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बढ़ रही अर्थराइटिस के मरीजों की संख्‍या, ये हैं लक्षण, कहीं आप भी तो नहीं इसके शिकार...?

अर्थराइटिस के अनेक प्रकार होते हैं, जैसे ऑस्टियो, र्यूमैटॉइड और गाउटी अर्थराइटिस आदि। कुछ सुझावों पर अमल कर आप अर्थराइटिस की समस्या से राहत पा सकते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 11 Oct 2018 04:23 PM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2018 08:41 AM (IST)
बढ़ रही अर्थराइटिस के मरीजों की संख्‍या, ये हैं लक्षण, कहीं आप भी तो नहीं इसके शिकार...?
बढ़ रही अर्थराइटिस के मरीजों की संख्‍या, ये हैं लक्षण, कहीं आप भी तो नहीं इसके शिकार...?

[विवेक शुक्ला]। जोड़ों (ज्वाइंट्स) को निशाने पर लेने वाली बीमारी अर्थराइटिस के मरीजों की संख्या दुनिया भर में बढ़त पर है।  ऑस्टियो अर्थराइटिस एक आम प्रकार का घुटनों का अर्थराइटिस होता है और इसे जोड़ों का रोग भी कहा जाता है। अर्थराइटिस का दर्द इतना तेज होता है कि व्यक्ति को न केवल चलने–फिरने बल्कि घुटनों को मोड़ने में भी बहुत परेशानी होती है। घुटनों में दर्द होने के साथ–साथ दर्द के स्थान पर सूजन भी आ जाती है। अर्थराइटिस के विभिन्न पहलुओं के बारे में ने की कुछ विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात...

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बेहतर है बचाव
अर्थराइटिस के अनेक प्रकार होते हैं, जैसे ऑस्टियो, र्यूमैटॉइड और गाउटी अर्थराइटिस आदि। कुछ सुझावों पर अमल कर आप अर्थराइटिस की समस्या से राहत पा सकते हैं।

- बढ़ती उम्र के साथ जोड़ों के कार्टिलेज क्षीण हो जाते हैं। उम्र के बढ़ने की प्रक्रिया को कोई रोक नहीं सकता है। ऑस्टियो अर्थराइटिस बढ़ती उम्र यानी आमतौर पर लगभग 50 साल के बाद होने वाली समस्या है। इस समस्या से पार पाने के लिए वजन को नियंत्रित रखना आवश्यक है।
- नियमित रूप से व्यायाम करें। व्यायाम करने से मांसपेशियों के साथ जोड़ भी सशक्त होते हैं।
- अपने शरीर के पोस्चर को ठीक रखें जैसे उकड़ू बैठने से बचें। सीढ़ियां न चढ़ें।
- अत्यधिक चिकनाई युक्त या वसा युक्त भोजन से परहेज करें।
- साठ की उम्र के बाद अपने भोजन में कटौती करते जाएं। मान लीजिए आप साठ साल के हैं और तीन रोटियां खाते हैं तो साठ के बाद तीन के बजाय ढाई रोटी ही खाएं। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस उम्र में शरीर का मेटॉबॉलिज्म कमजोर हो जाता है। इसलिए कार्बोहाइट्रेट युक्त आहार, जैसे रोटियां और चावल कम कर दें और प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ, जैसे दाल, चना और पनीर आदि की मात्रा बढ़ा दें।
- फलों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें। दिन में दो बार फलों का सेवन करना लाभप्रद रहता है।
- सब्जियों को बार-बार गरम न करें। इन्हें बार-बार गरम करने से इनके विटामिंस और मिनरल्स कम हो जाते हैं।
- डायबिटीज जोड़ों पर खराब असर डालती है। इसलिए डायबिटीज के साथ जिंदगी जी रहे लोगों को अपने ब्लड शुगर को नियंत्रित रखना चाहिए। ब्लड शुगर के अनियंत्रित रहने से जोड़ों के कार्टिलेज खराब होने लगते हैं।
- नियमित रूप से आधा घंटा सैर करें।
- जब जोड़ों में चोट लग जाए तो आराम करें, क्योंकि आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग आराम भी नहीं करना चाहते। आराम न करने पर जोड़ों पर
प्रतिकूल असर पड़ता है।
- अगर यूरिक एसिड थोड़ा बढ़ा हो तो प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ कम लें, लेकिन अगर ज्यादा बढ़ा है तो डॉक्टर के परामर्श से दवाएं लें।
- अगर जोड़ों में एक हफ्ते से ज्यादा समय तक सूजन और दर्द बरकरार रहे तो शीघ्र ही अस्थि व जोड़ रोग विशेषज्ञ से परामर्श लें।
[डॉ. एस.के.एस.मार्या
सीनियर आर्थोपडिक सर्जन
मेदांता दि मेडिसिटी, गुरुग्राम]

स्पाइनल र्यूमैटॉइड अर्थराइटिस
स्पाइनल र्यूमैटॉइड अर्थराइटिस ऐसी बीमारी है, जिसमें हमारे शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम) हमें बचाने के बजाय हमारे शरीर पर ही आक्रमण करने लग जाता है। इस रोग में शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र हमारे शरीर के खिलाफ उसमें बनने वाले प्रोटीन, हड्डियों में स्थित कणों, जोड़ों, इंटरवर्टिब्रल डिस्क (आईवीडी) और रीढ़ की मांसपेशियों को कमजोर करने लग जाता है। इसके परिणामस्वरूप हमारे जोड़ खराब होने लग जाते हैं, जिससे रीढ़ में विकार आ जाता है, जिसे हम स्पॉन्डिलाइटिस कहते हैं।

लक्षण
- जोड़ों में सूजन, अकड़न या लालिमा होना।
- थकावट महसूस करना।
- बुखार होना।
- यह रोग कम आयु में प्रारंभ हो जाता है, जिससे जल्दी ही रीढ़ की हड्डी में विकार और सूजन बढ़ जाती है। अंतत: रीढ़ की हड्डी का स्पॉन्डिलाइटिस हो जाता है।

रोग का दुष्प्रभाव
स्पाइनल र्यूमैटॉइड अर्थराइटिस के कारण आने वाले अधिकतम बदलावों को पलटा नहीं जा सकता। इसके परिणामस्वरूप रीढ़ की हड्डी हमेशा के लिए कार्य करना बंद कर देती है या फिर इसमें अकड़न रह जाती है। ज्यादातर यह माना जाता है कि यह बीमारी लाइलाज है और इसके साथ ताउम्र रहना पड़ेगा। यह रोग कम उम्र खासतौर पर किशोरावस्था में शुरू हो सकता है। आमतौर पर इस बीमारी का परंपरागत इलाज न केवल महंगा है, परंतु इसे पूर्ण रूप से ठीक करने में कारगर भी नहीं है। केवल यह इलाज कुछ समय के लिए अस्थाई तौर पर रोग के लक्षणों में आराम पहुंचाता है।

नई दवाएं और सर्जरी का विकल्प
पीड़ितों के लिए एक नई उम्मीद जैविक उपचार (बॉयोलॉजिकल ट्रीटमेंट) है। अगर शुरुआती उपचार के दौरान बॉयोलॉजिकल ट्रीटमेंट दिया जाए तो इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसके अलावा विशेष रूप से जीन थेरेपी एंकायलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीड़ित लोगों के लिए काफी फायदेमंद होती है। यह थेरेपी बीमारी को बढ़ने से भी बचाती है। इसी तरह इम्यूनोमॉड्यूलेशन की तकनीक स्पॉन्डिलाइटिस में असरदार है। इस तकनीक में इम्यूनोथेरेपी विशेष रूप से एंटी- न्यूक्लियर एंटीबॉडीज, ऑटोएंटीबॉडीज को खत्म करती है, जो हमारे जोड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह तकनीक हानिकारक एंटीबॉडीज के दुष्प्रभाव से बचाती है और हमारे शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को सही करती है।

आज चुनिंदा दवाएं भी मौजूद हैं, जो खराब हो चुके कार्टिलेज और इंटरवर्टिब्रल डिस्क के पुन: सुधार में मददगार है। ऑटोलोगस बोन मेरो स्टेम सेल ट्रांसप्लांट भी एक कारगर उपचार है। अगर सभी उपचार प्रभावकारी न हों तो सर्जरी का विकल्प भी मौजूद है। एंडोस्कोपिक सर्जरी से इस रोग का इलाज संभव है।
[डॉ. सुदीप जैन
स्पाइन सर्जन, नई दिल्ली]

इनफ्लेमेटरी अर्थराइटिस
अर्थराइटिस के अनेक प्रकार हैं। इनमें ऑस्टियो अर्थराइटिस को छोड़कर अर्थराइटिस के सभी प्रकारों को इनफ्लेमेटरी अर्थराइटिस के अंतर्गत शुमार किया जाता है। अर्थराइटिस से पीड़ित लोगों में एक या कई जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन उत्पन्न हो जाती है। अर्थराइटिस के रोगियों के जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और चुभने जैसी पीड़ा होती है। इसलिए इस रोग को गठिया भी कहते हैं। अलग-अलग प्रकार के अर्थराइटिस में अलग प्रकार के लक्षण सामने आ सकते हैं।

इनफ्लेमेटरी अर्थराइटिस में व्यक्ति के जोड़ों और अन्य हिस्सों में दर्द होता है। अगर किसी व्यक्ति को र्यूमैटॉयड अर्थराइटिस है तो उसे थकान, वजन कम होना, हल्का बुखार और त्वचा पर लाल रंग के निशान पड़ने की शिकायत हो सकती है। अर्थराइटिस में सूजन के साथ दर्द और उंगलियों, बाजुओं, टांगों व कलाइयों में अकड़न होती है। इसमें शरीर के जोड़ों में काफी दर्द होता है। यह दर्द सुबह नींद से जागते समय अधिक होता है।

लक्षण
- चोट के बगैर होने वाला दर्द अथवा वह दर्द जो पहले से किसी कारण से न हो और यह दर्द एक सप्ताह से अधिक समय से चल रहा हो।
- जोड़ों में सूजन जो किसी चोट के कारण न हो।
- तबियत लगातार खराब रहे और व्यक्ति को बुखार हो तो यह अर्थराइटिस का लक्षण हो सकता है।
- रोजमर्रा के कार्र्यों को करने, जैसे चलने-फिरने और झुकने में परेशानी हो रही हो तो एक बार आपको अर्थराइटिस की जांच करवा लेनी चाहिए।
- भारी वस्तु को उठाते समय कमर में दर्द हो। यही नहीं दर्द निवारक दवाएं लेने से और सिंकाई करवाने से भी फायदा न हो।
- बुखार के साथ शरीर में दर्द होना। दर्द तेजी से बढ़े और इससे जोड़ लाल हो जाएं और उनमें सूजन आ जाए।

जांचें
सूजन से ग्रस्त जोड़ का एक्सरे, साइनोवियल फ्लूड की जांच और पेशाब में यूरिक एसिड की जांचें की जाती हैं।

इलाज के बारे में
बहुत ज्यादा दर्द होने पर दर्द निवारक दवाएं (पेन किलर्स) दी जाती हैं। इसी तरह सूजन दूर करने के लिए भी दवाएं दी जाती हैं। जब दवाओं द्वारा अर्थराइटिस की चिकित्सा से पीड़ित को राहत नहीं मिलती। साथ ही घुटने और कूल्हे के जोड़ खराब हो जाते हैं, तब ऐसे में घुटना या कूल्हा प्रत्यारोपण ही कारगर इलाज होता है।
[डॉ. एस. के. सिंह
सीनियर आर्थो-स्पाइन सर्जन]

रोबोट असिस्टेड नी सर्जरी
कंप्यूटर असिस्टेड रोबोटिक सर्जरी के जोड़ प्रत्यारोपण (ज्वाइंट्स रिप्लेसमेंट) के क्षेत्र में प्रचलन में आने के बाद मरीजों को पारंपरिक सर्जरी की तुलना में अब कहींज्यादा राहत मिलने लगी है। अपने देश में घुटने (नी) की अर्थराइटिस की समस्या विकसित देशों की तुलना में कहीं ज्यादा है। कंप्यूटर असिस्टेड नी सर्जरी के परिणाम अत्यंत उत्साहवर्धक हैं।

रोबोटिक सर्जरी के फायदे
- रोबोट असिस्टेड नी सर्जरी से घुटने की प्रत्यारोपण सर्जरी का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि सर्जन को सटीक तरह से सर्जरी करने में मदद मिलती है। सामान्य सर्जरी में इतना सटीक आकलन नहीं हो पाता।
- सामान्य सर्जरी की तुलना में रोबोटिक असिस्टेड घुटने की सर्जरी में मरीज को अधिकाधिक गतिशीलता प्राप्त होती है और सर्जरी के बाद उसके पैर कुछ दिनों बाद कुदरती तौर पर कार्य करने लगते हैं।
- रोबोटिक असिस्टेड नी सर्जरी में सर्जन केवल क्षतिग्रस्त हिस्से पर ही सर्जरी करते हैं। इस कारण अन्य टिश्यूज और हड्डियों को कम से कम नुकसान
पहुंचता है और रक्त की कम हानि होती है।
- अन्य टिश्यूज को कम नुकसान पहुंचने और रक्त की कम हानि होने के कारण रोगी को घुटने की परंपरागत सर्जरी की तुलना में अस्पताल से जल्दी छुट्टी मिल जाती है।
- सही एलाइनमेंट के कारण घुटने की ज्वाइंट इंप्लांट की उम्र बढ़ जाती है।
[डॉ. अनूप झुरानी
फोर्टिस हॉस्पिटल, जयपुर] 


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