74 की उम्र में भी पेड़-पौधों से इतना प्रेम, 6 बार लिम्बा बुक में दर्ज हुआ नाम
मदन गोपाल कोहली (74) एक ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने अपने मकान के पचास वर्ग गज की छत पर 25 हजार से अधिक पौधे लगाकर मिसाल कायम की है। पेड़ पौधे से उनका यह प्रेम इस कदर परवान चढ़ा है कि उनकी यह उपलब्धि लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में छह बार जगह पा चुकी है।
दिल्ली, [नीरज कुमार वर्मा]। मदन गोपाल कोहली (74) एक ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने अपने मकान के पचास वर्ग गज की छत पर 25 हजार से अधिक पौधे लगाकर मिसाल कायम की है। पेड़ पौधे से उनका यह प्रेम इस कदर परवान चढ़ा है कि उनकी यह उपलब्धि लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में छह बार जगह पा चुकी है। कृषि अनुसंधान केंद्र पूसा के विशेषज्ञ भी इनसे सलाह लेने आते हैं। उन्होंने ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया है, जिससे 47 डिग्री के तापमान में भी सर्दियों के फल, फूल और सब्जियां आदि सुरक्षित बने रहते हैं। उन्होंने इस हरियाली का नाम टेरिस गार्डन दिया है। इनका यह गार्डन मुगल गार्डन तो नहीं, लेकिन उससे कम भी नहीं है।
छह बार लिमका बुक में नाम
कोहली ने पहली बार 2007 में आम के पेड़ में 16 इंच लम्बे और 6 इंच चौड़े पत्ते, 2008 में पोदीना की 2.18 मी लम्बी बेल, 2010 में 1.96 मी लम्बे गेंदे के पौधे और 2012 में एक पॉट में 20 कौसमोस फूल, 2013 में सूर्यमूखी के एक पौधे में 20 फूल व मार्च 2014 में साढ़े सात फीट लंबी पोदीना की बेल लगाकर अब तक छह बार लिमका बुक में नाम दर्ज करा चुके हैं। इसके अलावा ऑल इंडिया किचन गार्डन, दिल्ली फ्लॉवर शो, रोज सोसायटीज ऑफ इंडिया की ओर से कई अवार्ड भी ले चुके हैं। वह पिछले कई सालों से प्रत्येक वर्ष छत पर फ्लॉवर शो लगाते हैं। यह आठ दिनों तक चलता है। जिसे देखने कई राज्यों से लोग पहुंचते हैं। यहां फूल, फल व हर्बल समेत कई किस्मों के पौधे लगे हैं, जो अपने में अनोखे हैं।
सपना किया साकार
हरियाणा की एक कंपनी से सेवानिवृत मदन कोहली पत्नी व एक बेटी के साथ केशवपुरम, लारेंस रोड स्थित सी-8 में रहते हैं। उन्होंने बताया, नौकरी में रहते हुए समयाभाव के चलते पर्यावरण संरक्षण की तरफ ध्यान नहीं दे सके थे। सेवानिवृत्त के बाद जीवन पर्यावरण के प्रति समर्पित करने का संकल्प लिया था। उनका सपना था वह अपना मुगल गार्डन बनाएंगे। हालांकि ऊंची सोसायटियों वाले इलाके में जगह नहीं मिली। इसके बाद घर की छत पर ही टेरिस गार्डन बना डाला।
ऐसे लगाते हैं पौधे
वह पानी, प्लास्टिक और बेकार की चीजों को रि-साईकल कर पेड़ पौधे को संजीवनी दे रहे हैं। उन्होंने कुछ गमलों के अलावा ज्यादातर पौधे छोटे -बड़े आकार के हिसाब से प्लास्टिक की बोरियों, वेस्ट थर्माकोल, आइसक्रीम कप, बेकार पॉलीथिन और नारियल के छिलके तक में लगाए ताकि छत पर गमलों का बोझ न बढ़े। वह रोजाना दो-दो घंटे सुबह शाम पौधों को पानी देते हैं और उन्हें सीढ़ीनुमा तरीके से सजा कर रखा है, जिससे पानी एक के बाद दूसरे पौधे में रि-साईकल होता चला जाता है। धूप और छांव की मांग के हिसाब से उन्होंने सभी पौधों को सजाया हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन्होंने यह सब कुछ अपने दम पर किया है।