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दिल्ली में बना एक और ‘शाहीन बाग’, बीते 30 दिनों में किसानों के मंच पर आ चुके हैं कई विवादित लोग

दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन के कारण 35 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। रोजाना 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान केवल कुंडली और नाथूपुर औद्योगिक क्षेत्र को ही हो रहा है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sun, 27 Dec 2020 10:19 AM (IST)Updated: Sun, 27 Dec 2020 10:19 AM (IST)
दिल्ली में बना एक और ‘शाहीन बाग’, बीते 30 दिनों में किसानों के मंच पर आ चुके हैं कई विवादित लोग
दिल्ली की घेरेबंदी धीरे-धीरे ‘शाहीन बाग’ जैसे हालात उत्पन्न करती जा रही है।

नई दिल्ली, जेएनएन। कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के दिल्ली घेराव को 30 दिन बीत चुके हैं। किसानों के एक वर्ग की यह घेरेबंदी धीरे-धीरे ‘शाहीन बाग’ जैसे हालात उत्पन्न करती जा रही है। सरकार की ओर से बार-बार बातचीत के बुलावे को ठुकराकर किसान नेता संसद में पारित कानूनों को रद कराने की मांग पर अड़े हैं। इसलिए, लोग अब इस घेरेबंदी को गत वर्ष के शाहीन बाग के कथित आंदोलन से जोड़कर देखने लगे हैं जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के नाम पर दो माह से ज्यादा समय तक दिल्ली को बंधक बना लिया गया था। किसान संगठनों ने कुंडली-सिंघु बार्डर के अलावा टिकरी बार्डर, यूपी गेट व चिल्ला बार्डर को भी जाम कर रखा है।

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किसानों के मंच पर आ चुके हैं विवादित लोग

तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब की विभिन्न किसान यूनियनों ने दिल्ली चलो का नारा दिया था। इसके तहत किसानों का जत्था 27 नवंबर की सुबह कुंडली बार्डर पर पहुंचा और पुलिस से संघर्ष के बाद जीटी रोड को जाम कर वहीं बैठ गया। शुरुआत में यहां केवल पंजाब के किसानों का जमावड़ा था, लेकिन बाद में हरियाणा, दिल्ली और आसपास के कुछ किसान नेता व संगठन भी इसमें शामिल हो गए। शाहीन बाग प्रदर्शन के कर्ता-धर्ता भी इसमें शिरकत करने पहुंच गए। विभिन्न वामपंथी संगठनों के सदस्य, छात्र संगठनों का भी यहां जमावड़ा लगना शुरू हो गया और यह कथित आंदोलन पूरी तरह से सरकार विरोधी हो गया। हालांकि बाद में किसान नेताओं ने किसी भी राजनीतिक दल के साथ मंच साझा करने से इन्कार कर दिया, लेकिन मौके पर रोजाना बाहरी लोगों का जमावड़ा कुछ और ही कहानी कहता है। कुछ दिन पूर्व टिकरी बार्डर पर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने वाले शाहीन बाग के आरोपितों के पक्ष में पोस्टर-बैनर ल

कसान, आमजन, व्यापरी सब परेशान

एक महीने से चल रही इस घेरेबंदी से सब परेशान हैं। क्षेत्र की औद्योगिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो चुकी है। कुंडली और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले श्रमिक परेशानियों के चलते पलायन को मजबूर हैं। एसोचैम के अनुसार, आंदोलन के कारण 35 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। रोजाना 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान केवल कुंडली और नाथूपुर औद्योगिक क्षेत्र को ही हो रहा है। इससे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और देश के दूसरे शहरों से आने-जाने वाले लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। व्यापार प्रभावित हो रहा है। छोटे व्यापारियों और कामगारों के समक्ष रोजी-रोटी के लाले पड़ने लगे हैं।

खड़े हुए बुनियादी सवाल

इस कथित आंदोलन ने लोकतंत्र के समक्ष कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या संसद से पारित कानूनों का इस तरह सड़कों पर विरोध किया जा सकता है। कानून बनाने का काम संसद अथवा सरकार को करना है या फिर यह किस्म-किस्म के संगठनों की इच्छा पर किया जाएगा।

बातचीत की पहल तो हुई पर बात बन नहीं पाई...

27 नवंबर: प्रदर्शनकारी किसान कुंडली बार्डर पर पहुंचे और दिल्ली में प्रवेश का प्रयास किया। पुलिस से झड़प हुई। आंसू गैस के गोले दागे गए। प्रदर्शनकारी पीछे हटकर कुंडली सीमा पर जीटी रोड को जाम कर बैठ गए।

28 नवंबर: कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को दिल्ली में प्रवेश की अनुमति मिल गई। किसानों को बुराड़ी के संत निरंकारी समागम स्थल में आने को कहा गया, लेकिन उन्होंने प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

29 नवंबर: केंद्र सरकार ने किसानों से एक बार फिर बुराड़ी स्थित मैदान में जाने की अपील की। गृहमंत्री अमित शाह ने भी तय स्थान पर पहुंचने के बाद किसानों से बातचीत का भरोसा दिया। हालांकि, किसानों ने इन्कार कर दिया।

1 दिसंबर: कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर के साथ किसान नेताओं की बातचीत हुई, लेकिन नतीजा नहीं निकला। किसानों ने आंदोलन जारी रखने का निर्णय लिया।

2 दिसंबर: किसानों ने नए कृषि कानूनों को रद करने के लिए सरकार से संसद का विशेष सत्र बुलाने की अपील की और चेतावनी दी कि मांगें नहीं मानी गईं तो दिल्ली की अन्य सड़कों को जाम कर दिया जाएगा।

3 दिसंबर: सरकार और किसान संगठनों की चौथे दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका। पांच दिसंबर को अगली बैठक का निर्णय लिया गया।

5 दिसंबर: किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का एलान किया। केंद्र सरकार के साथ एक बार फिर वार्ता हुई, जिसमें किसान नेताओं ने पिछली बैठक के मसलों पर बिंदुवार लिखित में जवाब मांगा।

9 दिसंबर: किसान नेताओं ने सरकार के भेजे प्रस्ताव को खारिज कर दिया। छठे दौर की वार्ता भी स्थगित हो गई। किसान नेताओं ने भाजपा के सभी मंत्रियों के घेराव का निर्णय लिया।

12 दिसंबर: नेताओं ने आंदोलन को तेज करते हुए 14 दिसंबर को भूख हड़ताल का एलान किया।

17 दिसंबर: सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन पर सुनवाई। अदालत ने इस मामले में कोई आदेश जारी नहीं किया।

21दिसंबर: आंदोलन में शामिल सभी किसान जत्थों के 11-11 नेताओं ने क्रमिक भूख हड़ताल शुरू की।

24 दिसंबर: कृषि कानूनों को लेकर कृषि सचिव ने बातचीतके लिए भेजा प्रस्ताव।


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