20वें इम्तहान के लिए अयोध्या तैयार!
फैजाबाद [रविप्रकाश श्रीवास्तव]। अयोध्या इम्तहान की धरती है। अयोध्या ने चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ को अपने वचन, भगवान राम को न्यायबद्धता और माता सीता को अपनी पवित्रता का इम्तहान देते देखा है लेकिन कुछ वर्षों से अयोध्या हर छह दिसंबर को सांस्कृतिक सद्भाव का इम्तहान देती है। इस बार इम्तहान कुछ ज्यादा ही कड़ा है। कई वर्षो
फैजाबाद [रविप्रकाश श्रीवास्तव]। अयोध्या इम्तहान की धरती है। अयोध्या ने चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ को अपने वचन, भगवान राम को न्यायबद्धता और माता सीता को अपनी पवित्रता का इम्तहान देते देखा है लेकिन कुछ वर्षों से अयोध्या हर छह दिसंबर को सांस्कृतिक सद्भाव का इम्तहान देती है। इस बार इम्तहान कुछ ज्यादा ही कड़ा है। कई वर्षो से शांतिपूर्वक बीत रहे छह दिसंबर पर गत दिनों के उपद्रव की छाया अयोध्या को घूर रही है। यही कारण है कि बीते दशक की तुलना में इस बार बढ़े सुरक्षा प्रबंधों में जकड़ी अयोध्या अपना बीसवां इम्तहान देने के लिए तैयार है।
उल्लेखनीय है कि बीस साल पहले छह दिसंबर 1992 को अयोध्या स्थिति विविादित ढांचे को गिराया गया था। तब से इस दिन को ढांचा ध्वंस की बरसी के रूप में मनाया जाता है। हर साल की अपेक्षा इसबार सुरक्षा के इंतजाम हैं लेकिन सुरक्षाकर्मियों की संख्या और निगरानी उपायों में पिछली बार से ज्यादा होने का दावा किया जा रहा है। एक दिन पूर्व ही अयोध्या में सुरक्षाकर्मियों की चहलकदमी बढ़ी है। प्रमुख मंदिरों और इस तिथि को लेकर होने वाले संगठनों के परंपरागत कार्यक्रम पर भी निगरानी का खाका तैयार है। अयोध्या के यलो जोन में निगरानी कड़ी होगी। श्रद्धालु रामलला के दर्शन छानबीन के बाद कर पाएंगे। वाहन चेकिंग के बाद ही अयोध्या की दहलीज में प्रवेश कर पाएंगे। छह दिसंबर को इस व्यवस्था में सख्ती देखने को मिलेगी। यातयात प्रतिबंध के बावजूद दोपहर तक पुराने सरयूपुल से वाहनों को गुजारा गया लेकिन दिन ढलने के साथ यह व्यवस्था बंद हो गई।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक धर्मेद्र सिंह का कहना है कि अयोध्या में बाहर के श्रद्धालु ही नहीं बल्कि यहां के मूल निवासियों को भी ऐहतियातन छानबीन के दौर से गुजरना होगा। सुरक्षा सर्वोपरि है लेकिन इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि आम जनता को कोई भी दुश्वारी न हो।
जख्म भरने नहीं देती सियासत :
बीस साल पहले अयोध्या में क्या हुआ, नई पीढ़ी इसकी चर्चा भी नहीं करती। जिन लोगों ने वह मंजर देखा, वे याद नहीं करना चाहते लेकिन सियासत उन्हें भूलने नहीं देती।
गुरुवार को फिर लकीर पीटी जाएगी। लोकसभा चुनाव निकट हैं, इसलिए इस तैयारी पर सियासत का मुलम्मा चढ़ा है। शौर्य दिवस, स्याह दिवस, काला दिवस, कलंक दिवस, स्वाभिमान दिवस के रूप में विभिन्न संगठनों द्वारा इसे मनाया जाएगा। इस मौके पर बाजार बंद, जुलूस और गोष्ठियां होंगी। राजनीतिक दलों की कोशिश है कि लोग इसे भूलने न पाएं।
विश्व शांति के प्रयासों में लगे रमजान अर्मा टांडवी कहते हैं कि अब जरूरत इस तारीख को भुला देने की जरूरत है। शौर्य दिवस और कलंक दिवस का बहिष्कार हो। राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगे। सरकार भी प्रयास करे कि अयोध्या में सब कुछ सामान्य सा दिखे। सुरक्षाबलों की अति सक्रियता भी लोगों का ध्यान आकर्षित करती है। रमजान अर्मा टांडवी की तरह अयोध्या व फैजाबाद में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो विवाद का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं। विवादित ढांचा ढहाने के बाद उपद्रव में जिन लोगों ने सब कुछ खो दिया था वे शांति के पक्षधर हैं लेकिन सियासत है कि जख्म भरने ही नहीं दे रही।
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