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गजब! छोटे से गांव की एक महिला ने बना डाला इतना बड़ा बीलना ब्रांड

फैमिदा ने स्वयं सहायता समूह बनाकर न सिर्फ गांव की महिलाओं को रोजगार का अवसर उपलब्ध कराया, बल्कि उनके हाथ के बने जैकेट और चादर को बीलना ब्रांड से बाजार में मशहूर कर दिया।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 13 Apr 2018 01:15 PM (IST)Updated: Fri, 13 Apr 2018 01:17 PM (IST)
गजब! छोटे से गांव की एक महिला ने बना डाला इतना बड़ा बीलना ब्रांड
गजब! छोटे से गांव की एक महिला ने बना डाला इतना बड़ा बीलना ब्रांड

अमरोहा [योगेंद्र योगी]। उत्तरप्रदेश के अमरोहा बीलना गांव की महिलाएं के जरिये आत्मनिर्भरता की नई इबारत लिख रही हैं। ये वे महिलाएं हैं, जिन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से न केवल गरीबी को परास्त किया, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए नारी सशक्तीकरण की मिसाल पेश की। इस असाधारण बदलाव की शुरुआत की थी गांव की एक साधारण महिला फैमिदा मंसूर ने।

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चर्चा में आया गांव

फैमिदा ने विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं सहायता समूह बनाकर न सिर्फ गांव की महिलाओं को रोजगार का अवसर उपलब्ध कराया, बल्कि उनके हाथ के बने जैकेट और चादर को बीलना ब्रांड से बाजार में मशहूर कर दिया। अमरोहा जिले के नौगावां सादात तहसील क्षेत्र का बीलना गांव फैमिदा मंसूर और उनके जैसी सौ से अधिक महिलाओं के बुलंद इरादों के कारण चर्चा में है।

ऐसे हुई शुरुआत

पति की मौत के बाद गरीबी से जूझतीं फैमिदा के सामने के सिवा कोई विकल्प न था। उन्होंने इसे मजबूरी नहीं बल्कि मिशन के रूप में लिया। वह बताती हैं कि उनके पिता हथकरघा चलाते थे। इसी के चलते खयाल आया कि वह भी सूत कातकर चादरें तैयार कर कुछ कमाई करें। इसके बाद घर पर ही काम शुरू कर दिया। बीलना गांव की 10 गरीब महिलाओं के साथ मिलकर पायल स्वयं सहायता समूह बनाया। हाथ से सूत कातने के साथ ही महिलाओं ने खड्डी के जरिये सूती चादरें बनानी शुरू कीं। कुछ माह में ही काम इतना अच्छा हुआ कि क्षेत्र से लेकर दूर तक के खरीदार आने लगे। इस तरह उनके बनाए चादरों ने ब्रांड की शक्ल ले ली।

अब गांव में हैं अनेक समूह

गरीबी से उबरने की ताकत दे दी। फैमिदा और उनके साथ जुडी महिलाओं की सफलता से प्रेरित होकर इसी गांव की अन्य महिलाओं ने छोटे-छोटे समूह गठित कर इस स्वरोजगार में हाथ आजमाए। फैमिदा बताती हैं कि प्रत्येक समूह से जुड़ी महिलाएं घर खर्च खुद जुटाती हैं।

ऐसे करती हैं काम

फैक्टियों से बेहतर क्वालिटी का सूत लेकर वे हथकरघे से चादरें आदि उत्पाद तैयार करती हैं। फैमिदा बताती हैं कि उनके उत्पाद का मुख्य बाजार सरकारी मेले ही हैं। हर माह अलग-अलग राज्यों में मेले लगाए जाते हैं। इसकी सूचना उन्हें विकास भवन से मिल जाती है। एक मेले में बिकने वाले माल पर सभी खर्चे निकालकर 70 से 80 हजार रुपये का फायदा हो जाता है। इसे समूह की महिलाओं के बीच बांट लिया जाता है।

गरीबी को पीछे छोड़ दिया 

अमरोहा के जिलाधिकारी हेमंत कुमार का कहना है कि हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई लाभकारी योजनाएं चला रही है। ऐसी महिलाओं को उत्साहित करने के लिए हर तरह से प्रशासनिक सहयोग उपलब्ध कराया जा रहा है। मुझे खुशी है कि बीलना गांव की महिलाओं ने अपने अनूठे प्रयास से गरीबी को पीछे छोड़ दिया है।


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