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फटाफट कामयाबी के शॉर्ट कट ने रोक दिए केजरीवाल के कदम

पंजाब में आम आदमी पार्टी को उस तरह से सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sat, 11 Mar 2017 04:14 PM (IST)Updated: Sat, 11 Mar 2017 04:34 PM (IST)
फटाफट कामयाबी के शॉर्ट कट ने रोक दिए केजरीवाल के कदम
फटाफट कामयाबी के शॉर्ट कट ने रोक दिए केजरीवाल के कदम
मुकेश केजरीवाल, नई दिल्ली। चुनाव नतीजों से साफ है कि अरविंद केजरीवाल और उनकी राजनीतिक पार्टी ने जिस तरह अपने मूल आदर्श छोड़ कर चालू राजनीतिक दांव-पैतरे अपनाए, वे उनके लिए 'फटाफट कामयाबी' की चाबी नहीं बन सके। उन्होंने कई रणनीतिक भूलें तो की हीं, अति उत्साह ने भी उनके राजनीतिक रथ को शुरुआत में ही रोक दिया है। ऐसे में उम्मीदवारों के चयन से ले कर अपने काम-काज के तरीकों तक पर लाजमी है कि वे गंभीरता से विचार करेंगे।
महज चार साल पहले बनी और सिर्फ दो साल पहले दिल्ली में ऐतिहासिक बहुमत पाने वाली आम आदमी पार्टी इतने कम समय में कितना बदली है, इसे समझना है तो आप पार्टी की वेबसाइट पर लगाया गया वह दस्तावेज देख लीजिए जिसमें लिखा है, 'हम दूसरी पार्टियों से कैसे अलग हैं।'  पंजाब में केंद्रीय नेतृत्व ने जिस तरह एक झटके में पार्टी के राज्य प्रमुख को ही निकाल बाहर किया, उससे जाहिर हो गया था कि जिन सिद्धांतों की दुहाई दे कर यह संगठन खड़ा हुआ था, वे तेजी से छूट रहे हैं।
नतीजों से साफ दिखता है कि पंजाब और गोवा दोनों ही राज्यों में लोगों में विकल्प की तलाश तो थी, लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) इनका विश्वास नहीं जीत सकी। पहली बार इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव लडऩे वाली एक नई राजनीतिक पार्टी के लिहाज से देखें तो पंजाब में नतीजे बहुत बुरे नहीं कहे जा सकते। मगर जितना समर्थन छह-सात महीने पहले तक केजरीवाल की रैलियों में दिख रहा था, संभवत: उसे इसने अपनी गलतियों से खोया।
आप की हार के कारण
1. अपनी अलग पहचान न बना पाना
2. जमीनी संगठन की कमी
3. अनुभव की कमी
4. अति आत्मविश्वास
5. सिद्धू पर उहापोह
6. सिख मुख्यमंत्री घोषित नहीं करना
7. मालवा पर केंद्रित रहना
पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने दोनों ही राज्यों में चुनाव जीतने के लिए भले जितने भी जतन किए हों, लेकिन राजनीतिक अनुभव की कमी इस कदर दिखी कि नतीजे आने से पहले ही उन्होंने अपने घर के बाहर जश्न की जोरदार तैयारियां कर ली थीं। रंग-बिरंगे बैलून, बड़ी टीवी स्क्रीन और बैनर के साथ सुबह सात बजे से ही नतीजों का स्वागत करने की तैयारी हो गई थी। जबकि नतीजे मतगणना शुरू होने के बाद से ही बिल्कुल ठीक उल्टे आ रहे थे।
गोवा को ले कर बहुत बड़ी उम्मीद तो पार्टी को भी नहीं थी, लेकिन पंजाब में अकाली दल का विकल्प बनने के चक्कर में इसने कïट्टरपंथी सिखों से करीबी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उम्मीदवारों का चयन तो इसने काफी पहले कर लिया, लेकिन वास्तविक संगठन का अभाव साफ तौर पर दिखा। ऐसे में ना तो दिल्ली और विदेशों से आए समर्थकों की मदद उनकी नैया पार लगा सकी और ना ही डेरों के चक्कर लगाने से ही उनको कोई खास लाभ मिल सका। सिद्धू की तारीफ भी की और उसका विरोध भी किया। सबसे बड़ा चेहरा बने भगवंत मान ने खूब मेहनत भी की, लेकिन नशे में डूबे रहने के आरोप से छवि नहीं बना पाए।

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