दुनिया की नजरों से ओझल है हांदावाड़ा जलप्रपात का अद्भुत सौंदर्य, 'बाहुबली' फिल्म की होनी थी शूटिंग
पहाड़ी पगडंडियों और चट्टानों पर चलते हुए अचानक जलप्रपात की गर्जना सुनाई देने लगती है जो करीब चार किलोमीटर दूर से सुनी जा सकती है।
जगदलपुर, राज्य ब्यूरो। बस्तर के अबूझमाड़ के घने जंगलों में चहुंओर फैली खूबसरत प्रकृति का गहना है हांदावाड़ा जलप्रपात। इस पर बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म 'बाहुबली' की शूटिंग होनी थी, पर इलाका धुर नक्सल प्रभावित होने के कारण इसकी अनुमति नहीं मिल पाई। यहां तक पहुंच पाना आसान नहीं है। दंतेवाड़ा जिले के बारसूर से पांच किमी दूर इंद्रावती नदी का कोड़ेनार घाट है। नदी पार करते ही अबूझमाड़ का इलाका शुरू होता है।
करीब तीन सौ फीट की ऊंचाई से गिरता है यह प्रपात
दैनिक जागरण के सहयोगी अखबार 'नईदुनिया' की टीम ने बेहद दुर्गम जंगलों में कई किलोमीटर का पैदल सफर तय कर हांदावाड़ा के अद्भुत सौंदर्य तक पहुंचकर अपने पाठकों के सामने लाने की कोशिश की है। बस्तर की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी इन दिनों उफान पर है। मोटरबोट के सहारे नदी पार करने में भी काफी वक्त लगता है। नदी उस पार चेरपाल गांव आता है। यह दंतेवाड़ा जिले का अंतिम गांव है। इसके बाद शुरू होता है अबूझमाड़ के जंगलों का रोमांचक सफर।
फिसलन भरी पगडंडियों पर चलना आसान नहीं
घने जंगलों में फिसलन भरी पगडंडियों पर चलना आसान नहीं है। कुछ दूर बाद पगडंडी ऐसे मुकाम पर पहुंचती है, जहां कीचड़ है। इसे पार करना बड़ी चुनौती है। इससे बड़ी चुनौती है माडरी नाला को पार करना। नाले में इन दिनों गले तक पानी है। इस जगह आदिवासियों ने बांस की खपच्चियों को तार से बांधकर पैदल चलने वाला झूला पुल बनाया है। वहां से आगे का करीब 15 किलोमीटर सफर पैदल तय करना पड़ता है। रास्ते में बेड़मा और अन्य छोटे गांव आते हैं। यात्रा के पहले दिन का पड़ाव है हांदावाड़ा गांव। गांव से जलप्रपात की दूरी करीब पांच किलोमीटर है।
चार किमी दूर तक सुनाई देती है गर्जना
पहाड़ी पगडंडियों और चट्टानों पर चलते हुए अचानक जलप्रपात की गर्जना सुनाई देने लगती है, जो करीब चार किलोमीटर दूर से सुनी जा सकती है। करीब तीन सौ फीट ऊंचाई से गिरता हांदावाड़ा जलप्रपात बस्तर के सबसे ऊंचे जलप्रपातों में से एक है। यह इतना खूबसूरत है कि इसे देखते ही यात्रा की पूरी थकान दूर हो जाती है। तस्वीर में इसकी खूबसूरती को पूरी तरह कैद करना मुश्किल होता है। झरने के निकट पहुंचने का अहसास अलग और खास है। दिक्कत यही है कि इलाके में नक्सलियों की सत्ता है और उनकी अनुमति के बिना नदी उस पार जाना कठिन है।