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निजी क्षेत्र में बेहतर पेंशन की राह आसान नहीं, EPS पेंशन पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा EPFO

EPFO की EPS पेंशन योजना के तहत सम्मानजनक पेंशन पाने की उम्मीद कर रहे सेवानिवृत्त कर्मचारियों को झटका लग सकता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Fri, 17 May 2019 10:02 PM (IST)Updated: Fri, 17 May 2019 10:02 PM (IST)
निजी क्षेत्र में बेहतर पेंशन की राह आसान नहीं, EPS पेंशन पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा EPFO
निजी क्षेत्र में बेहतर पेंशन की राह आसान नहीं, EPS पेंशन पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा EPFO

नई दिल्ली, जेएनएन। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) की ईपीएस पेंशन योजना के तहत सम्मानजनक पेंशन पाने की उम्मीद कर रहे सेवानिवृत्त कर्मचारियों को झटका लग सकता है। ईपीएस पर केरल हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखने वाले वाले फैसले के खिलाफ ईपीएफओ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने जा रहा है। यह याचिका लोकसभा चुनावों के बाद कभी भी दाखिल हो सकती है।

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केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ईपीएस स्कीम के तहत नियोक्ता का योगदान पूरे वेतन से किए जाने का आदेश दिया था और इस पर लागू 15,000 रुपये की सीमा को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ईपीएफओ ने सुप्रीमकोर्ट में अपील की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।

केरल हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर के बाद ईपीएस स्कीम में बेहद मामूली पेंशन से निराश निजी क्षेत्र के कर्मचारियों में हर्ष की लहर व्याप्त हो गई थी, क्योंकि इससे उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद सम्मानजनक पेंशन मिलने का रास्ता साफ हो गया था। अभी 15,000 रुपये की सीमा के कारण निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को रिटायर होने के बाद ईपीएस पेंशन के रूप में एक हजार रुपये से लेकर अधिकतम तीन हजार रुपये तक की पेंशन मिलती है, क्योंकि उक्त सीमा के कारण पेंशन कोष में नियोक्ता की ओर से अधिकतम 1,250 रुपये का योगदान किया जाता है।

हाईकोर्ट ने 1995 के ईपीएस एक्ट के मूल प्रावधान का हवाला देते हुए इसे गलत माना और 2014 में किए गए उस संशोधन को खारिज कर दिया जिसके तहत योगदान के लिए वेतन पर 15,000 रुपये की सीमाबंदी लागू कर दी गई थी। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि ईपीएस के तहत नियोक्ता का योगदान कर्मचारी के पूरे वेतन से लिया जाएगा और इसके लिए अंतिम वर्ष के औसत मासिक वेतन को आधार बनाया जाएगा।

कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के मकसद से केंद्र सरकार द्वारा संचालित कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजना के लिए अभी हर महीने कर्मचारी के वेतन का 12 फीसद हिस्सा ईपीएफ में जाता है, जबकि इतनी ही रकम नियोक्ता द्वारा जमा कराई जाती है।

यही नहीं, सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों को पेंशन देने के इरादे से ईपीएफओ नियोक्ता के योगदान में से 8.33 प्रतिशत रकम कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) के खाते में हस्तांतरित करता है। अभी 15,000 रुपये की सीमाबंदी के कारण ये रकम अधिकतम 1,250 रुपये बैठती है। इस रकम से ईपीएस का जो कोष बनता है उससे 1,000-3,000 रुपये से ज्यादा पेंशन देना संभव नहीं है। परंतु पूरे वेतन से ईपीएस योगदान के हाईकोर्ट के फैसले से स्थिति बदल गई है और इससे आठ-दस गुना पेंशन पाने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि इससे ईपीएस कोष तो बढ़ जाएगा, किंतु ईपीएफ कोष घट जाएगा। हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार ईपीएस योगदान की गणना कर्मचारी के सेवा में आने वाले महीने के वेतन से शुरू कर सेवा के आखिरी महीने के वेतन के अनुसार की जाएगी।

ईपीएफओ का तर्क
ईपीएफओ का कहना है कि पूरे वेतन से ईपीएस योगदान से कर्मचारी की पेंशन अवश्य कई गुना बढ़ जाएगी, लेकिन इसे लागू करने से ईपीएस कोष पर दबाव बढ़ जाएगा। संगठन के मुताबिक पेंशन गणना का फॉर्मूला बदलना पड़ेगा। ईपीएस पेंशन की गणना एक फार्मूले के अनुसार की जाती है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएस कोष की स्थिति को समझे बगैर फैसले दिए हैं।

संगठन को डर भी
ईपीएफओ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की तैयारी अवश्य कर रहा है। लेकिन उसे इसके भी खारिज होने का डर भी बराबर सता रहा है। इस बीच ईपीएस पेंशन पर कोर्ट के फैसलों के बाद देश भर में निजी क्षेत्र के करोड़ों कर्मचारी और हजारों नियोक्ता पेंशन बढ़ने की उम्मीद में ईपीएफओ के क्षेत्रीय कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन उन्हें ये कहकर टाल दिया जा रहा है कि जब तक ईपीएफओ मुख्यालय से सर्कुलर जारी नहीं होता, तब तक वे बढ़ी पेंशन को लेकर कोई कदम नहीं उठा सकते।

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