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निर्णायक मोड़ पर अयोध्या विवाद के हल का प्रयास

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सौहार्दपूर्ण समाधान का प्रयास निर्णायक मोड़ पर पहुंच रहा है। वो दिन दूर नहीं जब अयोध्या एवं फैजाबाद के लोग समाधान के 10 हजार प्रपत्र अधिग्रहीत परिसर के पदेन रिसीवर मंडलायुक्त को सौपेंगे।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2015 04:50 AM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2015 05:21 AM (IST)
निर्णायक मोड़ पर अयोध्या विवाद के हल का प्रयास

अयोध्या। रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सौहार्दपूर्ण समाधान का प्रयास निर्णायक मोड़ पर पहुंच रहा है। वो दिन दूर नहीं जब अयोध्या एवं फैजाबाद के लोग समाधान के 10 हजार प्रपत्र अधिग्रहीत परिसर के पदेन रिसीवर मंडलायुक्त को सौपेंगे। इस अपेक्षा के साथ कि मंडलायुक्त जुड़वा शहरों की जन भावनाओं से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराएंगे, जहां मंदिर-मस्जिद विवाद विचाराधीन है।

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इस मुहिम के सूत्रधार न्यायमूर्ति पलोक बसु हैं, जिन्होंने दो वर्ष पूर्व दोनों समुदायों के 10 हजार हस्ताक्षर एकत्र करने का फार्मूला प्रस्तुत किया था। समझौते के प्रपत्र पर निर्धारित संख्या के अनुरूप हिदुओं के पांच हजार हस्ताक्षर तो कुछ महीनों के प्रयास के बाद ही एकत्र कर लिए गए लेकिन मुस्लिमों के हस्ताक्षर को लेकर गतिरोध सामने आया।

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हालांकि बसु सहित मुहिम से जुड़े कुछ जिम्मेदार मुस्लिम प्रतिनिधियों का उत्साह ठंडा नहीं पड़ा और उनकी कोशिशें रंग लाने को हैं। मुहिम को कामयाब बनाने के लिए गठित अयोध्या-फैजाबाद नागरिक समझौता समिति की गत माह हुई बैठक के दौरान बड़ी संख्या में मुस्लिमों के हस्ताक्षर युक्त प्रपत्र प्रस्तुत किए गए। यह संख्या अपेक्षा से कुछ ही कम रह गई। बसु को उम्मीद है कि एक नवंबर को तुलसी स्मारक भवन में समिति की आगामी बैठक में समुचित हस्ताक्षर युक्त पत्रक एकत्र किए जा सकेंगे। लक्ष्य हासिल करने में कोई कसर न छोड़ते हुए बसु 31 अक्टूबर को ही इलाहाबाद से फैजाबाद पहुंच जाएंगे और समुदाय विशेष के लोगों से समझौते के प्रपत्र पर हस्ताक्षर की अपील करेंगे।

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दिख रही विधिक संभावना
समझौता का प्रपत्र महज प्रतीकात्मक नहीं है, इसकी विधिक संभावना है। नागरिक समिति के प्रवक्ता एवं अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव के अनुसार यह कोशिश आइपीसी के अनुच्छेद 89 के प्रावधानों के अनुरूप है और भोपाल की चर्चित कंपनी यूनियन कार्बाइड के मामले में भी जनाकांक्षाओं को ध्यान में रखकर निर्णय दिए जाने का उदाहरण सामने है।

क्या है समझौते का फार्मूला
समझौते के फार्मूले के अनुसार सितंबर 2010 में हाई कोर्ट ने जो भूमि रामलला को दी, वहां मंदिर बनेगा। जो भूमि मस्जिद के लिए दी, उसे मुस्लिम पक्ष अपने कब्जे में रखेगा, लेकिन वहां कोई मस्जिद या अन्य इमारत नहीं बनाएगा। मस्जिद के लिए 67.77 एकड़ के परिसर में ही भूमि दी जाएगी।

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