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'नहीं हो सकती एक म्‍यान में दो तलवारें', यदि आप भी ऐसा मानते हैं तो जरा यहां आए, बदल जाएगी सोच

दिल्ली के करीब होने के कारण राजस्थान का अलवर शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल है। यदि राजस्थान घूमना चाहते हैं, तो क्यों न शुरुआत अलवर से ही करें।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 07 Feb 2019 01:40 PM (IST)Updated: Fri, 08 Feb 2019 08:49 AM (IST)
'नहीं हो सकती एक म्‍यान में दो तलवारें', यदि आप भी ऐसा मानते हैं तो जरा यहां आए, बदल जाएगी सोच
'नहीं हो सकती एक म्‍यान में दो तलवारें', यदि आप भी ऐसा मानते हैं तो जरा यहां आए, बदल जाएगी सोच

[श्यामसुंदर जोशी]। पूर्वी राजस्थान में बसा है यह शहर। यहां प्रवेश करते ही आप कर पाएंगे राजस्थानी ठाट के दर्शन यानी दुर्ग, महल, इमारतों की भव्यता आपका मन मोह लेगी। इस मौसम में एक अजब-सी ताजगी पूरे शहर में छाई है। यहां मौजूद कुदरती शीतलता बरबस ही आपको लुभा लेगी। हरे-भरे पहाड़, झील-जलाशय, झरने, वन और वन्यजीवों की खूबसूरत दुनिया बसती है यहां। एनसीआर में होने के कारण तेजी से विकसित हो रहा है यह शहर। केवल पर्यटन ही नहीं, उद्योग और रोजगार के क्षेत्र में भी काफी संभावनाएं हैं, क्योंकि यहां सरिस्का जैसा पर्यटन क्षेत्र है तो भिवाड़ी और नीमराणा जैसे औद्योगिक हब भी, जहां देश और दुनिया की बड़ी कंपनियों की इकाइयां स्थापित हैं।

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80 स्तंभों पर टिकी मूसी महारानी की छतरी
अलवर के आकर्षक और कलात्मक स्मारकों में शामिल है मूसी महारानी की छतरी। यह सिटी पैलेस के पीछे सागर जलाशय के किनारे बनी हुई है। संगमरमर के 80 स्तंभों पर टिकी यह छतरी राजपूत स्थापत्य कला की अनूठी मिसाल है। मूसी महारानी और तत्कालीन महाराजा बख्तावर सिंह की स्मृति में बनी इस छतरी से नजरें नहीं हटतीं। यहां आएं तो इस छतरी का दीदार करना न भूलें।

राव राजा प्रताप सिंह का शहर
मुगल काल के पराभव के दौरान साल 1770 में राव राजा प्रताप सिंह ने अलवर राज्य की स्थापना की थी। स्वाधीनता मिलने के बाद 18 मार्च, 1948 को इसके वृहद् राजस्थान में विलय के साथ अलवर राजस्थान प्रदेश का एक जिला बन गया। भपंग वादन का डंका बॉलीवुड में: अलवर में भपंग वाद्ययंत्र राजस्थानी लोक-संगीत की पहचान है। यह मेवाती संगीत संस्कृति की धरोहर है। इस वाद्ययंत्र के उस्ताद जहूर खान के परिजन हैं। इनकी प्रसिद्धि की कहानी रोचक है।

सालों पहले एक दिन मेवाती जी बीड़ी बेच रहे थे और ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए भपंग बजा रहे थे। उस समय अभिनेता दिलीप कुमार अलवर में शूटिंग कर रहे थे। उन्होंने मेवाती जी को भपंग बजाते हुए सुन लिया। उनसे प्रभावित होकर दिलीप कुमार उन्हें मुंबई ले गए। वहां उन्होंने अनेक फिल्मों का पाश्र्वसंगीत तैयार किया। इनमें गंगा-जमुना, नया दौर और आंखें प्रमुख हैं। खास बात यह है कि भपंग बजाने वाले सभी कलाकार मुस्लिम होते हुए भी शिवभक्त हैं। वे यह मानते हैं इस वाद्ययंत्र की उत्पत्ति शिव के डमरू से हुई है। है न यह रोचक बात।

एक म्यान में दो तलवारें!
क्या आपने दुनिया की सबसे छोटी एक इंच आकार की कुरान शरीफ देखी है? यह छोड़िए। एक म्यान में दो तलवारें देखी हैं? ऐसा अजूबा आप अलवर में सिटी पैलेस के संग्रहालय में देख सकते हैं। अलवर शहर की शान है यहां का सिटी पैलेस। इसका निर्माण साल 1793 में राजा बख्तावर सिंह ने कराया था। आप यहां के संग्रहालय की खूबसूरती की तारीफ किए बिना नहीं रह सकते। यहां राजसी साजो-सामान, दुर्लभ पांडुलिपियों व तैल चित्रों का संग्रह मौजूद है। एक छोटी डिबिया में एक इंच चौड़ी और एक इंच लंबी मुद्रित कुरान प्रदर्शित है। यहीं एक हाल में आयुध सामग्री प्रदर्शित की गई है, जिसका मुख्य आकर्षण एक ऐसी म्‍यान है जिसमें दो तलवारें एक साथ रखी जा सकती हैं। इसके अलावा यहां पर रखी अकबर और जहांगीर की तलवारें भी यहां आने वाले को अपनी ओर खींच लेती हैं। ये वो खास आकर्षण हैं, जिसे लोग विशेष कौतूहल से देखते हैं।

सिटी पैलेस के एक भाग में राजकीय संग्रहालय है, जो प्रात: 10 बजे से सायं 5 बजे तक खुला रहता है। यहां शुक्रवार को अवकाश रहता है। सिटी पैलेस के पीछे एक छोटा, लेकिन खूबसूरत जलाशय है, जिसे सागर झील कहते हैं। इसमें पानी तक पहुंचने के लिए कलात्मक सीढ़ियां बनी हुई हैं। आप चाहें तो यहां कबूतरों को दाना और मछलियों को चना खिला सकते हैं।

यहीं नजरबंद थे शहजादा सलीम
मुगल बादशाह अकबर ने अपने पुत्र सलीम को जिस किले में नजरबंद किया था, वह अलवर स्थित बाला किला ही है। इस दुर्ग में प्रवेश के लिए पांच दरवाजे हैं। दुर्ग में जलमहल, निकुंभ महल, सलीम सागर, सूरज कुंड व कई मंदिरों के भी अवशेष देखे जा सकते हैं। किले की दीवार पूरी पहाड़ी पर फैली हुई है, जो हरे-भरे मैदानों से होकर गुजरती है। इसे आप प्रात: 6 बजे से सायं 7 बजे तक ही देख सकते हैं।

सुरम्य ‘कंपनी बाग’ में शिमला!
अलवर भ्रमण के दौरान कुछ समय विश्राम करने का मन करे तो आप कंपनी बाग में आकर सुस्ता सकते हैं और साथ में यहां के प्राकृतिक नजारों का भी लुत्फ उठा सकते हैं। यह अलवर का एक सुरम्य सार्वजनिक उद्यान है, जिसका निर्माण महाराजा श्योदान सिंह ने सन् 1868 में करवाया था। कंपनी बाग में निर्मित शिमला अपने नायाब सौंदर्य के कारण जाना जाता है, जो रंग-बिरंगे फूलों से गुंफित लता मंडपों से आच्छादित है। इसमें जगह- जगह फव्वारे लगे हुए हैं, जिनके चलने पर इस विशाल गुंबदनुमा संरचना में शिमला जैसा मनोहारी दृश्य उभरता है।

फतेहगंज गुंबद का आकर्षण
अलवर रेलवे स्टेशन के पास बना पांच मंजिला फतेहगंज गुंबद है। चौकोर आधार पर बने इस गुंबद की हर मंजिल पर चारों तरफ दरवाजे और छोटी-छोटी खिड़कियां हैं। पहली मंजिल के दरवाजों और छतों पर सुंदर अक्षरों में अरबी-फारसी में आयतें उकेरी गई हैं। गुंबद के ऊपर कमल की पंखुड़ियों के बीच चार खभों की एक छोटी-सी छतरी बनी हुई है। यह स्मारक पुरातत्व विभाग के अधीन है।

राठ के हैं अजब ठाट
अलवर प्राचीन मत्स्य प्रदेश का हिस्सा रहा है। इसकी राजधानी विराट नगर हुआ करती थी। मत्स्य प्रदेश को राठ क्षेत्र कहा जाता था। इसमें आज बहरोड़, नीमराणा और मुंडावर के इलाके शामिल हैं। राठ के बारे में तो एक कहावत प्रसिद्ध है, ‘ना राठ नमे, ना राठ मने’ यानी राठ का व्यक्ति न तो झुकाने से झुकता है और न ही किसी के मनाने से मानता है। राठ अपनी मर्जी से चलता है।

रात को जाना मना है भुतहा किले में
अलवर की राजगढ़ तहसील में स्थित भानगढ़ और अजबगढ़ ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व रखते हैं। कहते हैं कि भानगढ़ अचानक अज्ञात कारणों से उजड़ गया था। कुछ समय बाद लोग इसे भुतहा किला कहने लगे। अब लोग यहां जाने से भी डरते हैं। किले में प्रवेश करते ही दाईं ओर कुछ हवेलियों के खंडहर दिखाई देते हैं। सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद वहां किसी को भी जाने और रुकने की इजाजत नहीं है।

सरिस्का में टाइगर का दीदार
अलवर से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर है सरिस्का अभयारण्य। यह प्रकृति एवं वन्यजीव प्रेमी सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इस अभयारण्य में बाघ, चीतल, सांभर, हिरन, नीलगाय, जंगली सूअर तथा अन्य वन्य जीवों को भी स्वच्छंदता से विचरण करते देखा जा सकता है। यहां पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। यदि आपको भी जंगल की दुनिया भाती है तो यहां कुछ दिन रुकने का भी दिल जरूर करेगा। खास बात यह है कि यहां रुकने की भी बड़ी अच्छी व्यवस्था है।

दरअसल, यहां एक भव्य राजभवन है, जिसका निर्माण महाराजा जयसिंह ने ड्यूक ऑफ एडिनबरा की शिकार-यात्रा के उपलक्ष्य में कराया था। हालांकि वर्तमान में इसे होटल सरिस्का पैलेस में परिवर्तित कर दिया गया है। इसके अलावा, यहां राजस्थान पर्यटन विकास निगम का होटल ‘टाइगर डेन’ भी पर्यटकों के लिए उपलब्ध है।

भीम की गदा से बन गई ‘पांडुपोल’!
अलवर से 60 किलोमीटर दूर सरिस्का घाटी में पांडुपोल प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। किंवदंती के अनुसार, अज्ञातवास के समय पांडवों को कौरवों की सेना ने आ घेरा तो भीम ने पहाड़ में गदा मारकर अपना रास्ता निकाला था। तभी से यह स्थान पांडुपोल के नाम से प्रसिद्ध हो गया। भाद्र माह में पांडुपोल पर मेला लगता है। यहां जाने के लिए सरिस्का बाघ परियोजना के द्वार से 20 किमी. लंबी पक्की सड़क है।

सिलिसेड झील में नौका-विहार का आनंद
पर्वतों के बीच एक सुरम्य स्थल का नाम है ‘सिलिसेड’। यह अलवर शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर है। यहां एक टापू पर महाराजा विनय सिंह ने 1844 में अपनी रानी शिलादेवी के लिए छ: मंजिला महल का निर्माण करवाया था। आज यह सुंदर महल राजस्थान पर्यटन विकास निगम का लोकप्रिय मोटेल है। इस स्थल का समग्र सौंदर्य घने जंगलों और पहाड़ों से घिरी झील के कारण पर्यटकों को काफी आकर्षित करता है। यहां नौका-विहार के लिए पैडलबोट उपलब्ध हैं।

नीमराणा फोर्ट में रात्रि विश्राम
अलवर से करीब 73 किमी. की दूरी पर स्थित नीमराणा आज इंडस्ट्रियल हब भी है। यहां का प्रसिद्ध नीमराणा दुर्ग सोलहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। 1947 तक इस पर चौहान राजपूतों का अधिकार रहा। अब इसे हेरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। नीमराणा शहर में विशाल बावड़ी भी दर्शनीय है, जो अलवर जिले के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में शामिल है।

यहां के कलाकंद का जवाब नहीं!
किसी भी शहर की पहचान उसकी संस्कृति और अलहदा खानपान से होती है। इस लिहाज से देखा जाए, तो अलवर का कलाकंद बहुत लोकप्रिय है। आपने कलाकंद तो बहुत खाया होगा, लेकिन अलवर के कलाकंद, मावे या मिल्क केक जैसा स्वाद शायद ही कहीं और मिलेगा। यहां कलाकंद की कई दुकानें हैं, पर बाबा ठाकुरदास ऐंड संस दुकान की बात ही निराली है। यह दुकान वर्षों से शहर में विख्यात है। इसकी शाखाएं कलाकंद मार्केट, घंटाघर, गणपति टॉवर, नंगली सर्किल तथा भिवाड़ी-राजगढ़ बाईपास पर स्थित हैं। आपको शहर में राजस्थानी खानपान के अन्य व्यंजन भी मिलेंगे। यहां काफी अच्छे रेस्तरां और भोजनालय हैं, जिनमें आप इनका लाजवाब स्वाद चख सकते हैं।

होप सर्किल में शॉपिंग का आनंद
कंपनी बाग के नजदीक चर्च रोड पर सेंट एंड्रयूज चर्च है। हालांकि यह अक्सर बंद रहता है। इस रोड के अंतिम छोर पर ही स्थित है होप सर्किल। यहां आप शॉपिंग का आनंद ले सकते हैं। यह यहां का प्रमुख व्यावसायिक केंद्र भी है। शहर का सबसे व्यस्त स्थान होने के कारण अक्सर यहां ट्रैफिक का तांता लगा रहता है। भीड़भाड़ के कारण जाम भी रहता है। इसके चारों तरफ बहुत सारी दुकानें हैं। होप सर्किल से सात सड़कें निकलती हैं। इनमें से एक घंटाघर तक जाती है, जहां कलाकंद बाजार भी है। एक सड़क त्रिपोलिया गेट से सिटी पैलेस कॉम्प्लेक्स तक जाती है। रास्ते में सराफा बाजार और बजाज बाजार पड़ते हैं। ये दोनों बाजार सोने-चांदी के आभूषणों के लिए प्रसिद्ध हैं। अगर आप परंपरागत आभूषणों की खरीदारी करना चाहते हैं तो पुराना बाजार जाना बेहतर रहेगा। यहां 30-40 दुकानें हैं, जहां आभूषणों की खरीदारी की जा सकती है। कहते हैं, यहां से आप हाथ से बनी चांदी की पायल खरीद सकते हैं, जो बहुत प्रसिद्ध है।

कब और कैसे जाएं?
अलवर घूमने के लिए सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च माह है। आप मानसून के समय भी अलवर घूमने जा सकते हैं। निकटतम एयरपोर्ट नई दिल्ली का इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। जयपुर से अलवर करीब 162 किमी. और दिल्ली से करीब 166 किमी. की दूरी पर है। जयपुर व दिल्ली के अलावा उत्तर भारत और राजस्थान के कई शहरों से अलवर के लिए रेल सेवा उपलब्ध है। अलवर रेलवे स्टेशन पर टैक्सी मिल जाती है। सड़क मार्ग से भी दिल्ली, जयपुर व भरतपुर सहित अन्य प्रमुख शहरों से अलवर आसानी से पहुंचा जा सकता है।


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