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Chandrayaan-2: अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बताया... क्‍यों पूरी दुनिया के लिए खास है यह मिशन

आखिर ऐसा क्‍या होने वाला है कि नासा समेत पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों की नजर भारत के मिशन चंद्रयान-2 पर है। आइये जानते हैं पूरी दुनिया के लिए क्‍यों बेहद खास है यह मिशन...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 06 Sep 2019 01:24 PM (IST)Updated: Fri, 06 Sep 2019 04:29 PM (IST)
Chandrayaan-2: अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बताया... क्‍यों पूरी दुनिया के लिए खास है यह मिशन
Chandrayaan-2: अमेरिकी वैज्ञानिकों ने बताया... क्‍यों पूरी दुनिया के लिए खास है यह मिशन

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भारतीय अंतरिक्ष अनुंसधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) इतिहास रचने के बेहद करीब है। पूरी दुनिया को सात सितंबर को तड़के 1.55 बजे के उस पल का इंतजार है जब निर्धारित कार्यक्रम के तहत लैंडर 'विक्रम' चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। सबसे बड़ी बात है कि भारत चांद के उस दक्षिणी ध्रुव के इलाके में कदम रखने वाला है, जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है। यह मिशन बेहद जटिलता और मुश्किलों से भरा माना जा रहा है। यही वजह है कि नासा समेत पूरी दुनिया के वैज्ञानिक, टकटकी लगाए उस खास पल का इंतजार कर रहे हैं। आइये जानते हैं पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए भारत का यह मिशन क्‍यों बेहद खास हो गया है।

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रोवर प्रज्ञान के डाटा पर टिकी दुनिया की नजरें
जॉन्‍स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी (Johns Hopkins University) की एप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी की ग्रह विज्ञानी, ब्रेट डेनेवी (Brett Denevi) ने साइंस जर्नल नेचर को बताया कि यह मिशन मानवीय सभ्‍यता के लिए ऐतिहासिक है। इसे लेकर मैं बेहद उत्‍साहित हूं। चंद्रयान -2 की लैंडिंग पूरी तरह से नए इलाके में होगी। मैं चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर प्रज्ञान के इमेजिंग इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर द्वारा भेजी जाने वाले आंकड़ों को लेकर बेहत उत्‍सुक हूं। यह इफ्रारेड स्‍पेक्‍ट्रो‍मीटर से चांद की सतह के वाइड एंगल वेभलेंथ वाले इमेज डाटा भेजेगा। इस जानकारी की मदद से चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी के साथ साथ उसकी मात्रा का भी आकलन किया जाएगा।

चांद पर इंसान के बसने का खुलेगा रास्‍ता
नासा (NASA) के ग्रह विज्ञानी डेव विलियम (Dave Williams) ने अमेरिकी पत्रिका वॉयर को बताया कि मिशन चंद्रयान-2 से हमें अब तक के बेहद जटिल सवालों का जवाब मिलेगा। हमने अब तक चंद्रमा की कक्षाओं से बड़े पैमाने पर चांद के सर्वेक्षणों को अंजाम दिया है। फ‍िर भी वास्‍तम में वहां है क्‍या... नहीं जान पाए हैं। चंद्रयान-2 भारत के लिए राष्‍ट्रीय गौरव की बात है। नासा के अंतरिक्षयात्री जेरी लिनेंजर ने कहा कि भारत का यह चंद्र अभियान केवल उसकी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षमता ही नहीं बढ़ाएगा, बल्कि इससे चांद पर मानवों के बसने का रास्ता भी खुलेगा। अगर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी हुआ तो इंसान के स्‍पेस अभियानों के लिए वह क्षेत्र काफी उपयुक्त हो सकता है।

मंगल पर लैंडिंग होगी आसान
न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चंद्रयान-2 की दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग बेहद महत्‍वपूर्ण है। इससे दुनिया को यह पता चलेगा कि क्‍या वहां वॉटर आइस के रूप में पानी मौजूद है या नहीं... यदि वहां पर्याप्‍त मात्रा में पानी मौजूद हुआ तो यह मिशन मंगल के लिए वरदान साबित होगा। इस खोज से चंद्रमा पर ठिकाना बनाने में मदद मिलेगी। इससे वहां से मंगल ग्रह की यात्रा के लिए इंधन भरने का अड्डा उपलब्‍ध होगा। टक्सन (Tucson) में एरिजोना विश्‍वविद्यालय (University of Arizona) के चंद्रमा एवं ग्रहों की प्रयोगशाला के निदेशक टिमोथी स्विंडले (Timothy Swindle) ने एनबीसी न्‍यूज को बताया कि हम सभी जानते हैं कि चंद्रमा पर पानी है लेकिन यह कितनी मात्रा में है और हम इसका इस्‍तेमाल कैसे कर सकते हैं, यह महत्‍वपूर्ण है। इस अभियान से इंसान को और बेहतर जानकारियां मिल सकती हैं। 

क्‍यों है हीलियम-3 के भंडार की तलाश 
वैज्ञानिक भी हीलियम -3 के भंडार की तलाश करना चाहते हैं, जिसे धरती वासियों के लिए भविष्य की ऊर्जा का स्रोत माना जा रहा है। न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स लिखता है कि भारत अपनी अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा को हासिल करने के बेहद करीब है। न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स ने कहा है कि चंद्रयान-2 अन्‍य अंतरिक्ष अभियानों की तुलना में बेहद सस्‍ता है। इस पर आने वाला खर्च साल 2014 में बनी फ‍िल्‍म इंटरस्टेलर (Interstellar) की लागत एक अरब 50 लाख डॉलर से भी सस्‍ता पड़ा है।  

पूरी मानवता को होगा फायदा 
चंद्रयान-2 चंद्रमा पर प्रयोगों को अंजाम देने के लिए लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान का इस्‍तेमाल करेगा। लैंडर विक्रम चंद्रमा के दो गड्ढों- मंजि‍नस सी और सिमपेलियस एन के बीच वाले मैदान में लगभग 70° दक्षिणी अक्षांश पर लैंडिंग करेगा। इस अभियान का मकसद, चंद्रमा के प्रति ऐसी जानकारियां जुटाना है जिनसे पूरी मानवता को भविष्‍य में फायदा होगा। इन परीक्षणों के आधार पर भावी चंद्र अभियानों में जरूरी बदलाव किए जाएंगे ताकि आने वाले दौर में अपनाई जाने वाली नई टेक्‍नॉलोजी तय करने में मदद मिले। इसरो के वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी होने के सबूत तो चंद्रयान-1 ने काफी पहले ही खोज लिए थे। मौजूदा अभियान से यह पता लगाया जा सकेगा कि चांद की सतह और उपसतह के कितने भाग में पानी है। 

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