इरफान खान को है खतरनाक न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर, ये हैं इस बीमारी के लक्षण और इलाज
इरफान खान को न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर नाम की बीमारी है। चलिए जानते हैं क्या है यह बीमारी और कितनी घातक है...?
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। इरफान खान ने जब पिछले दिनों एक ट्वीट किया तो बॉलीवुड ही नहीं तमाम सिनेप्रेमी भी चिंतित हो गए। हों भी क्यों नहीं, इरफान का ट्वीट था ही ऐसा। उन्होंने ट्वीट में बताया था कि उन्हें एक रेयर बीमारी हो गई है और इस बारे में वे जल्द ही अपडेट देंगे। कई दिनों बाद आखिरकार शुक्रवार को इरफान ने एक अन्य ट्वीट के जरिए बताया कि उन्हें 'न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर' है। एक ऐसी बीमारी जिसका नाम लेने में जुबान लड़खड़ा जाती है, उसके साथ बॉलीवुड का ये 'मदारी' जी रहा है। इस बार भी उन्होंने अपने प्रशंसकों से दुआएं करने को कहा है। आप भी सोच रहे होंगे आखिर यह न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होता क्या है? हम आपकी इस जिज्ञासा को समझते हैं... तो चलिए जानते हैं क्या होती है यह बीमारी और कितनी घातक है...?
एंडोक्राइन सिस्टम क्या होता है?
शरीर का एंडोक्राइन सिस्टम यानी अंत:स्त्रावी बॉडी सेल्स से बना होता है जो हार्मोन्स पैदा करता है। यह हार्मोन्स और कुछ नहीं कैमिकल सत्व (सबस्टांस) होते हैं जो रक्तवाहिनियों के जरिए प्रवाह करते हैं और शरीर के अन्य अंगों को कार्य करने में मदद करते हैं।
ट्यूमर क्या होता है?
ट्यूमर शरीर में मौजूद सेल्स का वह भाग है जो कंट्रोल से बाहर होकर अचानक बढ़ने लगता है। धीरे-धीरे यह मांस के एक लोथड़े के रूप में इकट्ठा होने लगता है। ट्यूमर है तो वह खतरनाक ही हो यह भी जरूरी नहीं। कई बार इसमें कैंसर पनप जाता है और कई बार यह बिना किसी परेशानी के शरीर में यूं ही पड़ा भी रहता है। कैंसर युक्त ट्यूमर घातक होता है और अगर इसका शुरुआती चरण में पता न चले तो यह तेजी से बढ़कर शरीर के अन्य अंगों में भी फैल जाता है। जबकि ऐसा ट्यूमर जिसमें कैंसर नहीं है वह बढ़ता तो है, लेकिन शरीर के अन्य हिस्सों में नहीं फैलता और इसे बिना किसी नुकसान के आसानी से हटाया भी जा सकता है।
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर क्या होता है?
इस तरह का ट्यूमर शरीर के उन हिस्सों में बनता है, जहां हार्मोन्स बनते और रिलीज होते हैं। यह इसलिए क्योंकि एंडोक्राइन ट्यूमर उन सेल्स से बनता है, जो हार्मोन्स बनाते हैं और ट्यूमर भी हार्मोन्स बना सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह बहुत ही गंभीर रूप से बीमार कर सकता है। जिन सेल्स में यह ट्यूमर पैदा होता है वह हार्मोन्स बनाने वाले एंडोक्राइन सेल्स और नर्व सेल्स का कॉम्बीनेशन होते हैं। इरफान खान ने अपने ट्वीट में ठीक ही लिखा है कि न्यूरो का मतलब सिर्फ दिमागी नसों से नहीं है। न्यूरोक्राइन सेल्स पूरे शरीर में पाए जाते हैं, जैसे- फेफड़ों में, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट जिसमें पेट और आंत भी आते हैं। न्यूरोएंडोक्राइन सेल्स हमारे शरीर में कई तरह के काम करते हैं, जैसे शरीर में हवा और खून के बहाव को फेफड़ों के जरिए बनाए रखना आदि।
तीन तरह के न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर
1. फियोक्रोमोसाइटोमा
2. मेर्केल सेल कैंसर
3. न्यूरोएंडोक्राइन कार्सिनोमा
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के लक्षण
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के साथ इस तरह के लक्षण दिख सकते हैं।
फियोक्रोमोसाइटोमा - हाई ब्लड प्रेशर, घबराहट, बुखार, सिरदर्द, पसीना आना, जी मिचलाना, उल्टी, चिपचिपी त्वचा, पल्स का तेज चलना और दिल में घबराहट जैसे लक्षण दिख सकते हैं।
मेर्केल सेल कैंसर - त्वचा पर दर्द रहित, चमकदार, पक्की गांठ बन सकती हैं, जो लाल, गुलाबी या नीले रंग की हो सकती है।
न्यूरोएंडोक्राइन कार्सिनोमा - खून में ग्लूकोज के अत्यधिक बढ़ जाने से हायपरग्लेसिमीया हो सकता है। इससे बार-बार पेशाब आना, प्यास लगना और भूख भी बढ़ सकती है। हायपोग्लेसिमिया भी हो सकता है, जो खून में ग्लूकोज के कम होने से होता है। इससे थकान, घबराहट, चक्कर आना, पसीना आना, बेहोशी जैसे लक्षण दिख सकते हैं। इनके अलावा इसमें डायरिया हो सकता है। शरीर के किसी खास अंग में लगातार दर्द, भूख कम लगना और वजन घटना, लगातार खांसी, शरीर के किसी हिस्से का मोटा या पतला होना। पीलिया, अचानक खून बहना या डिस्चार्ज होना, लगातार बुखार का बने रहना और रात में पसीना आना भी इसके लक्षण हैं। इनके अलावा सिरदर्द, घबराहट, गैस्ट्रिक अल्सल रोग और शरीर पर चकत्ते पड़ना व कुछ लोगों में प्रोटीन डेफिसिएंसी भी हो जाती है।
इलाज क्या है?
ट्यूमर के इलाज में अलग-अलग तरह के डॉक्टर एक साथ मिलकर मरीज के इलाज का खाका तैयार करते हैं। वह एक पूरा ट्रीटमेंट प्लान बनाते हैं, इसमें कई ट्रीटमेंट होते हैं। इसे मल्टीडिसिप्लिनरी टीम कहा जाता है। इस कैंसर केयर टीम में कई अन्य हैल्थ केयर प्रोफेशनल्स को भी शामिल किया जाता है, जिसमें फिजिशियन, ऑन्कोलॉजी नर्स, समाजिक कार्यकर्ता, फार्मासिस्ट, सलाहकार, आहार विशेषज्ञ व अन्य शामिल होते हैं। किसी भी तरह के इलाज से पहले ट्यूमर को इन चार बिंदुओं पर परखा जाता है-
1. न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का कौन सा प्रकार है
2. क्या ट्यूमर कैंसर युक्त है और कौन सी स्टेज पर है
3. इलाज के साइड इफेक्ट क्या-क्या होंगे
4. रोगी की प्राथमिकताएं और स्वास्थ्य कैसा है।
इसके बाद डॉक्टर सर्जरी से लेकर रेडिएशन थैरेपी, कीमोथैरेपी आदि पर विचार करते हैं।
किसको हो सकता है न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर
कब, किसे और कौन सी बीमारी हो जाए यह कहा नहीं जा सकता। फिर भी कुछ कारक हैं जो ऐसी खतरनाक बीमारी होने की प्रमुख वजह बनते हैं।
40 से 60 साल की उम्र के लोगों में आम तौर पर फियोक्रोमोसाइटोमा न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। जबकि 70 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में मेर्केल सेल कैंसर होने की आशंका ज्यादा होती है। महिलाओं की तुलना में फियोक्रोमोसाइटोमा होने का खतरा पुरुषों में ज्यादा होता है। यही नहीं मेर्केल सेल कैंसर भी पुरुषों में ज्यादा होता है। काले लोगों की तुलना में गोरे लोगों में मेर्केल सेल कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता। यही नहीं एचआईवी पीड़ित व्यक्तियों में भी न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर पनपने की आशंका ज्यादा होती है। अगर आप धूप में ज्यादा रहते हैं तो भी आपको मेर्केल सेल कैंसर होने का खतरा है।