Ayodhya Case: समझौते पर संज्ञान से फैसले में होगी देरी, 17 नवंबर को रिटायर हो रहे मुख्य न्यायाधीश
अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद का यह मुकदमा कानून की निगाह में प्रतिनिधि सूट है। प्रतिनिधि सूट का मतलब है कि यह मुकदमा मात्र कुछ पक्षकारों के बीच जमीन पर मालिकाना हक का नहीं है बल्कि हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों के बीच है।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के विवाद में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी होकर फैसला सुरक्षित होने के बाद लोगों की निगाहें सिर्फ फैसले पर टिकी हैं, लेकिन बीच मे मध्यस्थता मे समझौते की चर्चा ने नया पेंच उलझा दिया है। इस मुकदमे की सुनवाई करने वाली पीठ के अध्यक्ष मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे है, इसलिए उसके पहले ही फैसला आने की उम्मीद है। हालांकि, कानूनविदों का कहना है कि अगर कोर्ट मध्यस्थता समिति की ओर से कुछ पक्षकारों के बीच हुए समझौते पर संज्ञान लेगा तो 17 नवंबर की तय समयसीमा के भीतर फैसला आना मुश्किल होगा। वहीं, अगर मुख्य न्यायाधीश की सेवानिवृति तक फैसला नहीं आया, तो तय नियम के मुताबिक, दोबारा से मुकदमा सुना जाएगा। इस विचार को इससे भी बल मिलता है कि मामले की सुनवाई करने वाले पांचों जज चैंबर में बैठें, लेकिन अभी तक कोर्ट से इस बारे में पक्षकारों को कोई नोटिस या सूचना नहीं दी गई है।
कानून की निगाह में प्रतिनिधि सूट
अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद का यह मुकदमा कानून की निगाह में प्रतिनिधि सूट है। प्रतिनिधि सूट का मतलब है कि यह मुकदमा मात्र कुछ पक्षकारों के बीच जमीन पर मालिकाना हक का नहीं है, बल्कि हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों के बीच है। इस मुकदमें को कानून की तय प्रक्रिया के तहत अखबार में पब्लिक नोटिस जारी कर कोर्ट के आदेश पर प्रतिनिधि सूट बनाया गया था।
...तो 17 नवंबर तक फैसला आना मुश्किल
प्रतिनिधि सूट में समझौते से विवाद के हल के कुछ नियम हैं, जिनका कानूनन पालन जरूरी है। ऐसे मुकदमों में दावा वापस लेने या समझौते के जरिये विवाद हल करने की प्रक्रिया के लिए दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश 1 रूल 8 उपनियम 4 और आदेश 23 के प्रावधानों को एक साथ देखना होगा। इलाहाबाद हाइकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि प्रतिनिधि सूट के बारे में सीपीसी के आदेश 1 नियम 8 उपनियम 4 में लिखा है कि कोर्ट की इजाजत के बगैर कोई भी पक्ष प्रतिनिधि सूट मे न तो मुकदमा वापस ले सकता है, न समझौता कर सकता है और न ही उस मुकदमे को त्याग सकता है कानून कहता है कि ऐसे मुकदमे में समझौते या दावा वापस लेने से पहले कोर्ट उस मुकदमे मे रुचि रखने वाले सभी लोगों को नोटिस देगा उनकी राय जानेगा और संतुष्ट होने के बाद ही समझौते के प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करेगा। सिंह कहते है कि इस मुकदमे में अखबार में पब्लिक नोटिस निकालना पड़ेगा, क्योंकि आदेश एक नियम आठ का उपनियम 2 में संबंधित लोगों को नोटिस देने की बात है और उसमें यह भी कहा गया है कि अगर सभी तक नोटिस भेजना व्यवहारिक न हो तो पब्लिक नोटिस दिया जाएगा। इस मुकदमे में सभी हिन्दू और मुसलमान लोग रुचि रखते हैं, ऐसे में पब्लिक नोटिस ही निकालना पड़ेगा। अगर ऐसा हुआ तो प्रक्रिया में बहुत वक्त लगेगा और 17 नवंबर तक फैसला आना मुश्किल होगा।
फिर नये सिरे से पूरे मुकदमे की सुनवाई
17 नवंबर को जस्टिस रंजन गोगोई सेवानिवृत हो जाएंगे और अगर तबतक फैसला नहीं आया और मुकदमे में समझौता भी नहीं हुआ, तो उनकी सेवानिवृति के बाद नयी पीठ गठित करनी पड़ेगी और नये सिरे से पूरे मुकदमे की सुनवाई होगी। हालांकि, वह कहते है कि सिर्फ एक दो पक्षकारों की ओर से दिये गए कथित समझौता प्रस्ताव का ज्यादा मतलब नहीं है और उन्हें नहीं लगता की कोर्ट उस पर संज्ञान लेगा। कोर्ट सुनवाई कर चुका है और अब उम्मीद है कि 17 नवंबर तक फैसला आ जाएगा।
पक्षकारों की राय जुदा
इस मामले में केस के पक्षकारों की राय जुदा है। हिन्दू महासभा कमलेश तिवारी के वकील विष्णु शंकर जैन भी एसआर सिंह की ही बात को दोहराते हैं और मामले में पब्लिक नोटिस जारी करने की प्रक्रिया बताते हुए देरी की आशंका जताते हैं, जिससे तय समय में फैसला मुश्किल दिखता है। वहीं, श्री राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा का कहना है कि इस मामले में हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्षों के वकील कोर्ट के सामने है। ऐसे में सिर्फ संबंधित पक्षों को ही नोटिस जारी कर कोर्ट उनकी राय पूछ लेगा और अगर सभी तैयार है, तो समझौते को मंजूरी देगा और अगर पक्षकार तैयार नहीं होते तो समझौता नामंजूर हो जाएगा और कोर्ट फैसला सुना देगा।