Ayodhya Case: दोनों में कोई मालिक साबित न हों तो सरकार को दे दी जाए विवादित भूमि
अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में एक पक्षकार उमेश चंद्र पांडेय ने सुप्रीम कोर्ट में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ यानी वैकल्पिक राहत पर लिखित नोट दिया है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में एक पक्षकार उमेश चंद्र पांडेय ने सुप्रीम कोर्ट में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ यानी वैकल्पिक राहत पर लिखित नोट दिया है। उन्होंने कहा है कि अगर भगवान श्रीराम विराजमान और सुन्नी-सेंट्रल वक्फ बोर्ड दोनों जमीन पर मालिकाना हक साबित करने में नाकाम रहते हैं तो कोर्ट प्रदेश सरकार को भूमि का मालिक घोषित करे। साथ ही राज्य सरकार यह तय करे कि उस विवादित जमीन का क्या करना है। पांडेय की ओर से दाखिल नोट को सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड पर ले लिया है।
उपासक की हैसियत से अर्जी दाखिल
पेशे से वकील उमेश चंद्र पांडेय की उपासक की हैसियत से दाखिल अर्जी पर 1986 में फैजाबाद की जिला अदालत ने राम जन्मभूमि का ताला खोलने का आदेश दिया था। पांडेय सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला और निर्मोही अखाड़ा तीनों के मुकदमों में प्रतिवादी पक्षकार हैं।
वैकल्पिक राहत पर लिखित नोट
गुरुवार को पांडेय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वी. शेखर ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ के समक्ष वैकल्पिक राहत पर अपना लिखित नोट देते हुए कोर्ट से उसे स्वीकार करने का आग्रह किया। मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई खत्म होने के सात दिन बाद वैकल्पिक राहत पर लिखित नोट देने पर हल्के-फुल्के अंदाज में टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या अयोध्या केस अभी भी चल रहा है। हमें तो लगता है कि अब सुनवाई पूरी हो गई। हालांकि कोर्ट ने नोट को रिकॉर्ड पर ले लिया।
नोट में कहा गया है कि अगर कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि वाद संख्या पांच यानी भगवान श्रीराम विराजमान और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड दोनों ही जमीन पर अपना मालिकाना हक साबित करने में नाकाम रहे हैं तो कोर्ट राज्य सरकार को विवादित जमीन का मालिक घोषित कर दे। कहा गया है कि ये मामले में स्वीकृत तथ्य है कि जब 1856 में लॉर्ड डलहौजी ने अवध के नवाब को अचानक हटा दिया था और लॉर्ड कैनिन ने 3 मार्च 1858 को अवध की संपत्ति अधिकार ब्रिटिश सरकार ने जब्त करने की घोषणा की थी जो कि 30 अप्रैल 1858 कलकत्ता गजट में छपी थी। ऐसे में अयोध्या की विवादित जमीन सहित सभी संपत्तियों के अधिकार जब्त हो गए और वह जमीन सरकारी जमीन (नजूल) घोषित हो गई।
यह भी कहा गया है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपने मुकदमे में स्वीकार किया है कि विवादित जमीन नजूल की जमीन है। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि उसके बाद सरकार ने वह विवादित जमीन किसी को आवंटित नहीं की न ही अनुदान में दी, इसलिए वह जमीन आज भी नजूल की जमीन है। ऐसे में कोर्ट वैकल्पिक राहत पर विचार करते समय यह देखे कि अगर रामलला और सुन्नी वक्फ बोर्ड दोनों जमीन पर मालिकाना हक साबित करने में नाकाम रहे हैं तो राज्य सरकार को जमीन का मालिक घोषित कर दिया जाए। साथ ही राज्य सरकार जमीन की मालिक होने के नाते यह तय करे कि विवादित भूमि का क्या करना है।