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बस्‍तर की घाटी में खिले हैं 'फ्लू वायरस' की संरचना वाले फूल, औषधीय गुणों से है भरपूर

कहते हैं कि रूप से अधिक महत्‍ता गुण को देनी चाहिए... बस्‍तर घाटी में खिले अल्‍ली फूल दिखते तो हैं वायरस की तरह लेकिन करते हैं औषधि का काम।

By Monika MinalEdited By: Published: Mon, 20 Apr 2020 03:08 PM (IST)Updated: Mon, 20 Apr 2020 03:46 PM (IST)
बस्‍तर की घाटी में खिले हैं 'फ्लू  वायरस'  की संरचना वाले फूल, औषधीय गुणों से है भरपूर
बस्‍तर की घाटी में खिले हैं 'फ्लू वायरस' की संरचना वाले फूल, औषधीय गुणों से है भरपूर

जगदलपुर [अनिल मिश्र]।  इन दिनों बस्‍तर की घाटी में विशेष प्रकार के फूल खिले हैं जो दिखने में किसी 'वायरस' की तरह हैं।  ताज्‍जुब की बात है कि सामान्‍य फ्लूू  या कोविड-19 जैसी बीमारी के जड़ में वायरस की तरह दिखने वाले इस फूल की पत्‍तियों में औषधीय गुण भी मौजूद हैं।

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बता दें कि पूरी दुनिया में नॉवेल कोरोना वायरस ने एक लाख से अधिक लोगों की जान ले ली है इसलिए लोग अब वायरस की संरचना से मिलती किसी भी तस्‍वीर या आकृति से घबराने लगे हैंं। लेकिन बस्‍तर संभाग के चित्रकोट के समीप मटनार घाटी में खिले अल्ली फूल कोई वायरस नहीं हैं। हूबहू वायरस की तरह बनावट वाले इन फूलों से अभी बस्तर की पथरीली घाटियों में खूबसूरती छाई है। घाटी में खिले अल्ली फूल में औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। इसका उपयोग रंग बनाने में भी किया जाता है।

पहली बार पुणे में ली गई वायरस की तस्‍वीर

उल्‍लेखनीय है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआइवी) के वैज्ञानिकों ने मार्च के अंत में पहली बार नए कोरोना वायरस की तस्वीरें उजागर की। यह तस्‍वीर इमेज ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (टेम) इमेजिंग का इस्तेमाल करके ली गई। इन तस्‍वीरों को इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित किया गया है।

सिर्फ बस्तर में है ऑली या अल्ली फूल

वनस्पतिशास्त्री डॉ एमएल नायक ने बताया कि ऑली फूल को छत्तीसगढ़ में सिर्फ बस्तर की पथरीली घाटियों में ही देखा गया है। स्थानीय ग्रामीण अल्ली के नाम से इसे पहचानते हैं। यह मेलास्टोमेस परिवार का सदस्य है और इसका वैज्ञानिक नाम मेमेकोलीन एड्यूल है। भारत में यह ऑली, आयरन वुड तो श्रीलंका में कोराकह (नीली धुंध) के नाम से चर्चित है। इसमें पीली डाई व ग्लूकोसाइड होता है। श्रीलंका के तटीय क्षेत्रों में ऑली फूलों का उपयोग रंग बनाने में होता है। बौद्ध भिक्षु आमतौर पर इसका उपयोग कपड़ा रंगने में वर्षों से करते रहे हैं। ईख की चटाई को रंगने में भी इन फूलों के रंगों का प्रयोग किया जाता है।

पत्तों में औषधीय गुण

आयुर्वेद चिकित्सक निखिल देवांगन बताते हैं कि ऑली की पत्तियों का रस एंटी डायरियल होता है। इसलिए बस्तर के ग्रामीण दस्त की समस्या होने पर इसकी पत्तियों का रस पीते हैं। हाजमा की समस्या से परेशान लोग भी इस फूल की पत्तियों के रस का उपयोग करते हैं। ऑली की शाखाओं का दातून भी ग्रामीण करते हैं।


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