अर्थव्यवस्था की सुस्ती के बीच आम बजट 2020-21 में कई दूरदर्शी कदम उठाए जाने का प्रस्ताव
देश की वित्तीय बुनियाद को मजबूत रखने के लिए इसके महत्वाकांक्षी प्रावधानों से अधिकांश अर्थवेत्ता और रेटिंग एजेंसियां प्रभावित हुईं।
नई दिल्ली। सरकार ने संसद में जो बजट पेश किया उसको लेकर आर्थिक विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। कोई इसे दूरदर्शी बजट बता रहा है तो कोई इस बजट से सहमत नहीं है। सभी की अलग-अलग राय है। कोई अर्थशास्त्री कह रहा है कि सरकार उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कोई करगर कदम नहीं उठा रही है जिसके कारण हालात ऐसे हो रहे हैं। जीडीपी गिरती जा रही है। पहले नोटबंदी फिर जीएसटी जैसे मुद्दों ने अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया है उसके परिणाम दूरगामी दिखेंगे मगर उसमें समय लगेगा।
आसान नहीं लक्ष्य सधना
अर्थव्यवस्था की सुस्ती के बीच पेश किए गए आम बजट 2020-21 में कई दूरदर्शी कदम उठाए जाने का प्रस्ताव है। देश की वित्तीय बुनियाद को मजबूत रखने के लिए इसके महत्वाकांक्षी प्रावधानों से अधिकांश अर्थवेत्ता और रेटिंग एजेंसियां प्रभावित हुईं। हालांकि आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक वर्तमान समस्या के समाधान के लिए इन प्रस्तावों को समयबद्ध और कारगर तरीके से लागू कराना सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
सकल टैक्स राजस्व
वित्त वर्ष 2020-21 के लिए सकल टैक्स राजस्व वृद्धि का लक्ष्य 12 फीसद रखा गया है। जबकि बजट में नामिनल जीडीपी वृद्धि दर का लक्ष्य 10 फीसद रखा गया है। जीएसटी संग्रहण में 12.76 फीसद वृद्धि के साथ 6.90 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य है। गोल्डमैन सैक्स का मानना है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रति माह के औसत संग्रहण में 15 फीसद इजाफे की दरकार होगी।
आयकर संग्रह में भी जीडीपी के 2.8 फीसद के हिसाब से वृद्धि का अनुमान है। समग्र रूप से अगर नामिनल जीडीपी 10 फीसद सालाना की दर वृद्धि करे और टैक्स राजस्व में 12 फीसद का इजाफा हो तो टैक्स बायोंसी 1.2 हासिल करना बहुत महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। खासकर उस हालात में जब वित्त वर्ष 2019-20 में ये 0.5 रहा हो।
हिमालयी विनिवेश लक्ष्य
बजट में वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 2.1 लाख करोड़ रुपये विनिवेश से जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। वित्तीय घाटे का लक्ष्य संशोधित किया गया है। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए यह जीडीपी का 3.8 फीसद रहा जबकि बजट अनुमान में इसे 3.3 फीसद रखा गया था। अब वित्त वर्ष 2020-21 के लिए इसे जीडीपी का 3.5 फीसद कर दिया गया है।
ये आत्मविश्वास बताता है कि सरकार अपने विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने के प्रति संकल्पित है। अगर विनिवेश लक्ष्य हासिल हो जाता है तो यह ऐतिहासिक होगा। हालांकि क्रेडिट सुईस की रिपोर्ट सरकार की इस मंशा पर सवाल खड़े करती दिखती है। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए विनिवेश लक्ष्य 1.05 लाख करोड़ रुपये रखा गया था। जो लक्ष्य से बहुत पीछे रहा है।
लघु बचतों से रकम
वित्त वर्ष 2020-21 और 2019-20 (संशोधित) में प्रत्येक से लघु बचतों से 2.4 लाख करोड़ रुपये जुटाने की बात कही गई है। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए इस मद में शुरुआती अनुमान 1.3 लाख करोड़ रुपये था। विशेषज्ञ इस पर भी हैरत जता रहे हैं कि क्या वित्तीय घाटे का 30 फीसद हिस्सा इससे पूरा करना संभव होगा।
अप्रत्यक्ष दबाव
बजट 2020-21 को सही तरीके से लागू कराने की चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि पूर्व में सरकार की आर्थिक घोषणाओं के लक्ष्य को भी हासिल करना है। रिकार्ड स्तर पर रोजगार सृजन, 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना, 2024 तक पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था तैयार करना। इन मोर्चों पर भी वित्तमंत्री को रात-दिन एक करने की जरूरत होगी।