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अजीत पवार के गले की हड्डी बना इस्तीफा

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री पद से दिया गया अजीत पवार का इस्तीफा अब उन्हीं के गले की हड्डी बन गया है। पार्टी का एक गुट उनसे इस्तीफा वापस लेने की मांग कर रहा है, तो दूसरा गुट सरकार से हटने के पक्ष में है। नुकसान दोनों ही स्थितियों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और अजीत पवार का नजर आ रहा है। शुक्रवार को उप

By Edited By: Published: Wed, 26 Sep 2012 07:11 PM (IST)Updated: Wed, 26 Sep 2012 07:22 PM (IST)
अजीत पवार के गले की हड्डी बना इस्तीफा

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री पद से दिया गया अजीत पवार का इस्तीफा अब उन्हीं के गले की हड्डी बन गया है। पार्टी का एक गुट उनसे इस्तीफा वापस लेने की मांग कर रहा है, तो दूसरा गुट सरकार से हटने के पक्ष में है। नुकसान दोनों ही स्थितियों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और अजीत पवार का नजर आ रहा है।

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शुक्रवार को उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने अपना इस्तीफा सीधे मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण को सौंप दिया था । उनका समर्थन करते हुए महाराष्ट्र की कांग्रेस-राकांपा गठबंधन सरकार में राकांपा कोटे के सभी 19 मंत्रियों ने भी अपना इस्तीफा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मधुकरराव पिचड़ को सौंप दिया। अजीत पवार केंद्रीय कृषिमंत्री शरद पवार के भतीजे हैं। उपमुख्यमंत्री बनने से पहले लगातार 10 वर्ष तक वह राज्य के सिंचाई और सहकारिता मंत्री रहे हैं। इसी दौरान इन विभागों में हुए बड़े घोटालों का खुलासा नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक की रिपोर्ट में हुआ है। इस खुलासे पर विपक्ष आक्रामक है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण भी अपनी कनिष्ठ सहयोगी राकांपा को उसकी जगह दिखाने का मन बना चुके हैं। यही कारण है कि उन्होंने 70,000 करोड़ रुपयों के सिंचाई घोटाले पर श्वेतपत्र जारी करने की विपक्ष की मांग मान ली है। इसलिए अजीत पवार और उनकी पार्टी को ल“ता है कि उन्हें जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है।

इस निशाने से बचने के लिए ही अजीत पवार ने अपने पद से इस्तीफा देकर दबाव की राजनीति शुरू कर दी है। उनकी पार्टी के प्रफुल्ल पटेल जैसे नेता मानते हैं कि कांग्रेस द्वारा जानबूझकर अजीत को निशाना बनाया जा रहा है। प्रफुल से सहमति रखनेवाले पार्टी के नेता चाहते हैं कि अब कांग्रेस नीत सरकार से राकांपा अलग हो जाए और सरकार टिकाए रखने के लिए उसे बाहर से समर्थन दे। इससे कांग्रेस सरकार बचाने के दबाव में रहेगी और सिंचाई व सहकारिता घोटालों की जांच से तौबा कर लेगी। वहीं राकांपा के दूसरे गुट का मानना है कि घोटालों के मुद्दे पर सरकार से बाहर होने का सीधा लाभ कांग्रेस को मिलेगा। चूंकि मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में भी सिंचाई घोटाले की निष्पक्ष जांच के लिए एक जनहित याचिका दायर की जा चुकी है। यदि हाई कोर्ट ने यह जांच सीबीआई जैसी किसी केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी तो राज्य में कांग्रेस की सरकार न रहते हुए भी कांग्रेस अजीत पवार के लिए दिल्ली से मुश्किलें खड़ी करवा सकती है।

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