Positive India: अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पहचानेगा कितना सुरक्षित है आपका पानी
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने आर्सेनिक के प्रदूषण का पता लगाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित मॉडल विकसित किया है। शोधकर्ताओं को गंगा-डेल्टा क्षेत्र के भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी और मानव स्वास्थ्य पर उसके कुप्रभावों की भविष्यवाणी करने में कामयाबी हासिल हुई है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। पूर्वी भारत की कई जगहों पर पानी में आर्सेनिक की समस्या बीते दो दशकों से है। इसकी वजह से इन क्षेत्रों में करोड़ों लोगों को सेहत से जुड़ी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वैसे तो बीते कुछ सालों में सरकार ने जल जीवन मिशन द्वारा पानी की शुद्धता बढ़ाने के लिए काफी काम किया है, लेकिन इसका पुख्ता हल नहीं निकल सका है। हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने आर्सेनिक के प्रदूषण का पता लगाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित पूर्वानुमान मॉडल विकसित किया है।
इस मॉडल की सहायता से शोधकर्ताओं को गंगा-डेल्टा क्षेत्र के भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी और मानव स्वास्थ्य पर उसके कुप्रभावों की भविष्यवाणी करने में कामयाबी हासिल हुई है। इससे आने वाले समय में देश के आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों के लिए योजना बनाने में आसानी होगी। यह शोध इंटरनेशनल जनरल ‘साइंस ऑफ द टोटल इंवायरनमेंट’ में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह मॉडल पेयजल में आर्सेनिक की मौजूदगी का पता लगाने में मददगार साबित हो सकता है। पर्यावरणीय, भूवैज्ञानिक एवं मानवीय गतिविधियों से संबंधित मापदंडों के आधार पर विकसित यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम पर आधारित मॉडल है।
मॉडल में क्षेत्रीय स्तर पर आर्सेनिक के खतरे के लिए सतह की जलरोधी मोटाई और भूमिगत जल से सिंचाई के बीच अंतर्संबंध को दर्शाया गया है। शोधकर्ता टीम की प्रमुख मधुमिता चक्रवर्ती और अभिजीत बनर्जी ने बताया कि गंगा रिवर डेल्टा क्षेत्र में 3.03 करोड़ लोग आर्सेनिक के असर से प्रभावित हैं। उन्होंने बताया कि हमारे एआई मॉडल ने अनुमान लगाया है कि आधे से अधिक गंगा रिवर डेल्टा के ग्राउंडवाटर में आर्सेनिक की अधिकता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि यह मॉडल पश्चिम बंगाल के आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों के लिए काफी प्रभावकारी होगा। साथ ही यह देश के अन्य हिस्सों के लिए भी असरदार होगा, जहां के भूगर्भजल में तमाम अशुद्धियां हैं। बनर्जी ने कहा कि आने वाले समय में यह मॉडल काफी प्रभावकारी होगा, पर यह कुछ इलाकों में फील्ड परीक्षण की बात को भी पूरी तरह नहीं नकारता है।
आर्सेनिक का सेहत पर असर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी आर्सेनिक प्रदूषण की वजह से ही होती है। आर्सेनिक वाले पानी के सेवन से त्वचा में कई तरह की समस्याएं होती हैं। इनमें प्रमुख हैं- त्वचा से जुड़ी समस्याएं, त्वचा कैंसर, ब्लैडर, किडनी व फेफड़ों का कैंसर, पैरों की रक्त वाहनियों से जुड़ी बीमारियों के अलावा डायबिटीज, उच्च रक्त चाप और जनन तंत्र में गड़बड़ियां। भारतीय मानक ब्यूरो के मुताबिक, इस मामले में स्वीकृत सीमा 10 पीपीबी नियत है, हालांकि वैकल्पिक स्रोतों की अनुपस्थिति में इस सीमा को 50 पीपीबी पर सुनिश्चित किया गया है।