नई दिल्‍ली, जागरण स्‍पेशल। हरियाणा में भिवानी का बलाली गांव देश का ऐसा चर्चित गांव है जिसने कर्इ खेल प्रतिभाएं पैदा कीं। कुश्‍ती के कोच महावीर फोगाट का इसमें प्रमुख योगदान है। उन्‍होंने न सिर्फ लड़कियों को घर से बाहर निकला बल्कि अखाड़ों में लड़कों के साथ उनकी कुश्‍ती लड़वार्इ। सोमवार को जब एशियाई खेलों में महिला पहलवान विनेश फोगाट ने स्वर्ण पदक जीता तो लोगों को बरबस महावीर फोगाट का स्मरण आना स्वाभाविक है।  

खुद राष्‍ट्रीय स्तर के पहलवान रह चुके हैं महावीर फोगाट 
राष्ट्रीय स्तर के पहलवान महावीर फोगाट की चार बेटियां हैं-गीता, बबीता, विनेश और रितु, जो खुद अपने पिता महावीर फोगाट की तरह शानदार पहलवान हैं और देश के लिए कई मेडल जीत चुकी हैं। महावीर  की चार बेटियां और एक बेटा हैं, जिन्हें उन्होंने पहलवान बनाया है। इसके अलावा महावीर ने अपने भाई की भी दो बेटियों विनेश और प्रियंका फोगाट को पहलवानी की शिक्षा दी है। विनेश जब छोटी थीं तभी उनके पिता की हत्या हो गई थी। महावीर ने इस कमी को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके बाद विनेश उस परिवार का ही एक हिस्सा बनकर रहने लगीं। 

ट्रेनिंग में थे काफी सख्त  
विनेश पुरानी बातों को याद करते हुए कहती हैं कि मैं कुश्ती में काफी अच्छी थी लेकिन मुझे इसका कोई शौक नहीं था। लेकिन ताऊजी ट्रेनिंग में कोई कोताही नहीं बरतते थे। वह छड़ी लेकर हमसे ट्रेनिंग करवाते थे। अगर ऐसा नहीं होता तो मैं भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर रही होती।  

महावीर को ये गुण विरासत में मिला 
महाबीर फोगाट के पिता मान सिंह गांवों में कुश्ती लड़ते थे। इसलिए महावीर को ये गुण विरासत में मिला। वो खुद 15 साल की उम्र से रेसलिंग कर रहे हैं। नेशनल लेवल पर कई कुश्ती लड़ चुके महावीर फोगाट की पत्नी का नाम दया कौर है, दोनों की पहली संतान का नाम गीता है, बेटी के जन्म होने के बाद ही दोनों पति-पत्‍नी ने ठान लिया था कि वो गीता को पहलवान बनाएंगे, लेकिन हरियाणा की एक लड़की मर्दों के साथ कुश्ती करे, ये सोचना भी शायद उस वक्त गलत था, जाहिर है मुश्किलें तो आनी ही थीं लेकिन महावीर और दया फैसले से टस से मस नहीं हुए।

महावीर फोगाट ने कहा कि अभी सिर्फ 20 फीसदी लोग ही बेटियों को बराबरी का हक दे रहे हैं। फोगाट के मुताबिक जब गीता और बबिता को अखाड़े में लाना शुरू किया तो गांव के लोगों ने विरोध किया। वह लोग भी आलोचना करने लगे जो साथ उठते-बैठते थे। लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी।

वे लोग अब बहुत पछताते हैं 
उन्होंने बताया कि मेरे गांव की कुछ लड़कियां कुश्ती लड़ने में मेरी बेटियों से भी अच्छी थीं लेकिन लोगों के तानों और विरोध के बाद उनके घर के लोगों ने उन्हें अखाड़े से बाहर कर दिया। जिन्होंने ऐसा किया था, आज वह पछता रहे हैं। मजबूरी में मैंने बेटियों को लड़कों के साथ कुश्‍ती की प्रैक्‍टिस कराई। अब अखाड़ा मेरे घर के अंदर हैं। यहां छोटी-छोटी लड़कियां अपनी उम्र के लड़कों के साथ कुश्‍ती लड़ती हैं। सुबह चार बजे से बेटियों को कुश्‍ती की ट्रेनिंग देता हूं। कुश्‍ती पुरुषों की जागीर नहीं है यह इन बेटियों ने साबित किया है। आज हरियाणा में महिला कुश्‍ती के कम से कम 50 अखाड़े चल रहे हैं।

बेटियों  को मौका दीजिए, वे आसमान छू सकती हैं  
वर्ष 2020 में टोक्यो आलंपिक में उम्मीद है कि मेरी बेटियां ओलंपिक मेडल ले आएंगी। मैंने अपनी जिंदगी में यही सीखा है कि डटे रहो, लड़ते रहो और आलोचनाओं को अनसुना करते रहो। इसी मंत्र से मुझे और मेरी बेटियों को सफलता मिली है। दूर दृष्टि, पक्‍का इरादा रखिए और कड़ी मेहनत करिए तो मुकाम हासिल हो जाता है। बेटियों को सिर्फ मौका देने की जरूरत है, वह आसमान छू सकती हैं। 

कर्णम मल्लेश्‍वरी से मिली प्रेरणा
उन्‍होंने बताया कि वर्ष 2000 के सिडनी ओलंपिक में जब मैंने वेट लिफ्टर कर्णम मल्लेश्‍वरी को कांस्‍य पदक जीतते देखा तो मुझे लगा कि मेरी बेटियां भी विश्‍व चैंपियन हो सकती हैं। फिर मैंने उन्‍हें सुबह-शाम कम से कम तीन-तीन घंटे अखाड़े में ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी। मेरी लड़कियां स्‍कूल से लौटते ही अखाड़े में पहुंच जातीं। गांव वाले कहते थे कि कुश्‍ती लड़कियों का गेम नहीं है। यह पुरुषों का खेल है। लेकिन मैं हमेशा उनसे अलग सोचता और करता था।

रियो ओलंपिक में चोट के बाद भी विनेश ने हिम्मत नहीं हारी  
रियो ओलंपिक में चोट के बाद बाहर हुई महिला पहलवान विनेश फोगाट ने एशियाई खेलों में भारत को दूसरा गोल्ड मेडल दिलाया। एशियन गेम्स के इतिहास में ये पहला मौका है जब भारत ने महिला रेसलिंग में गोल्ड मेडल जीता है। विनेश ने इससे पहले 2014 के राष्ट्रमण्डल खेल में भी स्वर्ण पदक जीता था। 

चोट के बाद विनेश ने कहा था कि ओलंपिक पदक मेरा सपना था और यह घुटने की चोट से टूट गया। मैं फ्रीस्टाइल स्पर्धा के 48 किलोग्राम भार वर्ग में चीन की सुन यानान के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मुकाबला लड़ रही थी और 1-0 से आगे भी थी लेकिन तभी सुन के दांव में मेरा घुटना चोटिल हो गया और मुझे स्ट्रेचर से बाहर लाया गया। ओलंपिक की याद को कभी भूल नहीं पाऊंगी। बहुत बुरा पल था।
सपना अधूरा रह गया। जब सपने अधूरे रह जाते हैं तो सुकून नहीं देते हैं। सपना टूटता है तो बहुत तकलीफ होती है लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी है और मैं 2020 के टोक्यो ओलंपिक खेलों की तैयारियों में दोगुने उत्साह के साथ जुटी हुई हूं। रोजाना सात घंटे अभ्यास कर रही हूं।

सोमवार को भी एशियाई खेलों में विनेश जब अपनी बाउट में उतरीं तो वह पैर में दर्द की समस्या से जूझ रही थीं। इसके बावजूद उन्होंने अपनी सभी बाउट जीतीं और जापानी पहलवान को कोई मौका नहीं दिया।

 

Edited By: Arun Kumar Singh