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सैन्य ठिकानों पर हमले रोकना बड़ी चुनौती

पाकिस्तान सेना ने कश्मीर में भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला करने के लिए जैश व हिज्ब उल मुजाहिदीन के आतंकियों की विशेष टीम गठित की है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Fri, 24 Feb 2017 07:26 PM (IST)Updated: Fri, 24 Feb 2017 08:02 PM (IST)
सैन्य ठिकानों पर हमले रोकना बड़ी चुनौती
सैन्य ठिकानों पर हमले रोकना बड़ी चुनौती

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । पाकिस्तान के हुक्मरानों की तरफ से जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी मौलाना मसूद अजहर को बचाने की हो रही तमाम कोशिशें और कश्मीर में एक के बाद एक हो रहे आतंकी हमलों में एक गहरा ताल्लुक है। जनवरी, 2016 में पठानकोट से लेकर दो दिन पहले कश्मीर घाटी के सोपियां में हुए हमले में जिन आतंकियों का इस्तेमाल किया गया है उन्हें तैयार करने में जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर की भूमिका अहम रही है।

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पाकिस्तान सेना ने कश्मीर में भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला करने के लिए जैश व हिज्ब उल मुजाहिदीन के आतंकियों की विशेष टीम गठित की है। पाक-अफगानिस्तान सीमा पर इन आतंकियों के समूहों को पिछले चार-पांच वर्षो से विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। पाकिस्तान सेना मौका देख कर इन्हें भारत के भीतर भेज रही है जो भारतीय सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं। कश्मीर में इनका संचालन हिज्ब उल मुजाहिदीन के स्थानीय कमांडर कर रहे हैं।

भारतीय सुरक्षा बलों के जानकार भी सैन्य प्रतिष्ठानों पर हो रहे हमलों से चिंतित है। पूर्व लेफ्ट जनरल सैयद अता हसनैन के मुताबिक, 'सोपियां जैसा हमला पहले कब हुआ है यह याद नहीं आ रहा। दक्षिणी कश्मीर में रात के वक्त सेना के काफिले पर घात लगा कर जिस तरह से हमला किया गया है वैसा पहले कम देखा गया है। आरआर के जिस यूनिट पर यह हमला किया गया है उसे बेहद शानदार माना जाता है।' हसनैन ने अपने विचार सोशल मीडिया पर शेयर किये हैं।

भारतीय सैन्य बलों की चिंता इस बात से भी है कि पिछले कुछ समय से हमला करने वाले आतंकी पहले से काफी ज्यादा प्रशिक्षित हैं। चाहे पठानकोट सैन्य ठिकाने पर हमला हो या उड़ी पोस्ट पर हमला हो या सोपियां में हमला हो। आतंकी एक रणनीति के तहत हमला कर रहे हैं। यह एक अहम वजह है कि भारतीय सुरक्षा बलों को ज्यादा क्षति उठानी पड़ रही है। वर्ष 2016 में पिछले छह वर्षो में सबसे ज्यादा भारतीय सेना के जवानों कश्मीर में शहीद हुए हैं। इस साल भी संकेत बहुत खराब हैं। पिछले एक हफ्ते में ही बांदीपुरा में चार और सोपियां में तीन भारतीय सेना के जवान शहीद हो चुके हैं।

सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला कराना पाकिस्तान सेना व वहां की सरकार की मिली-जुली रणनीति का नतीजा है। जैश व हिज्ब उल की टीम को तैयार करने की शुरुआत वर्ष 2012 में हुई। उस समय भारत व पाकिस्तान के रिश्ते तनाव भरे भी नहीं थे। तभी पाकिस्तान ने आतंकी हमलों को तेज करने और घाटी में जनांदोलन को नए सिरे से भड़काने की साजिश रची थी।

सैन्य प्रतिष्ठानों पर आतंकी हमलों की वजह से कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में तवज्जो मिलती है। साथ ही वहां होने वाले विरोध प्रदर्शनों को पाकिस्तान पूरी दुनिया में प्रचारित करता है। कश्मीरी युवाओं को भारतीय सेना के खिलाफ भड़काने का काम भी किया जा रहा है। ऐसी सूचनाएं भी मिल रही हैं कि आतंकी वारदातों के बढ़ने के साथ ही स्थानीय स्तर पर पाक की मदद से चलाये जा रहे आतंकी संगठनों में शामिल होने वाले स्थानीय युवाओं की संख्या बढ़ रही है।


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