नई सरकार के समक्ष सड़क हादसों पर लगाम लगाने की बड़ी चुनौती
वर्ष 2016 के मुकाबले मामूली कमी के बावजूद 2017 में भारत में 4.64 लाख सड़क हादसों में तकरीबन 1.47 लाख लोग मारे गए। यही नहीं 2018 के आंकड़े फिर बढ़त दर्शा रहे हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। नई मोदी सरकार के समक्ष बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर नियंत्रण की चुनौती है। पिछली सरकार ने सड़क निर्माण में कई मील के पत्थर गाड़े। लेकिन मोटर बिल के राज्यसभा में अटकने के कारण सड़क हादसों पर नियंत्रण करने में उसे कामयाबी नहीं मिल सकी। अब नई सरकार को जल्द से जल्द नया मोटर बिल पेश कर उसे दोनो सदनो से पारित कराना होगा ताकि यातायात नियमों से खिलवाड़ करने वालों के साथ सख्ती की जा सके।
वर्ष 2016 के मुकाबले मामूली कमी के बावजूद 2017 में भारत में 4.64 लाख सड़क हादसों में तकरीबन 1.47 लाख लोग मारे गए। यही नहीं, 2018 के आंकड़े फिर बढ़त दर्शा रहे हैं। ये स्थिति तब है जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र के उस ब्राजिलिया घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर रखे हैं, जिसमें 2020 तक सड़क हादसों में मौतों को आधा करने का वादा किया गया है।
इस वचन को निभाने के लिए मोदी सरकार 2016 में एकदम नया मोटर एक्ट लाने का प्रयास किया था। इसमें लापरवाह वाहन चालकों को अत्यंत कडे़ दंड के प्रावधान किए गए थे। लेकिन चौतरफा विरोध के परिणामस्वरूप सरकार को इसे वापस ले 1988 के मौजूदा मोटर एक्ट को ही संशोधित करने के लिए राजी होगा पड़ा। लेकिन वो उक्त संशोधन विधेयक को कभी कानून का जामा नहीं पहना सकी। विधेयक लोकसभा की देहरी तो पार कर गया, मगर राज्यसभा में अटक गया।
विधेयक में शराब पीकर गाड़ी चलाने पर मौजूदा 2000 रुपये के बजाय 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया था। इसी प्रकार मोबाइल फोन पर बात करने पर 1000 रुपये के बजाय 5000 रुपये, बिना लाइसेंस वाहन चलाने पर 500 रुपये के बजाय 5000 रुपये तथा रेड लाइट जंप करने, सीट बेल्ट बांधे बगैर चौपहिया वाहन तथा हेल्मेट पहने बगैर दुपहिया वाहन चलाने पर 1,000-1,000 रुपये के जुर्माने का प्रस्ताव है।
यही नहीं, नाबालिग के वाहन चलाने पर अभिभावक पर 25,000 रुपये के जुर्माने और तीन वर्ष की कैद के अलावा पीडि़त की मौत होने पर परिजनों को दस गुना क्षतिपूर्ति का प्रावधान किया गया था। उक्त सभी अपराधों में जुर्माने की राशि में सालाना दस फीसद की बढ़ोतरी की व्यवस्था भी थी।
सरकार ने 'मोटर संशोधन विधेयक, 2017' को पिछले साल अप्रैल में लोकसभा से पारित कराया था। लेकिन अगस्त में राज्यसभा में पेश कर सकी, जहां विपक्ष के विरोध के कारण विधेयक को प्रवर समिति के सुपुर्द करना पड़ा। समिति ने 22 दिसंबर को सौंपी रिपोर्ट में विधेयक को कुछ सामान्य संशोधनों के साथ मंजूर किए जाने की सिफारिश की।
इनमें सड़क दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मौत पर वाहन चालक को दो वर्ष के बजाय सात वर्ष की कैद, खरीद के वक्त ही वाहन का आजीवन एकमुश्त थर्ड पार्टी बीमा, 'हिट एंड रन' मामलों में जुर्माने की राशि को 25 हजार से बढ़ाकर दो लाख रुपये करने तथा यातायात पुलिस कर्मियों को बॉडी कैमरों से लैस करने के सुझाव शामिल थे। सरकार इन संशोधनों के लिए राजी भी थी। लेकिन इसके बावजूद राज्यसभा में विपक्ष के तीखे तेवरों को देखते हुए उसने बजट सत्र में विधेयक को पारित कराने का प्रयास नहीं किया और उसे लैप्स हो जाने दिया।
विपक्षी दलों की मुख्य आपत्ति विधेयक के उस प्रावधान पर थी जिसमें वाहनों का पंजीयन आरटीओ के बजाय डीलर के स्तर पर करने का प्रस्ताव था। इससे पहले पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्य विधेयक के कुछ प्रावधानों पर ये कहकर आपत्ति जता चुके थे कि इनसे राज्यों के अधिकारों का हनन होगा।
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