गरजता समंदर भी डिगा न सका 6 जांबाज महिलाओं का हौसला, रच दिया इतिहास
ये जांबाज महिलाएं जब प्रशांत महासागर से गुजर रही थीं तो इन्हें समुद्र का रौद्र रूप भी देखने को मिला। भयंकर तूफान का अहसास होते ही इन्होंने अपनी बोट का रुख बदल दिया।
यशा माथुर, जेएनएन। वे लौट आई हैं तूफान से लड़कर, समंदर की चुनौतियों का सामना कर। 55 फीट की 'आइएनएसवी तारिणी' बोट में उन्होंने 254 दिन का सफर किया और दुनिया का चक्कर लगाया। नेवी की इन छह महिला नाविकों ने अपनी जांबाजी से नया इतिहास रच दिया है...!
140 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से बहती समुद्री हवाएं, करीब आठ से नौ मीटर तक उठती लहरें और तापमान माइनस छह, लेकिन उनके हौसले डिगे नहीं, उन्होंने अपनी नाव को तेज हवाओं के रुख से मोड़ा और खतरनाक तूफान को छूती हुई निकल गईं अपने सफर में आगे, बहुत आगे। हम बात कर रहे हैं भारतीय नौसेना की उन जांबाज महिलाओं की जो छोटी सी 'तारिणी' नौका में सवार होकर करीब आठ महीने समंदर का सफर करती रहीं और दुनिया का चक्कर लगाकर भारत को एक बार फिर से गौरवान्वित कर दिया। इनके मुख का तेज, गर्व का अहसास और जीत की मुस्कुराहट देखते ही बनती है। इन्होंने अपनी यात्रा के दौरान 21,600 नॉटिकल मील की दूरी तय की और दो बार भूमध्य रेखा, चार महाद्वीपों और तीन सागरों को पार किया।
लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी ने इस अभियान का नेतृत्व किया और लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल, लेफ्टिनेंट कमांडर स्वाति पी, लेफ्टिनेंट ऐश्वर्या बोड्डापति, लेफ्टिनेंट एस विजया देवी और लेफ्टिनेंट पायल गुप्ता क्रू की मेंबर्स रहीं। इन सभी महिलाओं ने 55 फीट की 'आइएनएसवी तारिणी' के जरिए अपनी कठिन यात्रा पूरी की। नेवी की इन बहादुर महिलाओं को इस अभियान के लिए तैयार करने में करीब तीन साल लगे। अपनी ट्रेनिंग के बारे में क्रू की कप्तान वर्तिका जोशी बताती हैं, 'हमारी ट्रेनिंग तीन साल पहले शुरू हुई। सबसे पहले हमें बोट हैंडलिंग सीखनी थी। हम नेवी में जरूर थे, लेकिन हमेशा किनारों पर रहे थे, समंदर में नहीं गए थे, सेल बोट नहीं चलाई थी। इसलिए हर चीज शुरुआती स्तर से ही सीखनी थी हमें।' अपनी ट्रेनिंग का पूरा ब्यौरा बताते हुए वे कहती हैं कि हमने कोचीन में सीमैनशिप, कम्युनिकेशन, नेवीगेशन, मौसम की भविष्यवाणी आदि सीखी। यह सब थ्योरेट्रिकल ट्रेनिग में था, लेकिन हमें तो समंदर में बोट लेकर जाना था। नाव के बारे में ज्यादा जानना था, पूरे अभियान के दौरान खुद ही सारे काम करने थे। इसके बाद हम मदही गए, जहां हमारी प्रैक्टिकल ट्रेनिंग हुई। हमने बोट की हर विशेषता को जानना शुरू किया। हम उसे समंदर में ले गए और हमने बोट में हर काम खुद किया। हम दो बार बोट से मॉरीशस गए। केपटाउन गए, पोरबंदर गए और देश में कई जगह गए। बहुत ऑर्गनाइज्ड तरीके से हमारी ट्रेनिंग हुई।
ये जांबाज महिलाएं जब प्रशांत महासागर से गुजर रही थीं तो इन्हें समुद्र का रौद्र रूप भी देखने को मिला। भयंकर तूफान का अहसास होते ही इन्होंने अपनी बोट का रुख बदल दिया। ये घबराई नहीं, सूझबूझ से फैसले लिए और तूफान से बचकर निकलने में सफल हो गईं। लेफ्टिनेंट एस विजया देवी कहती हैं, '140 किलोमीटर प्रति घंटा के वेग से हवा थी। एक स्थिति ऐसी भी आई कि एक भारी लहर नाव पर आ गई। कॉकपिट में पानी आ गया। उस समय मैं बाहर थी और मैंने करीब नौ मीटर की ऊंचाई वाली लहरों को रोंगटे खड़े कर देने वाला अनुभव किया। हम गिर सकते थे, लेकिन सुरक्षा उपकरणों से हम बच पाए। लहरें बहुत खतरनाक थीं। हम तीन लोग बाहर थे। हम सबने इस तूफान का सामना किया। हमारी नाव की एक खासियत थी कि वह हवा का रुख देखकर मुड़ जाती है और रुक जाती है।'
लेफ्टिनेंट ऐश्वर्या बोड्डापति नाव पर समंदर में अपनी दिनचर्या बताते हुए कहती हैं कि दो लोग बोट पर बाहर रहते थे जो मौसम और हवा के हिसाब से बोट को एडजस्ट करते थे। चार लोग अंदर रहते थे जो दूसरे काम करते थे। इसमें सफाई, कुकिंग, मेंटीनेंस करते थे। नाव में हम ही प्लंबर थे और हम ही मैकेनिक। इंजन की हर खराबी की मरम्मत हम ही करते थे। किसी भी इलेक्ट्रिकल उपकरण की मरम्मत भी हम ही करते थे चाहे वह बिजली का उपकरण हो या मॉनीटर। हमारे पास सैटेलाइट कम्युनिकेशन था जो वाईफाई राउटर से जुड़ा था। डाटा तो सीमित था, लेकिन इसके द्वारा हम अपने परिवार से बात कर पाते थे उन्हें अपनी कुशलता का समाचार दे देते थे।