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रेलवे के सारे रनिंग रूम दो साल में होंगे वातानुकूलित

रेलवे में लोको पायलट, गार्ड आदि को रनिंग स्टाफ और इनके विश्राम गृहों को रनिंग रूम बोला जाता है।

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 25 Sep 2017 10:02 AM (IST)Updated: Mon, 25 Sep 2017 10:02 AM (IST)
रेलवे के सारे रनिंग रूम दो साल में होंगे वातानुकूलित
रेलवे के सारे रनिंग रूम दो साल में होंगे वातानुकूलित

नई दिल्ली, संजय सिंह। ट्रेनों के लोको पायलट शायद अब बेहतर ढंग से अपनी नींद पूरी कर सकेंगे। रेलवे बोर्ड ने उनके विश्राम के लिए बनाए गए सभी रनिंग रूमों को दो साल के भीतर वातानुकूलित करने तथा अन्य बेहतरीन सुविधाओं से लैस करने को कहा है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्र्वनी लोहानी ने इस संबंध में सभी जोनों को पत्र लिखा है।

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पत्र में लोहानी ने महाप्रबंधकों को रेलवे बोर्ड के 22 सितंबर, 2016 के आदेश की याद दिलाई है, जिसमें लोको पायलट, गार्ड तथा संरक्षा श्रेणी के अन्य रेलकर्मियों के कार्य के घंटों, दशाओं तथा सुविधाओं के बारे में हाई पावर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने को कहा गया था। लोहानी ने विशेष तौर पर समिति की सिफारिश संख्या 9.59 का उल्लेख करते हुए दो साल के भीतर सभी रनिंग रूमों को वातानुकूलित करने तथा पावर बैक-अप के साथ-साथ अन्य जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने को कहा है।

लोहानी ने पत्र में लिखा है, 'सुरक्षित ट्रेन संचालन के लिए अन्य बातों के अलावा चालक दल को पर्याप्त विश्राम मिलना महत्वपूर्ण है। इसके लिए सभी रनिंग रूमों में समिति द्वारा बताई गई सुविधाओं को दो वर्ष के भीतर उपलब्ध कराया जाए और इस संबंध में तैयार कार्ययोजना से मुझे अवगत कराया जाए।'

हाई पावर समिति की रिपोर्ट अगस्त, 2013 में आई थी। बीपी त्रिपाठी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा था कि चालक दल के सदस्यों को पूरा विश्राम व नींद न मिलने के कारण पूर्व में अनेक ट्रेन दुर्घटनाएं रात दो बजे से सुबह छह बजे के बीच हुई हैं। लोको पायलट/असिस्टेंट लोको पायलट के कार्य की प्रकृति ऐसी है कि कई मर्तबा उन्हें दिन और रात लगातार ट्रेन चलानी पड़ती है। ऐसे में आराम न मिलने और नींद पूरी न होने से गलती की संभावना बढ़ जाती है। लिहाजा न केवल चालक दल सदस्यों के काम के घंटे कम किए जाएं, बल्कि नियमित अंतराल पर सुनिश्रि्वत अवकाश प्रदान किया जाए।

समिति ने रेलवे रनिंग रूमों की हालत की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया था और इन्हें बेहतर सुविधाओं के अलावा पांच साल के भीतर एयरकंडीशंड किए जाने का सुझाव दिया था। लेकिन अब तक कई सिफारिशें लागू नहीं हुई हैं। बड़े स्टेशनों के रनिंग रूम तो एयरकंडीशंड हो गए हैं। लेकिन बाकी जगहों पर अभी भी कूलर से काम चलाया जा रहा है।

रेलवे में लोको पायलट, गार्ड आदि को रनिंग स्टाफ और इनके विश्राम गृहों को रनिंग रूम बोला जाता है। सहूलियत के लिहाज से ज्यादातर रनिंग रूमों को प्रमुख स्टेशनों पर अथवा नजदीक बनाया गया है। लेकिन ट्रेनों, मच्छरों और कूलरों के शोर के कारण यहां चैन की नींद लेना किसी के लिए भी टेढ़ी खीर है। रनिंग रूम वातानुकूलित होने से इन सभी समस्याओं का एक साथ समाधान हो जाता है। रनिंग रूमों का एयरकंडीशंड करना, इसलिए भी जरूरी माना गया है क्योंकि अनेक लोको पायलटों ने घरों में एसी लगा लिए है। ऐसे में उनके लिए कूलर वाले रनिंग रूम में सो पाना मुश्किल होता है।

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