अयोध्या मामले के जल्द निपटारे की खुली राह, अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से शुरू होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने कहा मुख्य मामले की अपीलें लंबे समय से सुनवाई के लिए इंतजार कर रही हैं, अब उन अपीलों को अक्टूबर के अंतिम सप्ताह मे सुनवाई के लिए लगाया जाए।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मुकदमें के जल्द निपटारे की उम्मीद बंधी है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न मानने वाले इस्माइल फारुकी फैसले के अंश को पुनर्विचार के लिए सात जजों को भेजने से इन्कार करते हुए कहा मुख्य मामले की अपीलें लंबे समय से सुनवाई के लिए इंतजार कर रही हैं अब उन अपीलों को अक्टूबर के अंतिम सप्ताह मे सुनवाई के लिए लगाया जाए।
बहुमत से सुनाया फैसला
ये फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो-एक के बहुमत से सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और अशोक भूषण ने फारुकी फैसला बड़ी पीठ को भेजने की मांग खारिज कर दी है जबकि तीसरे न्यायाधीश अब्दुल नजीर ने बहुमत से असहमति जताने वाले फैसले में फारुकी फैसले के अंश को विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने का आदेश दिया है।
नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं
इस्माइल फारुकी की याचिका पर फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1994 में अयोध्या मे भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली इस्माइल फारुकी की याचिका पर फैसला दिया था। उस फैसले में एक जगह कोर्ट ने कहा है कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।
अयोध्या विवाद में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को अपील दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती देने वाले मुस्लिम पक्ष ने अपील पर सुनवाई से पहले इस्माइल फारुकी फैसले के उक्त अंश को विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने की मांग की थी। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि उस फैसले का अयोध्या विवाद के मुख्य मामले की सुनवाई पर असर पड़ेगा। इतना ही नहीं उस फैसले के कारण मुख्य मामले की अपीलों में उनका पक्ष कमजोर होगा।
ये भी कहा था कि इस्माइल फारुकी फैसले पर हाईकोर्ट ने भी भरोसा किया है इसलिए उसमें मस्जिद की स्थिति के बारे मे की गई टिप्पणी पर बड़ी पीठ को विचार करना चाहिए। हालांकि हिन्दू पक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार ने मांग का विरोध किया था और कहा था कि यह मामले की सुनवाई में देरी करने की चाल है।
हिन्दू पक्ष का कहना था कि फारुकी फैसला अयोध्या में 1993 मे किये गए जमीन अधिग्रहण के बारे में है। उस फैसले पर इतने वर्षो बाद सवाल नहीं उठाया जा सकता वह फैसला अंतिम हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सभी पक्षों की दलीलें सुन कर गत 20 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
गुरुवार को कोर्ट ने बहुमत से मुस्लिम पक्ष की मांग खारिज करते हुए कहा कि इस्माइल फारुकी फैसले में की गई उपरोक्त टिप्पणी जमीन अधिग्रहण के बारे मे हैं उसका मुख्य मुकदमें और सुप्रीम कोर्ट में लंबित अपीलों से कोई लेनादेना नहीं है।
फारुकी केस में मुस्लिम पक्ष ने ये दलील दी थी कि मोहम्मडन ला में मस्जिद की जमीन अधिग्रहित नहीं की जा सकती उसे अधिग्रहण से छूट मिली है। इसी तथ्य के संदर्भ में कोर्ट ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न कहे जाने की टिप्पणी की है उस टिप्पणी को उसी संदर्भ मे लिया जाना चाहिए।
बड़ी पीठ को भेजने की मांग को ठुकराया
कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के वकील राजू रामचंद्रन की मामले को अति महत्व का बताते हुए अयोध्या केस की सभी अपीलें विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजने की मांग ठुकराते हुए कहा कि निसंदेह यह मामला महत्वपूर्ण है।
सामान्यता ऐसी अपीलों पर दो जजों की पीठ सुनवाई करती है लेकिन मामला महत्वपूर्ण होने के कारण इस मामले में तीन न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई कर रही है। इन अपीलों को फारुकी केस पर पुनर्विचार के लिए पांच जजो को भेजे जाने की मांग से वे सहमत नहीं हैं।
30 सितंबर 2010 को सुनाया महत्वपूर्ण फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या रामजन्म भूमि मामले में 30 सितंबर 2010 को फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले को भगवान रामलला विराजमान के साथ ही सभी हिन्दू मस्लिम पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट मे अपील दाखिल कर चुनौती दे रखी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है।