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पर्यावरण संरक्षण की तरफ एक पहल: अब और ज्यादा साफ होगा बायोडीजल

उपलब्धि- भारतीय वैज्ञानिकों ने ईजाद की बायोडीजल उत्पादन की नई तकनीक...इस ईंधन को बनाने में निकलने वाले व्यर्थ पदार्थ को बदला जा सकेगा हाइड्रोजन में...

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 16 Nov 2017 11:08 AM (IST)Updated: Thu, 16 Nov 2017 11:08 AM (IST)
पर्यावरण संरक्षण की तरफ एक पहल: अब और ज्यादा साफ होगा बायोडीजल
पर्यावरण संरक्षण की तरफ एक पहल: अब और ज्यादा साफ होगा बायोडीजल

नई दिल्ली (आइएसडब्ल्यू)। कृषि, घरों और उद्योगों से निकलने वाले कचरे को बायोडीजल में परिवर्तित करना संभव है। चूंकि व्यर्थ पदार्थों के सही इस्तेमाल का यह एक अच्छा तरीका है, इसलिए इसे ऊर्जा का साफ स्रोत माना जाता है। हालांकि इस प्रक्रिया में एक परेशानी है। बायोडीजल बनाने की इस प्रक्रिया में कच्चे ग्लिसरॉल के रूप में व्यर्थ पदार्थ उत्पन्न होता है। अब भारतीय वैज्ञानिकों ने न केवल इससे निजात पाने का तरीका खोज निकाला है, बल्कि इस तरीके से उसे ऊर्जा में भी बदला जा सकता है।

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वैज्ञानिकों के दल ने एक ऐसा तरीका ईजाद किया है, जिसके जरिए बायोडीजल बनाने की प्रक्रिया में कचरे के रूप में निकलने वाले कच्चे ग्लिसरॉल को हाइड्रोजन में बदला जा सकेगा जो कि एक ग्रीन फ्यूल है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, साफ ईंधन माने जाने वाले बायोडीजल को इस प्रक्रिया द्वारा बनाने पर वह और साफ हो जाएगा। बायोडीजल की विनिर्माण प्रक्रिया में काफी इजाफा हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप कच्चे ग्लिसरॉल का उत्पादन भी बढ़ा है। इस व्यर्थ पदार्थ का निस्तारण महंगी प्रक्रिया है। इसलिए उद्योगों को इससे निजात पाने के लिए सस्ते तरीकों की आवश्यकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए नई दिल्ली स्थित द इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी (आइजीआइबी) के वैज्ञानिकों ने ग्लिसरॉल को हाइड्रोजन गैस में बदलने का एक किफायती तरीका ईजाद किया। चूंकि हाइड्रोजन शून्य उत्सर्जन और उच्च ऊर्जा वाला ईंधन है, इसलिए यह बहुउपयोगी है।

हर वर्ष उत्पन्न होता है 14 लाख टन ग्लिसरॉल : एप्लाइड बायोकेमिस्ट्री एंड बायोटेक्नोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, हर साल वैश्विक स्तर पर एक करोड़ 40 लाख टन बायोडीजल उत्पन्न किया जाता है। इसके चलते 14 लाख टन कच्चा ग्लिसरॉल भी पैदा हो जाता है। इस तकनीक का ईजाद करने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक, हम हर साल इतनी भारी मात्रा में निकलने वाले व्यर्थ पदार्थ के निस्तारण का तरीका तलाशना चाहते थे। इसी के परिणाम स्वरूप हमने इस पर काम किया।

इस तरह निकाला समाधान
शोधकर्ताओं के मुताबिक, उन्होंने बलिसस एमिलोलिक्फाइंस सीडी16 नामक जीवाणु से कच्चे ग्लिसरॉल को ट्रीट किया और एक दिन में एक लीटर कच्चे ग्लिसरॉल से 3.2 लीटर हाइड्रोजन गैस ईंधन बनाने में सफल हुए। हाइड्रोजन गैस की इतनी मात्रा को जलाने से करीब 37 किलोवॉट घंटे ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे आठ घंटे तक चार छत वाले पंखों को चलाया जा सकता है।

इन्होंने की खोज
ज्योत्सना प्रकाश, राहुल कुमार गुप्ता, प्रियंका और विपिन चंद्र कालिया के दल द्वारा की गई यह खोज न केवल भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर इस अपशिष्ट के निपटान में कारगर साबित हो सकती है।

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