90 दिन तक मूलधन या ब्याज का भुगतान न होने पर लोन बन जाता है NPA
अगर किसी लोन खाते में मूलधन या ब्याज की किश्त का भुगतान निर्धारित तिथि से 1 से 30 दिन तक नहीं होता है उसे एसएमए-0 कहा जाता है।
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। व्यवसायिक बैंक कारोबार करते वक्त विभिन्न परिसंपत्तियों में निवेश करते हैं और व्यक्तियों व कंपनियों को धनराशि उधार देता है। अमूमन, उधार दी गयी राशि में से कुछ धनराशि एनपीए (नॉन परफॉर्मिग असेट्स) बन जाती है। सरल शब्दों में कहें तो यह बैंक का फंसा कर्ज होता है, जिसका समय पर भुगतान नहीं हो रहा है। रिजर्व बैंक के अनुसार सितंबर 2017 की समाप्ति पर देश में व्यवसायिक बैंकों (एससीबी) की सकल एनपीए उनके द्वारा उधार दी गयी कुल राशि का 10.2 प्रतिशत हो गयी है। आइए समझते हैं कि एनपीए क्या होता है और बैंक इसकी पहचान कैसे करते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार बैंकों को अगर किसी परिसंपत्ति से आय अर्जित होना बंद हो जाता है तो उसे एनपीए माना जाता है। उदाहरण के लिए बैंक ने जो धनराशि उधार दी है, उसके मूलधन या ब्याज की किश्त अगर 90 दिन तक वापस नहीं मिलती तो बैंकों को उस लोन को एनपीए में डालना होगा।
कोई लोन खाता निकट भविष्य में एनपीए बन सकता है, इसकी पहचान के लिए भी आरबीआइ ने नियम बनाए हैं। इसके तहत व्यवसायिक बैंकों को उनके लोन खातों को स्पेशल मेंशन अकाउंट (एसएमए) के तौर पर चिन्हित करना होता है। उदाहरण के लिए अगर किसी लोन खाते में मूलधन या ब्याज की किश्त का भुगतान निर्धारित तिथि से 1 से 30 दिन तक नहीं होता है उसे एसएमए-0 कहा जाता है। अगर मूलधन या ब्याज का भुगतान 31 से 60 दिन तक न हो तो इसे एसएम-1 कहा जाता है। इसी तरह अगर मूल धन या ब्याज का भुगतान 61 से 90 दिन तक न हो तो उसे एसएमए-टू कहा जाता है।
किसी लोन खाते को एनपीए घोषित करने के बाद बैंक को उस एनपीए खाते का तीन श्रेणियों - 'सबस्टैंडर्ड असेट्स', 'डाउटफुल असेट्स' और 'लॉस असेट्स' के रूप में वर्गीकृत करना पड़ता है। मसलन, जब कोई लोन खाता एक साल या इससे कम अवधि तक एनपीए की श्रेणी में रहता है उसे 'सबस्टैंडर्ड असेट्स' कहा जाता है। इसी तरह जब कोई लोन खाता एक साल तक 'सबस्टैंडर्ड असेट्स' की श्रेणी में रहता है तो उसे 'डाउटफुल असेट्स' कहा जाता है। बैंक जब यह मान लेता है कि कोई लोन अब वसूल नहीं किया जा सकता तो उसे 'लॉस असेट्स' की श्रेणी में डाल देती है।
रिजर्व बैंक ने एनपीए के संबंध में ये नियम नरसिंहम समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाए हैं। इस समिति ने अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली का अध्ययन करने के बाद इस तरह के प्रूडेंशियल नियम बनाने की सिफारिश की थी।