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फर्ज निभाने के साथ-साथ गजल और शेरो-शायरी भी कर रहे प्रशासनिक अधिकारी

सबसे अच्छी बात तो यह है कि पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी न सिर्फ जी-जान से मानव सेवा में जुटे हैं बल्कि आंखों-देखी विषम परिस्थितियों पर गजल शायरी व कविताओं की भी रचना कर रहे हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 06:33 PM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 06:33 PM (IST)
फर्ज निभाने के साथ-साथ गजल और शेरो-शायरी भी कर रहे प्रशासनिक अधिकारी
फर्ज निभाने के साथ-साथ गजल और शेरो-शायरी भी कर रहे प्रशासनिक अधिकारी

नई दिल्ली [स्मिता]। कोरोना त्रासदी के समय युद्धस्तर पर कर्तव्य पालन में सबसे आगे हैं- मेडिकल स्टाफ व पुलिस-प्रशासन सेवा से जुड़े लोग। यही वजह है कि इन्हें कोरोना वॉरियर्स भी कहा जाता है। सबसे अच्छी बात तो यह है कि पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी न सिर्फ जी-जान से मानव सेवा में जुटे हैं, बल्कि आंखों-देखी विषम परिस्थितियों पर गजल, शायरी व कविताओं की भी रचना कर रहे हैं। इन्हें लिखने के लिए घर का सुकून नहीं, बल्कि दफ्तर की जिम्मेदारियों का बोझ चाहिए।

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कभी दफ्तर तो कभी सफर में आ जाए शायरी 

पहला शेर- शबो रोज़ पर मेरे छाया हुआ है, ये दफ्तर जो मुझमें समाया हुआ है। दूसरा शेर - दफ्तरों में न मिला एक इंसां, कहीं बाबू कहीं अफसर निकले। तीसरा शेर- एक बेवा के अश्कों से लिक्खी हुई, दफ्तरों दफ्तरों घूमती चिट्ठियां। 

ये सभी शेर शायर आलोक यादव के हैं, जो इन दिनों यूट्यूब चैनल और अन्य सोशल साइट्स पर खूब लोकप्रिय हैं। आलोक दिल्ली (मध्य) में क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त हैं। उनके पास ऑफिस की जिम्मेदारियों की कोई कमी नहीं है। फिर भी जब उन्हें वक्त मिलता है, ऑनलाइन शेर पढ़ते हैं, यूट्यूब पर अपने श्रोताओं को शायरी सुनाते हैं।

वे कहते हैं - शायरी जुनून का दूसरा नाम है और अगर जुनून हो, तो वक्त कभी आड़े नहीं आता । शायरी के लिए वक्त से ज्यादा एहसास की जरूरत होती है। जब कोई बात या घटना हमें बेचैन करती है तब कुछ अशआर होते हैं और गजल हो जाती है । इसके लिए जरूरी नहीं कि कागज-कलम लेकर बैठा जाए। शेर कभी दफ्तर या सफर में भी जन्म ले सकता है।

यहां तक कि मीटिंग में बैठे-बैठे भी आ सकता है। जब शायर और अफसर घुल-मिल आते हैं, तो मजामीन (मजमून का बहुवचन) भी कई बार अपने काम और दफ्तर से निकल आते हैं। आलोक यादव की तरह कई और प्रशासनिक अधिकारी हैं, जो कर्तव्यपालन के साथ-साथ शेरो-शायरी रच रहे हैं। 

शेरो-शायरी को प्रतिबिंबित करते हैं मानव जीवन महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमितों की संख्या सबसे ज्यादा है, इसलिए पुलिस को सबसे ज्यादा वहीं मुस्तैद रहना पड़ रहा है। महाराष्ट्र में पुलिस महानिरीक्षक कैसर खालिद की भी प्राथमिकता संकट काल में अधिक से अधिक लोगों की जान बचाना और उनकी मदद करना है। मुंबई में अप्रवासी कामगारों की तादाद लाखों में है।

ये ऐसे लोग हैं, जो रोज कुआं खोदते और पानी पीते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए कैसर खालिद और उनकी टीम लगभग 50-52 दिनों से स्वयं सेवी संस्थाओं और ट्रस्ट के साथ मिलकर प्रतिदिन खाने का इंतजाम कर रही थी। कामगारों की इस स्थिति ने कैसर को अंदर तक झकझाेर दिया। वे कहते हैं- मानवीय जीवन, रिश्ते ही शेरो-शायरी को प्रतिबिंबित करते हैं। कोरोना संक्रमन से पहले देश के लोगों के बीच बहुत ज्यादा टकराव था, लेकिन रातों-रात स्थिति बदल गई।

अब तो भोजन की थैली बांटते समय कोई भी जाति-धर्म के बारे में पूछताछ नहीं करता है। शायद जिंदगी की दौड़-भाग में कई चीजें छूट गईं या कट गईं। इंसान और इंसानियत को लेकर आपके जहन में कई सारे बातें आती हैं। ये बातें ही रचनाओं को जन्म देने लगती हैं।

मन उद्वेलित होने पर लिखने के लिए हो जाते हैं मजबूर संकट के समय सड़कों पर जो त्रासदी दिख रही थी या लोग परेशान होकर फिर रहे थे। इन परिस्थितियों को देखकर स्वत: ही मेरे कलम चलने लगे। कोरोना ने विकसित देशों को भी जिस तरह घुटने पर खड़े होने के लिए मजबूूर किया या प्रकृति के अपमान करने पर वह इंसानों के साथ क्या कर सकती है, इसका नमूना देखने पर आपका मन उद्वेलित होने लगता है और आप लिखने के लिए मजबूर हो जाते हैं। 

यह बात कहते हैं पंजाब केे आईपीएस अफसर फैयाज फारूकी। उनके लिए शेर या गजल लिखना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जब आंखों के सामने विषम परिस्थिति घटती है, तो अपने-आप विचार शब्दों का रूप ले लेते हैं। इसकेे लिए अलग से उन्हें समय निकालने की जरूरत नहीं पड़ती। कागज साथ में रहने पर फैयाज साहब उसे लिखने की कोशिश करते हैं, कागज साथ नहीं रहने पर विचारों की रिकाॅर्डिंग कर लेते हैं, ताकि ख्याल गायब न हो जाए।

शायरी के लिए अलग से समय की जरूरत नहीं 

छत्तीसगढ़ में कमिश्नर ऐंड एडिशनल डायरेक्टर (जनरल इंटेलिजेंस जी एस टी) अजय पांडेय सहाब बचपन से गजलें कहते आए हैं। उनकी गजलें इतनी लोकप्रिय हुई हैं कि कई लोकप्रिय गायकों जैसे कि जगजीत सिंह, पंकज उधास, अनूप जलोटा, तलत अजीज, चंदन दास, अनुराधा पोडवाल आदि ने उनकी गजलों को खूब गाया है। 

बचपन में ही अजय पांडेय सहाब ने उर्दू भाषा सीखी। आज उनकी गजलों के कई सारे एलबम भी आ चुके हैं। उदूz भाषा पर उनकी एक किताब- मैं उदू बोलूं तथा उम्मीद नाम से भी एक किताब है। अजय पांडेय सहाब कहते हैं- जैसे ही कोई घटना या परिस्थिति देखता हूं, तो मेरे दिमाग में विचार कौंध जाते हैं, जिन्हें मैं तत्काल शब्द दे देता हूं। शेरो शायरी रचने के लिए विशेष समय की जरूरत नहीं पड़ती है। आप कहीं बैठे हैं या कार से जा रहे हैं, तो उस वक्त भी रचा जा सकता है। यहां तक कि बातें करते हुए भी कुछ विचार दिमाग में आ सकते हैं।  


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