Move to Jagran APP

गुजरात चुनाव विशेष: कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है उधार का एजेंडा

मोदी जब आठ मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार खत्म करने के ऐन बाद गुजरात संकल्प यात्रा पर आए थे तो उन्होंने बाबा सोमनाथ के दर्शन किए थे।

By Manish NegiEdited By: Published: Fri, 24 Nov 2017 08:36 PM (IST)Updated: Sat, 25 Nov 2017 11:30 AM (IST)
गुजरात चुनाव विशेष: कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है उधार का एजेंडा
गुजरात चुनाव विशेष: कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है उधार का एजेंडा

प्रशांत मिश्र। मैं बाबा सोमनाथ के प्रांगण में खड़ा हूं। अरब सागर की लहरें थपेड़े लेकर आती हैं, गरजती हुई मचलती हुई, लेकिन मंदिर की दीवार को छूकर लौटती हैं तो बिल्कुल शांत होकर। जैसे किसी ने उसके सारे आक्रमण को चुंबक से खींच लिया हो। यहां शक्ति उसे ही मिलती है जो समर्पण के भाव से आए।

loksabha election banner

मोदी जब आठ मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार खत्म करने के ऐन बाद गुजरात संकल्प यात्रा पर आए थे तो उन्होंने बाबा सोमनाथ के दर्शन किए थे। प्रदेश में भाजपा की चुनावी तैयारी भी उसी दिन से शुरू हो गई थी। भाजपा का कोई भी अभियान बाबा सोमनाथ के दरबार से ही शुरू होता है। खुद को बदलने की कोशिश में जुटी कांग्रेस के नेता भी बाबा सोमनाथ और द्वारिकाधीश के चरणों में बार-बार सिर झुका रहे हैं। लेकिन, यहां की आम जनता है कि इसे मानने को तैयार नहीं है। उधार का यह एजेंडा उल्टा ही पड़ जाए तो आश्चर्य नहीं।

जैसे-जैसे धूप चटक हो रही है, सूरज आसमान पर चमकने लगा है और गुजराती भाई अपनी-अपनी दुकानें बंद कर तीन घंटे के विश्राम के लिए जाने को तैयार हैं। मैं मंदिर के प्रांगण के बाहर खड़ा सोच रहा हूं कि क्या यह वही प्रदेश है, जहां सरदार वल्लभभाई पटेल, बाबू राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं ने देश और प्रदेश की भावना और सॉफ्ट हिंदुत्व को जाना, समझा और परखा होगा। अफसोस है कि कांग्रेस की इस विरासत को कांग्रेस के नुमाइंदे ही नहीं संभाल पाये और न ही समझ पाये। अफसोस भी होता है कि 132 साल पुरानी कांग्रेस आज गुजरात में सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेलने को मजबूर है। उसे यह नहीं पता कि यह सियासी कार्ड उसकी आंखों की काजल तरह भाजपा ढाई दशक पहले ही ले उड़ी थी। केवल गुजरात में ही नहीं पूरे देश में। अब पूरी राजनीतिक थाली खाली है तो उनका प्रभु दर्शन हाथ पैर मारने से ज्यादा नहीं दिख रहा है।

आज जब राहुल गांधी बाबा के मंदिर जाकर दर्शन कर माथे पर टीका लगाकर वापस लौटते हैं तो देश की जनता के मन को प्रभावित नहीं कर पाते हैं। राहुल गांधी की इस तीर्थयात्रा को सियासत से जोड़कर देखा जाता है। इससे उलट त्रिपुंड लगाये प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी बाहर आते हैं तो आलोचक इसे हिंदुत्व का एजेंडा ठहराते हैं। किसी भी सूरत में कम से कम इसे दिखावा नहीं कहा जाता है। नरेंद्र भाई मोदी के राजनीतिक सफर के साथ तीर्थाटन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पर्यायवाची बन गया है।

यह सर्वविदित है कि गुजरात सॉफ्ट हिदुत्व वाला प्रदेश रहा है, सभी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के कथाकार इसी धरती ने दिये हैं। हिंदू धर्म से लेकर जैन धर्म के ज्यादातर कथावाचक गुजरात की धरती ने दिये हैं। इसी मिट्टी में महात्मा गांधी, सरदार पटेल, केएम मुंशी, मोरार जी जैसे रत्‍‌न जन्मे हैं। बाबा सोमनाथ, नागेश्र्वर, द्वारिकाधीश, श्रीअंबा जी, पालिताणा जैसे तीर्थ तीर्थ स्थल भी यहीं है। लेकिन कांग्रेस ने जब से सेक्यूलरिज्म का लबादा ओढ़कर खुले तौर पर तुष्टीकरण की नीति को बढ़ावा दिया, तब से धीरे धीरे चीजें उसके हाथ से खिसकती गई। पहले जनसंघ फिर भाजपा उसी खाली जगह को हथियाती रही। जब तक कांग्रेस समझती तब तक देर हो चुकी थी।

आज का दिन है, 132 साल पुरानी पार्टी के भावी अध्यक्ष राहुल बाबा को अपनी पार्टी को जिताने के लिए गुजरात में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर जैसे उधार के नेताओं का मुंह ताकना पड़ रहा है। शायद वह भूल गये हैं कि आज से नौ महीने पहले उत्तर प्रदेश में वाराणसी के जिस सांसद नरेंद्र दामोदर दास मोदी को वह बाहरी कह रहे थे, उनके गुजरात में राहुल कितनी जमीन बचा पाएंगे?

यह भी पढ़ें: पोरबंदर में बोले राहुल- नोटबंदी के बाद लाइन में नहीं दिखे सूट-बूट वाले


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.