Move to Jagran APP

Aurangabad Train Accident: जीवित बचे व्यक्ति ने कहा, मैं पूरी जिंदगी हादसे से नहीं उबर पाउंगा

औरंगाबाद ट्रेन हादसे में जीवित बच गए एक व्यक्ति ने कहा कि उसकी आंखों के सामने ही साथियों की जिस तरह से मौत हुई उससे उसे गहरा मानसिक आघात हुआ है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 10 May 2020 01:33 AM (IST)Updated: Sun, 10 May 2020 01:33 AM (IST)
Aurangabad Train Accident: जीवित बचे व्यक्ति ने कहा, मैं पूरी जिंदगी हादसे से नहीं उबर पाउंगा
Aurangabad Train Accident: जीवित बचे व्यक्ति ने कहा, मैं पूरी जिंदगी हादसे से नहीं उबर पाउंगा

औरंगाबाद, प्रेट्र। औरंगाबाद ट्रेन हादसे में जीवित बच गए एक व्यक्ति ने कहा कि उसकी आंखों के सामने ही साथियों की जिस तरह से मौत हुई, उससे उसे गहरा मानसिक आघात हुआ है। लगता है वह पूरी जिंदगी इससे उबर नहीं पाएगा। जिस तरह अपने साथियों को खोया है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। हादसे के शिकार 16 कामगारों के शव विशेष ट्रेन से मध्य प्रदेश भेज दिए गए हैं। 

loksabha election banner

 मध्य प्रदेश में अपने गांव की ओर जा रहे 20 लोगों में शामिल थे

इसी विशेष ट्रेन में शिवमान सिंह और जीवित बचे तीन लोग अन्य जा रहे हैं। हादसे में मारे गए 16 लोग मध्य प्रदेश में अपने गांव की ओर जा रहे 20 लोगों में शामिल थे। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में शुक्रवार को रेलवे लाइन पर वे लोग आराम करने रुके थे कि उसी समय एक मालगाड़ी उन्हें रौंदते हुए गुजर गई।

 आसान नहीं है हादसे को भूल जाना

सिंह ने कहा, 'शुक्रवार सुबह हादसे के बाद से कई चीजें हुई। हालांकि मैं पूरी तरह थका था फिर भी शुक्रवार की रात मैं सो न सका। इसका कारण यह है कि दुर्घटना की डरावनी छवि मेरे दिमाग में बनती रही। मैं सोचता हूं कि मैं कभी इस त्रासदी के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकूंगा। इसकी तस्वीर कभी मेरी आंखों से नहीं मिट सकेगी। यह सब अचानक हुआ। दुर्घटना से पहले हम सभी चले थे और एक साथ खाना खाया था। दुर्घटना की खबर मिलने के बाद मेरे परिवार के सदस्यों ने मुझे बार-बार फोन करने का प्रयास किया, लेकिन बैटरी डिस्चार्ज होने से मेरा फोन बंद हो गया था।'

 पलक झपकते ही सबकुछ समाप्त हो गया

सिंह और 19 अन्य औरंगाबाद के समीप जालना में एक स्टील निर्माण इकाई में काम करते थे। गुरुवार शाम उन लोगों ने पैदल ही अपने गांव पहुंचने का फैसला किया था। जालना से 35 किलोमीटर पैदल सफर तय करने के बाद पैर दुखने लगे तो श्रमिक पटरियों पर आराम करने लगे। जिस समय दुर्घटना हुई उस समय वे कुछ अलग हटकर सो रहे थे। आराम करते-करते श्रमिकों को झपकी लग गई। जैसे ही तेज गति से आ रही गाड़ी की आवाज सुनाई दी, उन्होंने सचेत करने का प्रयास किया, लेकिन पलक झपकते ही सबकुछ समाप्त हो गया।

मैंने सभी को बचाने की कोशिश की, वीरेंद्र सिंह हादसे में घायल 

उधर, हादसे के बाद उमरिया का वीरेन्द्र सिंह घर पहुंच कर बेसुध हो गया। उसने बताया कि मैंने ट्रेन को आते देख लिया था और चीख-चीखकर साथियों को आवाज लगाई थी, लेकिन कोई भी नींद से नहीं जागा। हादसे में उसके भाई की भी मौत हो गई है।

 खाने के लिए नहीं थे पैसे 
हादसे के शिकार हुए गजराज सिंह के दोनों बेटे बुद्घराज सिंह और शिवदयाल सिंह ने फोन कर बताया था कि उनके पास खाने की व्यवस्था नहीं है। जो रुपए पास में थे, उसमें से 40 रुपए किलो चावल खरीदकर खा रहे हैं। अब वह भी नहीं बचा, इसलिए वे हर हाल में घर आना चाहते हैं। 

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.