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अमेरिका से भी बेहतर है हमारा आइआरएनएसएस, जानिए विशेषताएं

भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली [आइआरएनएसएस] इसरो की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसके तहत सात उपग्रहों को स्थापित किया जाना है। इसरो ने 'आइआरएनएसएस' का विकास इस तरह किया है कि यह अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम [जीपीएस] के समकक्ष खड़ा हो

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Mon, 13 Oct 2014 12:58 PM (IST)Updated: Mon, 13 Oct 2014 12:59 PM (IST)
अमेरिका से भी बेहतर है हमारा आइआरएनएसएस, जानिए विशेषताएं

नई दिल्ली। भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली [आइआरएनएसएस] इसरो की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसके तहत सात उपग्रहों को स्थापित किया जाना है। इसरो ने 'आइआरएनएसएस' का विकास इस तरह किया है कि यह अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम [जीपीएस] के समकक्ष खड़ा हो सके। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] द्वारा इस श्रृंखला के दो उपग्रह आइआरएनएसएस 1ए को एक जुलाई 2013 और आइआरएनएसएस 1बी को इस साल चार अप्रैल को प्रक्षेपित किया गया था।

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इस श्रृंखला के तीसरे नौवहन उपग्रह आइआरएनएसएस 1सी को पहले छह अक्टूबर को प्रक्षेपित करने की योजना थी, लेकिन तकनीकी कारणों से इसे टाल दिया गया था। जिसके बाद अभियान के लिए 67 घंटे की उलटी गिनती 13 अक्टूबर को भारतीय समयानुसार सुबह छह बजकर 32 मिनट पर शुरू हो गई।

1425.4 किलो वजन के आइआरएनएसएस 1सी का प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत के पीएसएलवी-सी-26 की 28वीं उड़ान के जरिए किया जाएगा। आइआरएनएसएस प्रणाली को शुरू करने के लिए सात उपग्रहों में से कम से कम चार के प्रक्षेपण की जरूरत है। यह अमेरिका के जीपीएस, रूस के ग्लोनास और यूरोप के गैलिलियो की तरह ही है। चीन और जापान की भी इसी तरह की प्रणालियां बेईदोउ और क्वासी जेनिथ हैं।

क्या है जीपीएस?

जीपीएस एक ऐसी प्रणाली है जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट नेविगेशन के जरिए किसी भी मौसम में लोकेशन तथा समय की जानकारी देता है।

भारत की तकनीक

आइआरएनएसएस के तहत भारत अपने भौगोलिक प्रदेशों तथा अपने आसपास के कुछ क्षेत्रों तक नेविगेशन की सुविधा रख पाएगा। इसके तहत भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा कुल 7 नेविगेशन सैटेलाइट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए जाने है, जोकि 36000 किमी की दूरी पर पृथ्वी की कक्षा का चक्कर लगाएंगे। यह भारत तथा इसके आसपास के 1500 किलोमीटर के दायरे में चक्कर लगाएंगे। जरूरत पड़ने पर उपग्रहों की संख्या बढ़ाकर नेविगेशन क्षेत्र में और विस्तार किया जा सकता है।

कैसे काम करता है आइआरएनएसएस?

आइआरएनएसएस दो माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी बैंड, जो एल 5 और एस के नाम से जाने जाते हैं, पर सिग्नल देते हैं। यह 'स्टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्विस' तथा 'रिस्ट्रिक्टेड सर्विस' की सुविधा प्रदान करेगा। इसकी 'स्टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्विस' सुविधा जहां भारत में किसी भी क्षेत्र में किसी भी आदमी की स्थिति बताएगा, वहीं 'रिस्ट्रिक्टेड सर्विस' सेना तथा महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों के लिए सुविधाएं प्रदान करेगा।

जीपीएस से किस प्रकार अलग और बेहतर है आइआरएनएसएस?

यह अमेरिकन नेविगेशन सिस्टम जीपीएस से कहीं अधिक बेहतर है। मात्र 7 सैटेलाइट के जरिए यह अभी 20 मीटर के रेंज में नेविगेशन की सुविधा दे सकता है, जबकि उम्मीद की जा रही है कि यह इससे भी बेहतर 15 मीटर रेंज में भी यह सुविधा देगा। जीपीएस की इस कार्यक्षमता के लिए 24 सैटेलाइट काम करते हैं, जबकि आईआरएनएसएस के लिए मात्र सात।

आइआरएनएसएस की विशेषताएं

आइआरएनएसएस सुरक्षा की दृष्टि से हर प्रकार से लाभकारी है। खासकर सुरक्षा एजेंसियों और सेना के लिए। ये प्रणाली देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देगी। यह इसका प्राथमिक सेवा क्षेत्र भी है। नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस के अनुप्रयोगों में नक्शा तैयार करना, जियोडेटिक आंकड़े जुटाना, समय का बिल्कुल सही पता लगाना, चालकों के लिए दृश्य और ध्वनि के जरिये नौवहन की जानकारी, मोबाइल फोनों के साथ एकीकरण, भूभागीय हवाई तथा समुद्री नौवहन तथा यात्रियों तथा लंबी यात्रा करने वालों को भूभागीय नौवहन की जानकारी देना आदि शामिल हैं।

आईआरएनएसएस के सात उपग्रहों की यह श्रृंखला स्पेस सेगमेंट और ग्राउंड सेगमेंट दोनों के लिए है। आईआरएनएसएस के तीन उपग्रह भूस्थिर कक्षा [जियोस्टेशनरी ऑर्बिट] के लिए और चार उपग्रह भूस्थैतिक कक्षा [जियोसिन्क्रोनस ऑर्बिट] के लिए हैं। यह श्रृंखला वर्ष 2015 से पहले पूरी होनी है।

सातों उपग्रह वर्ष 2015 तक कक्षा में स्थापित कर दिए जाएंगे और तब आईआरएनएसएस प्रणाली शुरू हो जाएगी।

पढ़े: इसरो द्वारा प्रक्षेपित अब तक के सफल अभियान

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