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अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद: निर्मोही अखाड़ा की मांग फैजाबाद से बाहर हो मध्यस्थता

अयोध्या भूमि विवाद मामले में पक्षकार निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर सुझाव दिया है कि मध्यस्थता पैनल में दो और जजों को शामिल किया जाए।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 01:39 PM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 01:59 PM (IST)
अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद: निर्मोही अखाड़ा की मांग फैजाबाद से बाहर हो मध्यस्थता
अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद: निर्मोही अखाड़ा की मांग फैजाबाद से बाहर हो मध्यस्थता

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो । अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में पक्षकार निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मामले के संवेदनशील होने की दुहाई देते हुए मध्यस्थता फैजाबाद के बाहर दिल्ली या किसी और तटस्थ जगह स्थानांतरित किये जाने का अनुरोध किया है। साथ मध्यस्थता पैनल में दो और सेवानिवृत न्यायाधीशों को शामिल किये जाने का आग्रह किया गया है।

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सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने राम जन्मभूमि विवाद का बातचीत के जरिये आपसी सहमति से हल निकालने के लिए गत 1 मार्च को मामला मध्यस्थता को भेज दिया था। कोर्ट ने तीन सदस्यों का मध्यस्थता पैनल बनाया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एफएम इब्राहिम कलीफुल्ला को अध्यक्ष व आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर व वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू को सदस्य नियुक्त किया था। कोर्ट ने आठ सप्ताह में मध्यस्थता के जरिए सुलह के रास्ते तलाशने को कहा था।

निर्मोही अखाड़ा ने 25 मार्च को सुप्रीम कोर्ट मे दाखिल अर्जी में कहा है कि उसने कोर्ट के मध्यस्थता के जरिये बातचीत से विवाद हल करने के सुझाव का समर्थन किया था। निर्मोही अखाड़ा का कहना है कि गत 13 मार्च को वह भी अन्य पक्षों की तरह मध्यस्थता सुनवाई में शामिल हुआ था और अब 27,28 व 29 मार्च को फिर मध्यस्थता पैनल में सुनवाई होनी है। निर्मोही अखाड़ा ने अर्जी में कहा है कि इस मामले का हल निकालने के लिए राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े मुख्य पक्षकार निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बीच सीधे बातचीत होनी चाहिए।

अखाड़ा का कहना है कि इस मामले में यही दो मुख्य पक्ष हैं जो कि जमीन पर मालिकाना हक का दावा कर रहे हैं। अखाड़ा ने कहा है कि वह शुरू से स्वयं को भगवान रामलला विराजमान का पुजारी यानी शैवियत के हक का दावा कर रहा है और रिसीवर नियुक्त होने से पहले वही भगवान रामलला की पूजा अर्चना और जन्म स्थान के प्रबंधन का काम देखता था। अर्जी में कहा गया है कि एक पक्षकार रामलला विराजमान भी हैं जिनकी ओर से निकट मित्र ने अपील दाखिल की है।

निर्मोही अखाड़े का कहना है कि इस मामले में जमीन पर मालिकाना हक के अलावा हिन्दुओं के पूजा अर्चना और मुसलमानों के प्रार्थना का अधिकार भी शामिल है। ऐसे में रामलला के निकट मित्र की ओर से दाखिल अर्जी का मतलब है हिन्दुओं के पूजा अर्चना के हक का दावा। तो निर्मोही अखाड़ा ने कभी किसी हिन्दू को रामलला की पूजा अर्चना से नहीं रोका है। वह तो सिर्फ भगवान का पुजारी का हक मांग रहा है।

अखाड़ा ने अर्जी में कहा है कि कोर्ट मध्यस्थता पैनल में दो और सेवानिवृत न्यायाधीशों को शामिल करने पर विचार करे। साथ ही कहा है कि यह बहुत संवेदनशील मामला है ऐसे में स्थानीय दबाव आदि को देखते हुए मध्यस्थता की सुनवाई फैजाबाद के बाहर दिल्ली या किसी और तटस्थ जगह स्थानांतरित कर दी जाएं जहां पक्षों को समुचित सुरक्षा आदि मुहैया हो सके।


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