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सेना को अभी करना होगा नई राइफलों का इंतजार

नई दिल्ली, प्रणय उपाध्याय। भारतीय सेना के पैदल जवानों और सैन्य दस्तों को 2014 तक नई राइफलों व असलहे से लैस करने की योजना अपनी निर्धारित समय सीमा चूक सकती है। सेना के लिए नई स्नाइपर राइफलें, हल्की मशीनगनें व कार्बाइन समेत कई मूलभूत हथियारों को बदलने की परियोजना अब भी खरीद की दहलीज से काफी दूर है। ऐसे में अगले पांच साल के भीतर इ

By Edited By: Published: Wed, 20 Nov 2013 08:13 PM (IST)Updated: Wed, 20 Nov 2013 08:20 PM (IST)
सेना को अभी करना होगा नई राइफलों का इंतजार

नई दिल्ली, प्रणय उपाध्याय। भारतीय सेना के पैदल जवानों और सैन्य दस्तों को 2014 तक नई राइफलों व असलहे से लैस करने की योजना अपनी निर्धारित समय सीमा चूक सकती है। सेना के लिए नई स्नाइपर राइफलें, हल्की मशीनगनें व कार्बाइन समेत कई मूलभूत हथियारों को बदलने की परियोजना अब भी खरीद की दहलीज से काफी दूर है। ऐसे में अगले पांच साल के भीतर इंफेंट्री बटालियनों की बंदूकें बदलने का लक्ष्य काफी मुश्किल है।

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योजना के तहत सेना की 350 इंफेंट्री बटालियनों के लिए विभिन्न किस्म की एक लाख से ज्यादा राइफलें खरीदी जानी हैं। सेना मुख्यालय के सूत्र भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि विभिन्न किस्म की राइफलों की खरीद अभी शुरू नहीं हो सकी है। मसलन, हल्की मशीनगनों की खरीद के लिए अभी गुणवत्ता मानक ही तय नहीं हो पाए हैं। महत्वपूर्ण है कि हर बटालियन में 40 एलएमजी होती हैं। इंफेंट्री दस्तों के लिए 14 हजार से ज्यादा एलएमजी खरीदी जानी हैं। आधुनिकीकरण योजना के तहत कुछ ऐसा ही हाल स्नाइपर राइफलों का भी है। थलसेना दस्तों के पास मौजूदा रूसी ड्रुगानोव स्नाइपर राइफल दशकों पुरानी हैं। सैन्य सूत्रों के मुताबिक भार में हल्की और करीब एक किमी तक मार करने वाली स्नाइपर राइफल खरीद के लिए कंपनी तलाश की कवायद भी अधूरी ही है। सूत्रों के मुताबिक यह परियोजना अभी खरीद के पैमाने तय करने से आगे नहीं बढ़ पाई है। पुरानी बंदूकों को नए हथियारों से बदलने की योजना को 2014 से शुरू करने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि, अब यह धुंधला नजर आ रहा है।

आधुनिकीकरण योजना के तहत आमने-सामने के युद्ध और घातक दस्तों के इस्तेमाल के लिए 43 हजार से अधिक कार्बाइन भी खरीदी जानी हैं। साथ ही अगले पांच साल में 60 हजार असाल्ट राइफलों को भी बदला जाना है। वैसे सुस्ती की मार झेल रही योजनाओं में राइफल खरीद अकेला नमूना नहीं है। निर्णय तंत्र की पेचीदगियों में सेना के तोपखाने को बोफोर्स के बाद नई तोपें मुहैया कराने की योजना भी धीमी रफ्तार से चल रही है। सरकार के स्तर पर अमेरिकी सेना से सीधे खरीदी जाने वाली एम-777 तोपों को लेकर फैसला भी हो चुका है। हालांकि, यह निर्णय भी बीते एक साल के दौरान खरीद सौदे की शक्ल नहीं ले पाया है।

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