दिन पर दिन बुद्धिमान हो रहीं मशीनें, इंसानों को भी बना सकती हैं बेवकूफ, जानिए कैसे
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की गति को रोकना संभव नहीं दिखता है। तकनीक बढ़ती रहेगी और खतरा भी बढ़ता जाएगा। ऐसे में सिर्फ और सिर्फ आपकी सतर्कता ही ऐसे खतरे से बचा सकती है।
नई दिल्ली, जेएनएन। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) यानी मशीनों को बुद्धिमान बनाना। एआइ की तकनीक ने विज्ञान को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है। चिकित्सा और हथियार से लेकर विभिन्न शोध तक कई क्षेत्रों में एआइ की मदद से नया इतिहास रचा जा रहा है।
इन उपलब्धियों के साथ ही पैदा हो रहा है एक नया खतरा। खतरा यह कि अगर मशीनें इंसान से ज्यादा बुद्धिमान हो गई तो क्या होगा? अगर मशीनों ने अपनी बुद्धि के इस्तेमाल से इंसान को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया, तो बचाएगा कौन? महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंस ने इन्हीं स्थितियों की कल्पना करते हुए एआइ के विस्तार को मानवता के लिए खतरा बताया था।
एआइ एक ऐसी तकनीक है जिसके अनगिनत नफा-नुकसान हो सकते हैं। इसकी मदद से गंभीर बीमारियों का इलाज खोजा जा सकता है, तो यह चुटकी बजाते ही एक भयानक हथियार बनकर लोगों की जान भी ले सकता है। इसके अच्छे और बुरे दोनों ही इस्तेमाल की कोई सीमा नहीं है। समय-समय पर इसके उदाहरण भी सामने आते रहते हैं।
हर रोज हो रहा विस्तार
एआइ की तकनीक में हर रोज विस्तार हो रहा है। बात चाहे खबरें पढ़ने वाले वर्चुअल एंकर की हो या रेस्त्रां में खाना परोसते रोबोटिक वेटर की, एआइ ने हर जगह चौंकाया है। सोफिया नाम की एक रोबोट को तो सऊदी की नागरिकता भी मिल गई है। सोफिया ने ना केवल अधिकारियों के सवालों का जवाब दिया, बल्कि नागरिकता मिलने पर किसी समझदार व्यक्ति की तरह धन्यवाद और आभार भी व्यक्त किया। इस तरह की उपलब्धियां एआइ की दुनिया की खूबसूरत तस्वीर दिखाती हैं।
दूसरा पहलू भी देखना जरूरी
एआइ की खूबसूरत दुनिया का दूसरा पहलू भी है। हॉकिंस जैसे वैज्ञानिकों ने इसी को लेकर चिंता जताई थी। यह पहलू है इनके दुरुपयोग का। एआइ की मदद से उन्नत होते हथियारों के खतरे से तो सब वाकिफ हैं। एक अलग खतरा भी है, जो देखने में बड़ा नहीं लगता लेकिन असर बहुत गहरा कर सकता है। यह है एआइ के इस्तेमाल से लोगों को बेवकूफ बनाना।
2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में इसका बड़ा मामला सामने आया था। एक सिक्योरिटी कंपनी जीरोफॉक्स के शोधकर्ताओं जॉन सेमर और फिलिप टुली ने एक ट्विटर बोट (कंप्यूटर वायरस की तरह काम करने वाला सॉफ्टवेयर) का पता लगाया था। यह बोट इस सोशल नेटवर्किंग साइट पर खबरों के ट्रेंड को देखते हुए नकली खबरें बनाने में माहिर था। सबसे खास बात कि इसकी खबरें इतनी असली लगती थीं कि 66 फीसद से ज्यादा लोगों ने इसके भेजे लिंक पर क्लिक कर लिया। ऐसे बोट के जरिये लोगों को बेवकूफ बनाकर आसानी से उनके कंप्यूटर सिस्टम तक पहुंचा जा सकता है। इनकी मदद से बड़ी हैकिंग को अंजाम देना भी आसान हो जाता है।
कैसे करता है काम?
इस तरह के सॉफ्टवेयर एक न्यूरल नेटवर्क की तरह काम करते हैं। यह किसी गणितीय जाल जैसा होता है, जो आसपास की सभी घटनाओं के आधार पर निर्णय लेता है। ऐसे सॉफ्टवेयर किसी कुत्ते की ढेरों तस्वीरों को देखकर उसके हावभाव की नकल उतारने में सक्षम होते हैं। यह किसी सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में चल रही खबरों को देखकर झूठी खबरें बनाने या झूठी तस्वीरें बनाने की क्षमता भी रखते हैं। इनका बनाया झूठ इतना सटीक होता है कि लोगों के लिए फर्क करना मुश्किल हो जाता है।
क्या हो सकता है बचाव?
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की गति को रोकना संभव नहीं दिखता है। तकनीक बढ़ती रहेगी और खतरा भी बढ़ता जाएगा। ऐसे में सिर्फ और सिर्फ आपकी सतर्कता ही ऐसे खतरे से बचा सकती है। एआइ से लैस हथियारों के हमले से बचना भले आपके हाथ में नहीं हो, लेकिन इनके झूठ के जाल से बचने के लिए आपको अपनी समझ और दिमाग पर भरोसा करना होगा।