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Ayodhya Case: बहुत कुछ बोल रही खामोश अयोध्या, अब सिर्फ फैसले का इंतजार...

खामोश रहकर भी बहुत कुछ बोलती है। भावनाओं का ज्वार भीतर ही भीतर सरयू की लहरों की तरह बह रहा है लेकिन चेहरों से नहीं पढ़ा जा सकता।

By Manish PandeyEdited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 09:40 PM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 09:40 PM (IST)
Ayodhya Case: बहुत कुछ बोल रही खामोश अयोध्या, अब सिर्फ फैसले का इंतजार...
Ayodhya Case: बहुत कुछ बोल रही खामोश अयोध्या, अब सिर्फ फैसले का इंतजार...

अयोध्या, हरिशंकर मिश्र। सत्तर साल की मुकदमेबाजी ने अयोध्या के इतिहास में बहुत सारे पन्ने भरे हैं, लेकिन अब यह रामनगरी मानो भविष्य की ओर देखना सीख गई है। यही वजह है कि देश के सबसे बड़े मुकदमे के निर्णायक क्षणों में भी उसकी नब्ज स्थिर है। लोग फैसले के पक्ष-विपक्ष में बातें करने के बजाए अमन की बातें कर रहे हैं, शांति की बातें कर रहे हैं। उनकी चिंता अयोध्या नहीं, पूरा देश है।

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टेढ़ी बाजार के अपने आवास पर बैठे हाजी महबूब अली कहते हैं-'हमारी अयोध्या के लोग इस मसले पर कभी नहीं लड़े। हमें अदालत पर भरोसा है, कोई भी फैसला स्वीकार होगा। हम तो बस इतना चाहते हैं कि इस मसले को लेकर कहीं भी कोई झगड़ा न हो।' उधर 52 बीघों के हनुमान गढ़ी परिसर में प्रसाद की एक दुकान पर बैठे महंत राजू दास कहते हैं-'नहीं..यहां कोई झगड़ा नहीं होगा। यह अयोध्या है..अयुध्य है।'

सरयू की लहरों की तरह बह रहा भावनाओं का ज्वार

यह नई अयोध्या है। खामोश रहकर भी बहुत कुछ बोलती है। भावनाओं का ज्वार भीतर ही भीतर सरयू की लहरों की तरह बह रहा है, लेकिन चेहरों से नहीं पढ़ा जा सकता। दीपोत्सव के लिए राम की पैड़ी पर चल रही तैयारियों के बीच आंजनेय सेवा संस्थान के अध्यक्ष महंत शशिकांत दास सहज भाव में पूछते हैं-'सुनवाई तो पूरी हो गई होगी?' बगल में खड़ा एक युवक सिर हिलाकर हां में बताता है। यानी भीतर ही भीतर सबको यह मसला मथता है, लेकिन वे आगे की बातें करना पसंद करते हैं। मुकदमे की चर्चाओं के बीच ही साकेत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डा. वी. एन. अरोरा कहते हैं-'अयोध्या अब करवट ले रही है। उसे पहचान का संकट नहीं है। हां, अब वह अपने विकास की चिंता भी करती है। अगले कुछ साल यहां शिक्षा स्वास्थ्य और उद्योग के हो सकते हैं। हो सकता है, यह दिवाली ही इसका संदेश दे।' उनका इशारा दीपोत्सव पर आ रहे मुख्यमंत्री योगी की ओर है। जी हां, अयोध्या राम मंदिर पर कोर्ट से फैसला सुनने को आतुर है लेकिन, योगी से विकास की उम्मीदें ही करती है। मंदिर मामले में अनवरत सुनवाई के शोर में उन्होंने होश नहीं खोया है। लोगों को पता है कि किन क्षेत्रों में काम होने से असली विकास होगा।

पूरा देश हो गई है अयोध्या 

लेकिन, फैसले की घड़ी आसन्न होने से कुछ क्षेत्रों की तस्वीर बदली है। राम टोला के निकट कार्यशाला के पत्थरों में लोगों की आवाजाही ने जैसे जान सी डाल दी है। यहां तराशे हुए पत्थर रखे हैं। देश के मीडियाकर्मियों का जमावड़ा यहां पर है और अयोध्या पूरा देश हो गई है। मुंबई के मुलुंड से प्रताप भाई के साथ 50 लोगों का हुजूम यहां पहुचा है। एक समूह चेन्नई से भी आया है। उनके लिए यह पत्थर ही भगवान हैं। साथ की महिलायें इन पत्थरों को प्रणाम करती हैं, इस उम्मीद में कि कभी तो इनका उपयोग होगा ही। यहां की व्यवस्था में लगे बिरजू बताते हैं-पूरे देश से लोग आने लगे हैं। गुजरात, राजस्थान और मीरजापुर के कारीगर भी यहां हैं। यहां मिले बबलू खान और मित्र मंच के प्रमुख शरद पाठक कहते हैं -'हम तो पहले से ही मिल -जुलकर काम कर रहे हैं। पिछले रमजान में आरएसएस के बड़े नेता इंद्रेशजी के साथ रोजा अफ्तार कराया था। पंचकोसी परिक्रमा में सौ से अधिक मुस्लिम शामिल थे।' उनके निहितार्थ स्पष्ट हैं-फैसला कुछ भी हो, पूरी अयोध्या को मंजूर है।

साथ-साथ जाते थे मुकदमा लड़ने 

फिर भी कुछ लोगों की कमी इस ऐतिहासिक मौके पर लोगों को सालती है। मंदिर के लिए जिए थे महंत भाष्करदास और परमहंस रामचंद्र दास, मस्जिद ही जिंदगी थी मो. हाशिम की। साथ-साथ मुकदमा लड़ने जाते थे। जाने कितनी कहांनियां हैं अयोध्या में उनकी। लेकिन, अब जब फैसले की घड़ी है तो वे नहीं हैं। रामसेवक पुरम में राम के जीवनवृत्त को लेकर रंजीत मंडल मूर्तियां गढ़ने में व्यस्त हैं। उन्होंने एक बड़ा चित्र टांग रखा है, कहते हैं-'हमें ये ही यहां लेकर आए थे। काश आज अशोक सिंहलजी भी होते।'


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