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एक साथ चुनाव कराने के लिए सभी पार्टियों की सहमति जरूरी

मौजूदा कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किसी राज्य की विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने से छह महीने पहले तक चुनाव कराए जा सकते हैं।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Sun, 08 Oct 2017 06:51 PM (IST)Updated: Mon, 09 Oct 2017 09:18 AM (IST)
एक साथ चुनाव कराने के लिए सभी पार्टियों की सहमति जरूरी
एक साथ चुनाव कराने के लिए सभी पार्टियों की सहमति जरूरी

नई दिल्ली, प्रेट्र : लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का पक्ष लेते हुए चुनाव आयोग ने कहा है कि इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियों की सहमति जरूरी है। निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत ने रविवार को कहा, 'चुनाव आयोग का हमेशा से नजरिया रहा है कि एक साथ चुनाव कराने से निवर्तमान सरकार को आदर्श आचार संहिता से आने वाली रुकावट के बगैर कार्यक्रम बनाने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा।'

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उन्होंने कहा कि संविधान और जनप्रतिनिधित्व कानून में जरूरी बदलाव करने के बाद ही एक साथ चुनाव कराना मुमकिन हो सकेगा। रावत ने कहा कि यदि आयोग को पर्याप्त समय दिया जाए, तो वह एक साथ चुनाव करवाने के लिए तैयार है। इसके लिए 24 लाख वोटिंग मशीनों और इतने ही वीवीपैट मशीनों की जरूरत होगी।

मौजूदा कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किसी राज्य की विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने से छह महीने पहले तक चुनाव कराए जा सकते हैं। रावत ने कहा कि संवैधानिक और कानूनी खाका बनाने के बाद ही तमाम तरह के समर्थन मांगना और एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक होगा।

रावत ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने पर निर्वाचन आयोग से 2015 में अपना रुख बताने को कहा गया था। उसी साल मार्च में आयोग ने अपने विचारों से सरकार को अवगत करा दिया। इसमें उसने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से पहले कुछ कदम उठाने होंगे।

चुनाव आयुक्त का यह बयान इस लिहाज से अहम है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कई मौकों पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने का समर्थन कर चुके हैं। उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा विधानसभाओं के चुनाव 2019 के मध्य में होने वाले आम चुनाव के साथ होंगे।

चुनाव लड़ने के लिए बकाये के भुगतान का प्रस्ताव नामंजूर

सरकार ने सरकारी घर के किराये, बिजली के बिल जैसे बकाये का भुगतान नहीं करने वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने के निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। चुनाव आयोग ने विधि मंत्रालय को पत्र लिखकर उन लोगों के लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की अपील की जो सार्वजनिक सुविधाओं के बकाये का पूरा भुगतान नहीं करते।

लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार मई में चुनाव आयोग को भेजे संक्षिप्त जवाब में मंत्रालय ने कहा कि प्रस्ताव 'की जरूरत नहीं है।' उन्होंने कहा कि विधि मंत्रालय को लगता है कि किसी उम्मीदवार का नो-ड्यूज देने वाला प्राधिकरण पक्षपातपूर्ण हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि वह उसे जरूरी दस्तावेज नहीं दे। मंत्रालय को यह भी लगता है कि बकाये के विवाद से संबंधित मामलों को अदालत में ले जाया जा सकता है और उसके समाधान में समय लग सकता है।

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