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बस्तर में खुशहाली ला रही 'कैंसररोधी' हल्दी, बढ़ रही ऑर्गेनिक खेती

छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में इन दिनों सैकड़ों आदिवासी महिलाएं आर्गेनिक हल्दी के उत्पादन में जुटी हुई हैं। अन्य क्षेत्रों की तुलना में ये हल्दी कुछ खास है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 26 May 2018 12:55 PM (IST)Updated: Sat, 26 May 2018 01:01 PM (IST)
बस्तर में खुशहाली ला रही 'कैंसररोधी' हल्दी, बढ़ रही ऑर्गेनिक खेती
बस्तर में खुशहाली ला रही 'कैंसररोधी' हल्दी, बढ़ रही ऑर्गेनिक खेती

जगदलपुर [दीपक पांडेय]। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में इन दिनों सैकड़ों आदिवासी महिलाएं आर्गेनिक हल्दी के उत्पादन में जुटी हुई हैं। अन्य क्षेत्रों की तुलना में यहां उत्पादित हल्दी कुछ खास है। इसमें कैंसर रोधी तत्व करकुमिन सामान्य हल्दी के मुकाबले अधिक मात्रा में पाया जाता है। अन्य राज्यों की हल्दी में जहां इस तत्व की मौजूदगी 0.32 फीसद तक होती है, वहीं बस्तर की हल्दी में इसकी मात्रा 0.73 फीसद है। इस खूबी के चलते बस्तर की ऑर्गेनिक खेती को बड़ा बाजार मुहैया हो चला है।

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सरकारी पहल पर जिले के आठ गांवों के करीब 300 परिवारों की 900 महिलाएं हल्दी की खेती कर रही हैं। प्रोसेसिंग व पैकेजिंग के लिए प्रोसेसिंग प्लांट भी तैयार हो रहा है। ऑनलाइन मार्केटिंग की भी तैयारी है। हल्दी की खेती से जुड़े परिवारों का जीवनस्तर अब सुधर रहा है। उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ. केपी सिंह बताते हैं कि बस्तर की भूमि हल्दी की खेती के लिए बेहद उपयुक्त है। यहां की हल्दी में करकुमिन तत्व देश के अन्य स्थानों पर पाई जाने वाली हल्दी की अपेक्षा सर्वाधिक है।

करकुमिन एंटी बैक्टीरियल तत्व है, गंध से इसकी पहचान होती है। बस्तर में उत्पादित हल्दी के वैज्ञानिक परीक्षणों में कैंसर रोधी करकुमिन 0.73 फीसद पाया गया है जबकि देश के अन्य राज्यों में इसका औसत 0.32 फीसद है। इसके साथ ही बस्तर की एक किलो कच्ची हल्दी प्रोसेसिंग के बाद 350-400 ग्राम तक पाउडर देती है जबकि देश के अन्य प्रांतों की हल्दी में यह मात्रा अधिकतम 250 ग्राम तक ही है।

बस्तर में ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक मजबूती प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत शासकीय उद्यानिकी महाविद्यालय, जगदलपुर ने वर्ष 2016 में इस प्रोजेक्ट को हाथ में लिया। इसके लिए बस्तर जिले की पीरमेटा और लालागुड़ा पंचायत के छह गांवों और बस्तर ब्लॉक के बड़ेचकवा व दरभा ब्लॉक के सेड़वा गांव को चुना गया।

इन गांवों के 300 परिवारों की 900 महिलाओं को 20-20 के समूह में बांटकर करीब 300 एकड़ में हल्दी की खेती प्रारंभ की गई है। इस खेती की खास बात यह है कि खेत में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न कर इसे पूरी तरह से जैविक रूप दिया गया है। हल्दी की फसल नौ महीने की होती है। जून में इसके कंद को खेतों में लगाया जाता है, जो फरवरी में तैयार हो जाता है।

बस्तर में रोमा प्रजाति की हल्दी का परीक्षण किया गया है, जिससे प्रति एकड़ 25 से 30 क्विंटल तक का औसत उत्पादन होता है। इसकी बाजार में अनुमानित कीमत 80 हजार रुपये तक होती है। हल्दी की खेती, प्रोसेसिंग व मार्केटिंग में पूरी तरह से समूह की महिलाओं को ही जोड़ा गया है। उद्यानिकी महाविद्यालय जगदलपुर में 45 लाख रुपये की लागत से प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना का काम चल रहा है।

आर्गेनिक हल्दी की खेती से जुड़े प्रारंभिक प्रायोगिक परीक्षणों के नतीजे बेहद उत्साहवर्धक हैं। इसका वृहद उत्पादन आदिवासी बहुल क्षेत्रों के परिवारों की आर्थिक तरक्की व उन्नति का सशक्त आधार बनेगा। प्रोसेसिंग के साथ ही अब ऑनलाइन मार्केटिंग की तैयारी भी चल रही है।

-डॉ. डीएस ठाकुर, डीन, शासकीय उद्यानिकी

महाविद्यालय, जगदलपुर 


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