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Bhima Koregaon Case : नवलखा का रिकार्ड पेश करने संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश निरस्त

Bhima Koregaon Case सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा को दिल्ली से मुंबई स्थानांतरित करने के बारे में न्यायिक रिकार्ड दाखिल करने संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 07:28 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 07:49 PM (IST)
Bhima Koregaon Case : नवलखा का रिकार्ड पेश करने संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश निरस्त
Bhima Koregaon Case : नवलखा का रिकार्ड पेश करने संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश निरस्त

नई दिल्‍ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भीमा कोरेगांव मामले (Bhima Koregaon case) में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को दिल्ली से मुंबई स्थानांतरित करने के बारे में न्यायिक रिकार्ड दाखिल करने संबंधी एनआईए को निर्देश देने वाले दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा (Justices Arun Mishra), न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा (Navin Sinha) और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी (Indira Banerjee) की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को नवलखा (Gautam Navlakha) की जमानत याचिका पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं था। सर्वोच्‍च अदालत ने कहा कि यह मामला मुंबई की अदालतों के अधिकार क्षेत्र में आता है। 

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यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा की जमानत याचिका पर हाईकोर्ट की ओर से एनआइए के बारे में की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटा भी दिया है। इससे पूर्व की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 27 मई के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। दिल्‍ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने अपने आदेश में गौतम नवलखा को तिहाड़ जेल से मुंबई ले जाने में तेजी के लिए एनआइए को फटकार लगाई थी। सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब नवलखा ने आत्‍मसमर्पण किया तो उस दौरान दिल्ली में लॉकडाउन था। 

बाद में एनआईए ने मुंबई की विशेष अदालत से तिहाड़ में बंद नवलखा को पेश करने के लिए वारंट जारी करने की गुजारिश की थी। मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वारंट जारी होने के बाद नवलखा को मुंबई की अदालत में पेश किया गया। यही नहीं दिल्ली हाईकोर्ट को भी इस बारे में जानकारी दी गई थी। दिल्ली में जब लॉकडाउन खत्म हो गया था तब नवलखा को मुंबई ले जाया गया। मेहता ने कहा कि एनआइए पर दिल्‍ली हाईकोर्ट की टिप्पणियां गैर जरूरी थीं। मेहता की इस दलील पर सर्वोच्‍च अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट को याचिका पर विचार ही नहीं करना चाहिए था। 


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