ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वाले हो जाएं सावधान, अब सड़क हादसों में IPC के तहत होगी सजा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता के अनुपात में सजा होनी चाहिए ताकि वह दोबारा वैसा अपराध करने की हिम्मत ना कर सके।
नई दिल्ली, आइएएनएस। ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वाले अब संभल जाएं। अब इस अपराध के लिए मोटर वाहन अधिनियम के तहत ही नहीं भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धाराओं के तहत भी सजा सुनाई जा सकती है। खतरनाक और लापरवाही से ड्राइविंग के चलते होने वाली मौतों की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में यह व्यवस्था दी है। मोटर वाहन अधिनियम की तुलना में आइपीसी के तहत सख्त सजा का प्रावधान है।
जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा, 'यह अदालत मोटर वाहन दुर्घटनाओं के आरोपितों को सख्त दंड दिए जाने की आवश्यकता पर समय-समय पर जोर देती रही है। वाहनों की बढ़ती संख्या के चलते भारत में सड़क हादसों में लोगों के घायल होने और मारे जाने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।'
शीर्ष अदालत ने असम, नगालैंड, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश की निचली अदालतों को दिए गुवाहाटी हाई कोर्ट के आदेश को भी रद कर दिया। हाई कोर्ट ने निचली अदालतों से कहा था कि सड़क दुर्घटना से संबंधित मामलों की सुनवाई मोटर वाहन अधिनियम के तहत ही किया जाए आइपीसी की धाराओं के तहत नहीं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि गुवाहाटी हाई कोर्ट के आदेश से आइपीसी और सीआरपीसी की जगह मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे। इससे सड़क हादसों के गंभीर मामलों, जिसमें लापरवाही से जान लेने, गंभीर रूप से घायल करने या सामान्य चोट पहुंचाने के मामले कंपाउंडेबल हो जाएंगे और जो अपराध की प्रकृति में कम गंभीर है। इससे अदालत की अनुमति के बिना पीडि़त और अपराधी के बीच समझौते की अनुमति भी मिल जाएगी। कंपाउंडेबल अपराध के तहत बिना सुनवाई के ही दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाता है। इससे अपराधी हल्के दंड या आर्थिक जुर्माना भरकर बच जाएगा। उसे उसके द्वारा किए गए गंभीर अपराध की सजा नहीं मिलेगी।
बता दें कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत सड़क दुर्घटना के पहले मामले में अपराधी को अधिकतम छह महीने कैद की सजा का प्रावधान है, जबकि आइपीसी की धारा 304 के तहत इसी अपराध के लिए अधिकतम 10 वर्ष कैद तक की सजा हो सकती है।
पीठ ने कहा कि अपराध की गंभीरता के अनुपात में सजा होनी चाहिए और अपराधी पर उसका ऐसा प्रभाव पड़ना चाहिए ताकि वह दोबारा वैसा अपराध करने की हिम्मत ना कर सके।