मेरठ के खरखौदा कांड से थर्रा रहा पश्चिमी उत्तर प्रदेश
मेरठ के खरखौदा कांड को लेकर ब्राह्मण समाज के लोगों ने आज खरखौदा थाने का घेराव किया। नेताओं का जमावड़ा देख पूरे दिन अफसरों के हाथ पांव फूलते रहे। गाजियाबाद में खरखौदा कांड की आंच पहुंची। युवती से गैंगरेप और धमरंतरण के विरोध में मोदीनगर में विभिन्न हिंदू संगठनों का विरोध प्रदर्शन किया। मुजफ्फरनगर में खरखौ
लखनऊ। मेरठ के खरखौदा कांड को लेकर ब्राह्मण समाज के लोगों ने आज खरखौदा थाने का घेराव किया। नेताओं का जमावड़ा देख पूरे दिन अफसरों के हाथ पांव फूलते रहे। गाजियाबाद में खरखौदा कांड की आंच पहुंची। युवती से गैंगरेप और धमरंतरण के विरोध में मोदीनगर में विभिन्न हिंदू संगठनों का विरोध प्रदर्शन किया। मुजफ्फरनगर में खरखौदा कांड को लेकर हिंदू संगठनों का धरना प्रदर्शन जारी है।
दरअसल, इस सबके पीछे सियासी नजदीकियों की भेंट चढ़ता प्रशासन का हुनर है। पश्चिमी यूपी के करीब-करीब सभी जिले इस संकट में उलझे हैं। खरखौदा घटना इस वक्त सुर्खियों में है। एक युवती को अगवा कर मदरसे में सामूहिक दुराचार और गर्भाशय निकालने का मामला सामने आया। इसके बाद घटना पर सियासी वोल्टेज बढ़ा और अधिकारी लीपापोती में जुट गये। मेरठ और लखनऊ के पुलिस अधिकरियों के परस्पर विरोधी बयान इसकी तस्दीक करते हैं।
गर्त में जाती पश्चिम की कानून व्यवस्था
पश्चिम यूपी दंगों के पीछे प्रशासनिक ढीलापन खास कारण बना है। मेरठ, बागपत, हापुड़, सहारनपुर और शामली समेत करीब सभी जिलों में अधिकारियों का अनाड़ीपन कानून व्यवस्था को गर्त में पहुंचा रहा है। मुजफ्फरनगर दंगे से निपटने को लखनऊ से टीम भेजनी पड़ी। यहां पर पहले कप्तान रह चुके आइजी को विशेष रूप से बुलाया गया। सहारनपुर के दंगे में भुवनेश कुमार और दीपक रतन और तीरगरान में बवाल पर काबू पाने के लिए आइजी और डीआइजी को हाथ में डंडा थामना पड़ा।
कठघरे में मदरसे और अफसर
खरखौदा प्रकरण में मदरसे भी कटघरे में हैं। अफसरों की भूमिका सवालों के घेरे में है। खरखौदा में हंगामा चला तो एसएसपी जिले से बाहर चले गए। एसपी देहात को कप्तान की भूमिका में उतरना पड़ा। आइजी के निर्देश पर डीआइजी के सत्यनारायण ने मोर्चा संभाला। आइजी को भी सहारनपुर से आना पड़ा। सहारनपुर के कप्तान राजेश कुमार पांडेय एसपी सिटी मेरठ रह चुके हैं। ऐसे में हर मामलों में डीआइजी और आइजी को कप्तान की तरह कमान संभालनी पड़ रही है।
रिमोट कंट्रोल वाले थानेदार भी जिम्मेदार
किसी घटनाक्त्रम को बारीकी से समझकर उसे थाना स्थर पर सुलझा लेने से मामला वहीं का वहीं दम तोड़ देता है लेकिन मेरठ मामले में ऐसा नहीं हुआ। अधिकांश थानेदार सियासत की दवा पीकर आए हैं। उन पर जिले के अफसर का भी रौब नहीं चलता। उनका रिमोट कंट्रोल सीधा लखनऊ से होता है, फिर भला जनता की क्यों सुनेंगे? पूरे मेरठ जोन में 40 से ज्यादा थानेदारों का रिमोट कंट्रोल लखनऊ से है तभी उनके क्षेत्रों आतंक मचा हुआ है और जनता त्राहि त्राहि कर रही है।
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