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जिसकी वजह से अमेरिका भी को डर लग रहा है, आखिर क्या है वो लिबोर?

अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के एक सलाहकार ने भी कहा है कि अगर लिबोर फेल होता है तो उस स्थिति के लिए वैकल्पिक आपात योजना बनाकर रखनी चाहिए।

By Vikas JangraEdited By: Published: Sun, 24 Jun 2018 10:31 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jun 2018 10:31 PM (IST)
जिसकी वजह से अमेरिका भी को डर लग रहा है, आखिर क्या है वो लिबोर?
जिसकी वजह से अमेरिका भी को डर लग रहा है, आखिर क्या है वो लिबोर?

नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा]। अर्थव्यवस्था में विकास दर, महंगाई दर और एक्सचेंज रेट की तरह ब्याज दरों की अहम भूमिका होती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक प्रचलित ब्याज दर है लिबोर, जो दुनियाभर में ब्याज दरों का रुख तय करती है। पिछले कुछ वर्षो में लिबोर विवादों में घिरी रही है।

हाल में सिटी बैंक का लिबोर से जुड़ा एक मामला खासा चर्चा में भी रहा है जिसके चलते इस बैंक पर अमेरिका में 10 करोड़ डालर जुर्माना लगा है। वहीं अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के एक सलाहकार ने भी कहा है कि अगर लिबोर फेल होता है तो उस स्थिति के लिए वैकल्पिक आपात योजना बनाकर रखनी चाहिए। आखिर लिबोर क्या है? यह कैसे तय होती है? ब्याज दरों को कैसे प्रभावित करती है? 'जागरण पाठशाला' के इस अंक में हम यही समझने का प्रयास करेंगे।

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लंदन का इंटर बैंक मार्केट धन का थोक बाजार है जहां बैंक एक दूसरे से उधार लेते हैं। यहां बैंक जिस ब्याज दर पर एक दूसरे से उधार लेते हैं उसे लिबोर कहते हैं। लिबोर का मतलब है लंदन इंटर बैंक ऑफर्ड रेट।

लिबोर ब्याज दरों के लिए बेंचमार्क का काम करती है। यह ब्याज दर कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में अलग-अलग करेंसी में करीब 350 ट्रिलियन डालर (350 लाख करोड़ डालर) मूल्य के फाइनेंशियल प्रोडक्ट जैसे- कारपोरेट रेट लोन से लेकर क्त्रेडिट कार्ड, मॉर्टगेज से लेकर सेविंग एकाउंट और इंटरेस्ट रेट स्वैप्स के लिए रेफरेंस रेट लिबोर होती है। इसमें से करीब 200 ट्रिलियन (200 लाख करोड़ डालर) के फाइनेंशियल प्रोडक्ट डालर में होते हैं। इसलिए लिबोर में मामूली उतार-चढ़ाव से मनी मार्केट में अरबों का नफा-नुकसान हो जाते हैं। चूंकि डालर दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है, इसलिए डालर लिबोर सर्वाधिक प्रचलित ब्याज दर है।

ऐसे तय होती है लिबोर
लिबोर कैसे तय होती है इसकी एक रोचक कहानी है। लंदन के इंटरबैंक बाजार में, सार्वजनिक अवकाश को छोड़कर, हर कारोबारी दिवस को सुबह 11 बजे से 16 बड़े बैंक, आइसीई बैंचमार्क एडमिनिस्ट्रेशन के तत्वाधान में एक मंच पर आते हैं और यह सूचित करते हैं कि वे एक-दूसरे से किस ब्याज पर दर पर उधार लेने को तैयार हैं। ये बैंक पांच करेंसी (डालर, यूरो, पौंड, येन और स्विस फ्रेंक) और सात अवधियों (ओवरनाइट, एक सप्ताह, एक माह, दो माह, तीन माह, छह माह और एक साल) में उधार लेने के लिए अलग-अलग ब्याज दरें लिखकर देते हैं।

उदाहरण के लिए किसी एक बैंक को डालर उधार लेने हैं तो वह यह बताएगा कि एक सप्ताह या एक माह या एक साल की अवधि के लिए निर्धारित डालर राशि उधार लेने को वह कितनी ब्याज दर चुकाने को तैयार है। इसी तरह वह अन्य चार करेंसी उधार लेने को भी सातों अवधि के लिए अलग-अलग ब्याज दर का प्रस्ताव करता है। जितने बैंक अपनी-अपनी ब्याज दरें बताते हैं उनमें से चार उच्चतम तथा चार न्यूनतम दरों को अलग कर दिया जाता है और बाकी बची दरों का एक औसत निकाल लिया जाता है।

इस तरह औसत निकलने के बाद प्रत्येक करेंसी के लिए कुल सात अवधियों के लिए सात अलग-अलग ब्याज दर निकलती है। चूंकि यही प्रक्ति्रया सभी पांचों करेंसी (डालर, यूरो, पौंड, येन और स्विस फ्रेंक) के लिए दोहराई जाती है, इसलिए कुल 35 अलग-अलग ब्याज दर निकलती हैं। इनकी संख्या भले ही 35 हो लेकिन इसे एकवचन के रूप में लिबोर ही कहते हैं।

2014 से पहले लिबोर के निर्धारण का प्रशासन ब्रिटिश बैंकर्स एसोसिएशन के पास था। उस समय 10 अलग-अलग करेंसी के लिए 15 अलग-अलग अवधियों के लिए लिबोर तय की जाती थी। वैसे ब्रिटिश बैंकर्स एसोसिएशन ने 1986 में तीन करेंसी (डालर, येन और पौंड) के साथ लिबोर की शुरुआत की थी।


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