विवादित बयान पर आजम खान की बढ़ सकती है मुश्किलें
अटार्नी जनरल ने आजम खान की माफी का विरोध करते हुए कहा कि उनकी टिप्पणीं पर उनके खिलाफ तो राजद्रोह में मुकदमा चलना चाहिए।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खान की एक बार फिर विवादित बयान के कारण मुश्किल बढ़ सकती हैं। सोमवार को अटार्नी जनरल ने आजम खान के गत जून में सेना के बारे में दिये गये विवादित बयान का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाया। बुलंदशहर सामूहिक दुष्कर्म कांड में सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि इस मामले में माफी मांगने के बावजूद आजम खान लगातार विवादित टिप्पणियां कर रहे हैं। उन्होंने सेना के खिलाफ टिप्पणी की है। उन्हें माफी नहीं दी जानी चाहिए।
अटार्नी जनरल ने आजम खान की माफी का विरोध करते हुए कहा कि उनकी टिप्पणीं पर उनके खिलाफ तो राजद्रोह में मुकदमा चलना चाहिए। वेणुगोपाल की इन दलीलों पर मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने कहा कि उन्होंने पछतावा जताया था तब उन्हें माफ किया गया। पीठ ने कहा कि अगर कोई इस बारे में अर्जी देगा तो वे उस पर विचार करेंगे। वेणुगोपाल ने कहा कि वे कैसे अर्जी दे सकते हैं। इस पर न्यायालय के मददगार के रूप में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि वे इस बारे में अर्जी दाखिल करेंगे। मालूम हो कि बुलंदशहर दुष्कर्म कांड में विवादित बयान देने पर पीडि़ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में आजम खान के खिलाफ मामला उठाया गया था जिस पर आजम खान ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर पछतावा जताते हुए माफी मांगी थी जिसके बाद कोर्ट ने उनके खिलाफ मामला बंद कर दिया था।
इस मसले के बाद सोमवार को पीठ ने मुख्य मामले पर सुनवाई शुरू की। फिलहाल कोर्ट में विचाराधीन मुख्य मामला जिम्मेदार लोकसेवक पद पर रहने वाले जनप्रतिनिधि के किसी लंबित आपराधिक मामले में टिप्पणी करने के संबंध में है। कोर्ट विचार कर रहा है कि ऐसा व्यक्ति किस हद तक अभिव्यक्ति की आजादी के तहत किसी लंबित आपराधिक मामले में टिप्पणी कर सकता है। सुनवाई में मदद के लिए कोर्ट ने पहले ही वरिष्ठ अधिवक्ता फली नारिमन और हरीश साल्वे को न्यायालय का मददगार नियुक्त कर रखा है।
फली नारिमन ने कहा कि अभी तक भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो कि किसी प्राइवेट व्यक्ति के किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकारों में दखल देने पर कार्रवाई का प्रावधान करता हो। हमारे देश के मौलिक अधिकार सरकार द्वारा अधिकारों के हनन पर उपचार देते हैं लेकिन किसी व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकारों के हनन पर कोई उपचार नहीं है इसके लिए सिविल ला होना चाहिए। हरीश साल्वे ने भी कोर्ट को विचार के लिए कुछ कानूनी प्रश्न दिये। पीठ ने अटार्नी जनरल से कहा कि वे दोनों लोगों के प्रश्नों पर विचार करने के बाद कोर्ट को सूचित करें। कोर्ट इस मामले में 5 अक्टूबर को फिर सुनवाई करेगा।
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