावित किया। बिहार महात्मा गांधी और जयप्रकाश की राजनीतिक प्रयोगशाला था। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, बिहार राज्य निर्माण के जनक डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को बिहार का ब्रांड कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं। बिहार प्रारंभ से ही विकास की नई गाथाएं लिखता रहा है, लेकिन प्रवासी मजदूर, उच्च शिक्षा के लिए युवाओं का पलायन तथा रोजगार की खोज में भटकते बिहारी युवाओं को निराशा की स्थिति में अक्सर हीनता का बोध होने लगता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी परंपराएं, विरासत, जीवनशैली, कला-संस्कृति और कृषि हमें अलग पहचान देती है। ये बिहार के ब्रांड हैं, जिनकी मार्केटिंग कर रोजगार के नए अवसर तैयार हो सकते हैं, पर्यटन की वैश्विक ऊंचाई हासिल कर सकते हैं और विकास की नई लकीर खींच सकते हैं ।

मधुबनी और मंजूषा की विरासत

कला-साहित्य के क्षेत्र में भी बिहार की एक अलग पहचान रही है। मधुबनी चित्रकला (पेंटिंग) अथवा मिथिला पेंटिंग मुख्यत: दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, सीतामढ़ी, पूर्णिया तथा सुपौल जिलों में प्रसिद्ध है। यह कला सैकड़ों वर्ष पूर्व महिलाओं द्वारा रंगोली के रूप में विकसित की गई थी। धीरे-धीरे यह कला आधुनिक रूप में कपड़ों, दीवारों एवं कागज पर उतर आई। यह पेंटिंग अब शौकिया व्यवसाय से बदलकर अंतरराष्ट्रीय पहचान ले चुकी है। इन चित्रों में राजा शैलेश का जीवन वृत्तांतर्, हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें, सूर्य-चंद्रमा, पेड़-पौधे जैसे प्राकृतिक नजारे और तुलसी विवाह आदि का मनमोहक दृश्य प्रस्तुत किया जाता है। इनमें मुख्यत: गहरा लाल, हरा, नीला और काले रंग का उपयोग होता है। ये रंग, हल्दी, केले के पत्ते, नींबू, पीपल की छाल, दूध आदि के मिश्रण से तैयार किए जाते हैं। यह परंपरागत नवाचार विश्व में विरल है। मधुबनी जिला का रांटी और जितवारपुर गांव इस चित्रकला का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन चुका है। गांव की साधारण महिलाएं जैसे जगदंबा देवी, सीता देवी, गंगा देवी, महासुंदरी देवी, बौआ देवी और गोदावरी दत्ता इस कला की उत्कृष्टता के लिए पद्मश्री से भी सम्मानित की जा चुकी हैं। इसी तरह अंग क्षेत्र भागलपुर की मंजूषा कला भी यहां की पहचान है।

(लेखक पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हैं)


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